मेकेदतु डैम की प्रासंगिकता | 19 Aug 2017

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मेकेदतु बांध परियोजना (Mekedatu dam project) के अस्तित्व के विषय में प्रश्न उठाया गया। न्यायालय द्वारा यह प्रश्न किया गया कि मेकेदतु बांध परियोजना को एक जल संचयी विकल्प के रूप में क्यों इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है? क्या इस बांध परियोजना के अंतर्गत कर्नाटक राज्य से बहने वाली कावेरी नदी के अतिरिक्त जल को संचित करके तमिलनाडु राज्य को उपलब्ध  नहीं कराया जा सकता है?

पृष्ठभूमि 

  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कावेरी नदी जल विवाद के संबंध में यह बात की गई है ।
  • उल्लेखनीय है कि कर्नाटक सरकार द्वारा कावेरी नदी जल विवाद के संबंध में गठित ट्रिब्यूनल के आदेश पर वर्ष 2007 से अभी तक तमिलनाडु राज्य हेतु छोड़े गए जल के संबंध में आँकड़े प्रस्तुत किये गए।
  • इन आँकड़ों के अंतर्गत कर्नाटक राज्य द्वारा यह सूचित किया गया है कि केवल दो सूखाग्रस्त सालों को छोड़कर, बाकी सभी वर्षों में एक बार भी तमिलनाडु राज्य को ट्रिब्यूनल द्वारा निर्धारित 192टी/एम.सी. जल से कम की आपूर्ति नहीं की गई है।
  • हालाँकि तमिलनाडु राज्य द्वारा उक्त आँकड़ों के संबंध में आपत्ति दर्ज कराई गई है।

इस संबंध में राज्यों का मत

  • उल्लेखनीय है कि मेकेदतु बांध को जल संचयन के रूप में इस्तेमाल किये जाने के विकल्प पर कर्नाटक एवं तमिलनाडु दोनों राज्यों द्वारा अपनी सहमती व्यक्त की गई है। 

मेकेदतु बांध परियोजना क्या है?

  • कर्नाटक राज्य का इरादा कनकपुरा तालुक (Kanakapura taluk) में मेकेदतु(Mekedatu) के निकट कावेरी नदी पर एक जलाशय बनाने का है।
  • राज्य द्वारा वर्ष 2003 में शिम्सा (Shimsa) में शिवनासमुद्र जल विद्युत् प्रोजेक्ट(Shivanasamudra hydro power project) के निर्माण के संबंध में प्रस्ताव पेश किया गया था।
  • इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य बंगलरु शहर के लिये पीने के पानी की आपूर्ति करना तथा एक जल विद्युत् स्टेशन के लिये पानी का इस्तेमाल करना था।
  • इस परियोजना की अनुमानित लागत 5912 करोड़ रुपए के आस-पास है। यदि यह परियोजना अस्तित्व में आती है तो इससे तकरीबन 4900 हेक्टेयर वन भूमि जलमग्न हो जाएगी।