चिकित्सा आपूर्ति और मेक इन इंडिया | 09 Dec 2020

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रेल मंत्रालय ने 'उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग' (DPIIT) से लिखित में भारत के बाहर निर्मित कुछ चिकित्सा वस्तुओं विशेष रूप से कोविड-19, कैंसर आदि के उपचार में उपयोग की जाने वाली दवाओं और उपकरणों आदि की खरीद के लिये छूट की मांग की है।

  • DPIIT वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत एक केंद्रीय विभाग है।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि

  • अगस्त 2020 में उत्तर रेलवे ने रेलवे बोर्ड को औपचारिक रूप से लिखित में यह सूचित किया था कि मेक इन इंडिया नीति के आलोक में दवाओं और सर्जिकल उपकरणों की खरीद में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।
    • ज्ञात हो कि भारतीय रेलवे 12 लाख से अधिक कर्मचारियों के साथ देश के सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक है और उसके पास स्वास्थ्य सेवाओं के बुनियादी ढाँचे का अपना नेटवर्क मौजूद है, जिसमें सभी ज़ोनल मुख्यालयों में सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल शामिल हैं।
  • उत्तर रेलवे ने रेलवे बोर्ड को बताया था कि कैंसर के उपचार में प्रयोग होने वाली कुछ दवाएँ और कुछ एंटी-वायरल दवाएँ ऐसी हैं, जिन्हें भारत में मध्यस्थों और एजेंटों आदि के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है, किंतु इनका निर्माण भारत में नहीं किया जाता है। इसी वज़ह से ये दवाएँ और उपकरण क्लास-1 या क्लास-2 श्रेणी में नहीं आते हैं, जो कि ‘मेक इन इंडिया’ के तहत खरीद के लिये आवश्यक है।
    • केंद्र सरकार ने सार्वजनिक खरीद (मेक इन इंडिया को प्राथमिकता) 2017 में संशोधन करते हुए ‘क्लास-1’, ‘क्लास-2’ और ‘गैर-स्थानीय आपूर्तिकर्त्ता’ की एक अवधारणा प्रस्तुत की थी, इसी अवधारणा के आधार पर भारत में सरकार द्वारा वस्तुओं की खरीद को वरीयता दी जाती है।
    • जून 2020 में, सरकार ने उन कंपनियों को अधिकतम वरीयता देने के लिये सार्वजनिक खरीद मानदंडों को संशोधित किया, जिनके वस्तुओं और सेवाओं में 50 प्रतिशत या अधिक स्थानीय सामग्री है। इस कदम का उद्देश्य ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को बढ़ावा देना और देश को आत्मनिर्भर बनाना था।

मुद्दा

  • मौजूदा ‘मेक इन इंडिया’ नीति में ऐसी वस्तुओं की खरीद के लिये कोई भी विकल्प मौजूद नहीं है, जो क्लास-1 और क्लास-2 के स्थानीय आपूर्तिकर्त्ताओं की श्रेणी से संबंधित मापदंडों को पूरा नहीं करते हैं।
    • क्लास-1 में उन आपूर्तिकर्त्ताओं या सेवाप्रदाताओं को शामिल किया जाता है, जिनकी वस्तुओं और सेवाओं में 50 प्रतिशत या उससे अधिक स्थानीय सामग्री शामिल होती है।
    • क्लास-2 में उन आपूर्तिकर्त्ताओं या सेवाप्रदाताओं को शामिल किया जाता है, जिनकी वस्तुओं और सेवाओं में 20 प्रतिशत से अधिक लेकिन 50 प्रतिशत कम स्थानीय सामग्री शामिल होती है।
    • उपरोक्त दो श्रेणियों के आपूर्तिकर्त्ता या सेवाप्रदाता ही 200 करोड़ रुपए से कम के अनुमानित मूल्य के साथ सरकार द्वारा की जाने वाली किसी भी खरीद में बोली लगाने के लिये पात्र होंगे।
  • यही कारण है कि रेल मंत्रालय ने 'उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग' (DPIIT) से ‘गैर-स्थानीय आपूर्तिकर्ताओं’ (ऐसे आपूर्तिकर्त्ता जिनकी वस्तुओं और सेवाओं में 20 प्रतिशत से कम स्थानीय सामग्री शामिल होती है) से दवाओं और उपकरणों की खरीद की मांग की सिफारिश की है।
    • हालाँकि, DPIIT ने रेल मंत्रालय को सूचित किया कि भारतीय एजेंटों/व्यापारियों के माध्यम से आयातित वस्तुओं की खरीद अप्रत्यक्ष तौर पर सामान्य वित्त नियम, 2017 का उल्लंघन है इसलिये ऐसी दवाओं/चिकित्सा उपकरणों की खरीद के लिये विशेष छूट प्राप्त करने की सिफारिश नहीं की जा सकती।
    • 200 करोड़ रुपए से अधिक राशि की वैश्विक निविदा जाँच पर प्रतिबंध लगाने के लिये मई 2020 में व्यय विभाग द्वारा GFR 2017 के नियम 161 (iv) में संशोधन किया गया था।
  • इसका उद्देश्य स्थानीय संस्थाओं को लाभ पहुँचाने के लिये सरकारी संस्थाओं की खरीद कर स्थानीय निविदाओं की कार्यशीलता को सक्षम बनाना था।
  • DPIIT ने इस विषय को फार्मास्युटिकल्स विभाग और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को हस्तांतरित कर दिया है, जो कि फार्मास्युटिकल्स और मेडिकल उपकरणों के लिये नोडल एजेंसियाँ ​​हैं।
  • रेल मंत्रालय को सलाह दी गई कि वे आवश्यक पड़ने पर किसी विशेष खरीद में छूट प्राप्त करने के लिये प्रभारी मंत्री की मंज़ूरी के साथ ‘मेक इन इंडिया’ नीति के तहत जारी दिशा-निर्देशों के पैरा 14 के तहत प्रदान की गई शक्तियों का उपयोग कर सकते हैं।
    • पैरा 14 के तहत मंत्रालयों और विभिन्न सरकारी विभागों को छूट प्रदान करने तथा न्यूनतम स्थानीय सामग्री की आवश्यकता को कम करने का प्रावधान किया गया है।

स्रोत: द हिंदू