अपस्फीति के मायने और आगे की राह | 12 Aug 2017

चर्चा में क्यों ?

  • मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने वित्त वर्ष 2016-17 की आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट पेश करते हुए कहा है “नोटबंदी और जीएसटी के तो सकारात्मक नतीजे दिख रहे हैं, लेकिन कृषि ऋण माफी और वेतन आयोग आदि के कारण सरकारी खज़ाने पर बोझ बढ़ रहा है”।
  • दरअसल, यही कारण है कि भारतीय अर्थव्यवस्था दबाव में है। संभावना व्यक्त की जा रही है कि निकट भविष्य में भारतीय अर्थव्यवस्था पर अपस्फीति (deflation) का भारी दबाव होगा।

क्यों बढ़ सकती है अपस्फीति ?

  • वैश्विक तेल बाज़ार में बदलाव और अच्छे उत्पादन के कारण महँगाई कम हुई है, जिससे अपस्फीति के लक्षण दिखने लगे हैं।
  • दरअसल, वास्तविक ब्याज दरें 4.7 रही हैं, जो तटस्थ दर की तुलना में 25 से 75 आधार अंक अधिक हैं, जबकि अपस्फीति के लक्षण देखते हुए उन्हें तटस्थ दर से कम रहना चाहिए था।
  • समीक्षा रिपोर्ट में कृषि ऋण माफी पर चिंता जताते हुए कहा गया है कि इससे कुल मांग में 1.1 लाख करोड़ रुपए यानी जीडीपी के 0.7 फीसदी तक की कमी हो सकती है, जो पहले से ही सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था के लिये बेहतर संकेत नहीं है।

क्या है अपस्फीति ?

  • अपस्फीति, मुद्रास्फीति की उलट स्थिति है। दरअसल, यह कीमतों में लगातार गिरावट आने की स्थिति है। जब मुद्रास्फीति दर शून्य फीसदी से भी नीचे चली जाती है, तब अपस्फीति की परिस्थितियाँ बनती हैं। अपस्फीति के माहौल में उत्पादों और सेवाओं के मूल्य में लगातार गिरावट होती है। 
  • लगातार कम होती कीमतों को देखते हुए उपभोक्ता इस उम्मीद से खरीदारी और उपभोग के फैसले टालता रहता है कि कीमतों में और गिरावट आएगी। ऐसे में समूची आर्थिक गतिविधियाँ विरामावस्था में चली जाती हैं।
  • मांग में कमी आने पर निवेश में भी गिरावट देखी जाती है। अपस्फीति का एक और साइड इफेक्ट बेरोज़गारी बढ़ने के रूप में सामने आता है, क्योंकि अर्थव्यवस्था में मांग का स्तर काफी घट जाता है। रोज़गार की कमी मांग को और कम करती है, जिससे अपस्फीति को और तेज़ी मिलती है। 

आगे की राह

  • दरअसल, अपस्फीति की स्थिति में सरकार को ज़्यादा रुपए छापने होते हैं। ज़्यादा मुद्रा छापने से अर्थव्यवस्था में पैसा बढ़ जाता है और लोगों के पास खर्च के लिये अधिक रकम उपलब्ध हो जाती है।
  • अपस्फीति से निपटने के लिये दूसरा हथियार है रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति। सरकारी बॉन्ड खरीदकर आरबीआई पैसे की आपूर्ति बढ़ा सकता है। रिज़र्व बैंक दरों में और कटौती कर सकता है।