न्यायालय की कार्यवाही पर मीडिया को रिपोर्ट करने का अधिकार : सर्वोच्च न्यायालय | 08 May 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने मीडिया को न्यायिक कार्यवाही के दौरान टिप्पणियों की रिपोर्टिंग करने से रोकने के लिये भारतीय चुनाव आयोग (ECI) द्वारा दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया है।

  • सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि मीडिया को अदालती सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों द्वारा की गई चर्चाओं और मौखिक टिप्पणियों की रिपोर्टिंग से प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, अदालती सुनवाई का मीडिया कवरेज़ प्रेस की स्वतंत्रता का हिस्सा है, इसका नागरिकों के सूचना के अधिकार तथा न्यायपालिका की जवाबदेही पर भी असर पड़ता है।

प्रमुख बिंदु 

वाक्-स्वतंत्रता या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता:

  • न्यायाधीशों और वकीलों के बीच अदालतों में मौखिक आदान-प्रदान सहित अदालती कार्यवाही की यथासमय रिपोर्ट करना, वाक्-स्वतंत्रता या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा है।
    • भारतीय  संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत लिखित और मौखिक रूप से अपना मत प्रकट करने हेतु  वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की गई  है।
  • प्रौद्योगिकी के आगमन के साथ, विभिन्न सोशल मीडिया मंचों के माध्यम से रिपोर्टिंग का प्रसार हुआ हैऔर इन मंचो से लोगों को सुनवाई के संदर्भ में व्यापक स्तर पर रियल-टाइम अपडेट प्राप्त हुए हैं। यह वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक विस्तार है जो मीडिया के लिये भी उपलब्ध है। 
    •  यह खुली अदालत की अवधारणा का एक आभासी (virtual) विस्तार है।
  • बाल यौन शोषण और वैवाहिक मुद्दों संबंधी मामलों को छोड़कर, अन्य मामलों में मुक्त प्रेस की अवधारणा को अदालती कार्यवाही तक विस्तारित किया जाना चाहिये।

न्यायिक अखंडता:

  • विभिन्न मुद्दों और घटनाओं के साथ-साथ न्यायालय की कार्यवाही जो कि सार्वजनिक डोमेन के हिस्सा है पर रिपोर्ट करने तथा उन्हें प्रसारित करने के मीडिया के अधिकार ने न्यायपालिका की अखंडता को बढ़ाया है।

ओपन कोर्ट अथवा खुली अदालत में सुनवाई की व्यवहार्यता:

  • खुली अदालत यह सुनिश्चित करती है कि न्यायिक प्रक्रिया सार्वजनिक जाँच के अधीन है जो  पारदर्शिता और जवाबदेही को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण है और लोकतांत्रिक संस्थाओं के कामकाज में पारदर्शिता लोगों में विश्वास स्थापित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • एक खुली अदालत प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि न्यायाधीश कानून के अनुसार और ईमानदारी के साथ कार्य करते हैं।
  • अदालतों के समक्ष आने वाले मामले विधायिका और कार्यपालिका की गतिविधियों के बारे में सार्वजनिक जानकारी के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।
  • खुली अदालत एक शैक्षिक उद्देश्य के रूप में भी कार्य करती है। न्यायालय नागरिकों को यह जानने के लिये एक मंच बन जाता है कि कानून का व्यावहारिक अनुप्रयोग उनके अधिकारों पर क्या प्रभाव डालता है।

भाषा: 

  • शीर्ष न्यायालय ने कहा कि न्यायाधीशों को खुली अदालत में बिना सोचे-समझे (Off-the-Cuff) टिप्पणी करने में सावधानी बरतने की आवश्यकता पर जोर देना चाहिये, क्योंकि इनकी गलत व्याख्या अतिसंवेदनशील हो सकती है।
  • खंडपीठ द्वारा प्रयुक्त भाषा और निर्णयों की भाषा, न्यायिक शिष्टाचार के अनुकूल होनी चाहिये।
    • भाषा, न्यायिक प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है, जोकि संवैधानिक मूल्यों के प्रति संवेदनशील भी होती है। 

भारत निर्वाचन आयोग(ECI)

परिचय:

  • यह एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है जो भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं का संचालन करने के लिए उत्तरदायी है।
  • चुनाव आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 को संविधान के अनुसार की गई थी। 25 जनवरी को राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है। 
  • निर्वाचन आयोग का सचिवालय नई दिल्ली में स्थित है।
  • चुनाव आयोग भारत में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव की संपूर्ण प्रक्रिया का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण करता है।
    • इसका राज्यों में पंचायतों और नगरपालिकाओं के चुनावों से कोई संबंध नहीं है।भारत का संविधान में इसके लिये एक अलग राज्य निर्वाचन आयोग (State Election Commission) का प्रावधान है।

संवैधानिक प्रावधान:

  • भारतीय संविधान का भाग XV (अनुच्छेद 324-329): यह चुनावों से संबंधित हैं, और यह इनसे संबंधित  मामलों के लिये एक अलग आयोग की स्थापना करता है।

स्रोत: द हिंदू