गुजरात में टिड्डियों का हमला | 26 Dec 2019

प्रीलिम्स के लिये:

टिड्डी चेतावनी संगठन

मेन्स के लिये:

टिड्डियों के आक्रमण के कारण गुजरात के किसानों की समस्याएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गुजरात में पाकिस्तान के सीमावर्ती कुछ ज़िलों में टिड्डियों के समूहों ने आक्रमण किया है, जो कि सीमावर्ती क्षेत्रों में कृषि करने वाले किसानों के लिये चिंता का विषय है।

मुख्य बिंदु:

  • इन टिड्डियों से उत्पन्न नवजात टिड्डियों के समूह के परिपक्व अवस्था में आ जाने पर उत्तरी गुजरात के तीन सीमावर्ती जिलों बनासकांठा, पाटन और कच्छ में फसल को उजाड़ देने से किसानों को और अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

क्या है स्थिति?

  • टिड्डियों के हमले से प्रभावित ज़िलों में बनासकांठा (Banaskantha) सर्वाधिक प्रभावित ज़िला है।
  • इन टिड्डियों का समूह दिन के दौरान उड़ता रहता है तथा रात में खेतों में ही रुक जाता है, जिससे टिड्डियों के इन समूहों को भगाना मुश्किल हो जाता है।
  • इन टिड्डियों को भगाने के लिये किसान ढोल और बर्तन पीटने जैसी पुरानी तकनीकों का प्रयोग कर रहे हैं।
  • गुजरात में बनासकांठा, पाटन, कच्छ और साबरकांठा तथा मेहसाणा के कुछ हिस्से टिड्डियों के हमले से सर्वाधिक प्रभावित हैं।

विभिन्न संस्थानों द्वारा दी गई चेतावनी की उपेक्षा:

  • संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (UN-Food and Agriculture Organisation- FAO) ने भारत और पाकिस्तान सहित दक्षिण एशिया में टिड्डियों के आक्रमण की चेतावनी जारी की थी।
  • इसके अतिरिक्त टिड्डी चेतावनी संगठन (Locust Warning Organization-LWO) ने भी अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर टिड्डियों के आक्रमण की भविष्यवाणी की थी। इसके बावजूद राज्य प्रशासन द्वारा निवारक उपाय नहीं किये गए।
  • LWO के अनुसार, ये टिड्डियाँ पाकिस्तान के सिंध प्रांत से उड़कर आ रही हैं और राजस्थान एवं गुजरात के गाँवों में फैल रही हैं, इसका कारण इस वर्ष दक्षिण-पश्चिमी-मानसून का लंबे समय तक प्रभावी रहना था।
  • मूलतः इन टिड्डियों ने इस वर्ष फरवरी में अफ्रीकी देशों सूडान और इरिट्रिया से सऊदी अरब एवं ईरान के रास्ते पाकिस्तान में प्रवेश किया तथा सिंध प्रांत से होते हुए राजस्थान और गुजरात क्षेत्र को अपने आक्रमण से प्रभावित किया।

राज्य प्रशासन द्वारा उठाए गए कदम:

  • केंद्रीय प्रशासन के साथ मिलकर राज्य प्रशासन ने इन टिड्डियों को नष्ट करने के लिये एक कीटनाशक-छिड़काव अभियान शुरू किया है।
  • सरकार ने प्रभावित क्षेत्रों में हेलीकॉप्टर के माध्यम से कीटनाशक रसायनों का छिड़काव कराए जाने की संभावना व्यक्त की है।
  • सरकार ने किसानों को आश्वासन दिया है कि किसानों को हुए नुकसान के आकलन के लिये एक सर्वेक्षण करेगा और तदनुसार किसानों को मुआवज़ा प्रदान करेगा।

टिड्डी (Locusts):

  • मुख्यतः टिड्डी एक प्रकार के बड़े उष्णकटिबंधीय कीड़े होते हैं जिनके पास उड़ने की अतुलनीय क्षमता होती है।
  • ये व्यवहार बदलने की अपनी क्षमता में अपनी प्रजाति के अन्य कीड़ों से अलग होते हैं और लंबी दूरी तक पलायन करने के लिये बड़े-बड़े झुंडों का निर्माण करते हैं।
  • टिड्डियों की प्रजाति में रेगिस्तानी टिड्डियों को सबसे खतरनाक और विनाशकारी माना जाता है।
  • आमतौर पर जून और जुलाई के महीनों में इन्हें आसानी से देखा जाता है क्योंकि ये गर्मी और बारिश के मौसम में ही सक्रिय होते हैं।
  • सामान्य तौर पर ये प्रतिदिन 150 किलोमीटर तक उड़ सकते हैं।
  • यदि अच्छी बारिश होती है और परिस्थितियाँ इनके अनुकूल रहती हैं तो इनमें तेज़ी से प्रजनन करने की क्षमता भी होती है और ये तीन महीनों में 20 गुना तक बढ़ सकते हैं।

वनस्पति के लिये खतरा :

  • एक वयस्क टिड्डी प्रतिदिन अपने वज़न के बराबर भोजन (लगभग 2 ग्राम वनस्पति प्रतिदिन) खा सकती है जिसके कारण ये फसलों और खाद्यान्नों के लिये बड़ा खतरा बन जाते हैं।
  • यदि इनसे होने वाले संक्रमण को नियंत्रित न किया जाए तो गंभीर परिस्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।

टिड्डियों को नियंत्रित करने के उपाय :

  • इसके झुंडों द्वारा रखे गए अण्डों का विनाश।
  • इन्हें फँसाने के लिये घेराबंदी करना।
  • कीटनाशक का उपयोग

भारत में टिड्डी:

भारत में टिड्डियों की निम्निखित चार प्रजातियाँ पाई जाती हैं :

  • रेगिस्तानी टिड्डी (Desert Locust)
  • प्रवासी टिड्डी ( Migratory Locust)
  • बॉम्बे टिड्डी (Bombay Locust)
  • ट्री टिड्डी (Tree Locust)

टिड्डी चेतावनी संगठन:

(Locust Warning Organization-LWO)

  • इसका मुख्यालय फरीदाबाद में स्थित है।
  • कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय (Ministry of Agriculture & Farmers Welfare) के वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय (Directorate of Plant Protection Quarantine & Storage) के अधीन आने वाला टिड्डी चेतावनी संगठन मुख्य रूप से रेगिस्तानी क्षेत्रों राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में टिड्डियों की निगरानी, ​​सर्वेक्षण और नियंत्रण के लिये ज़िम्मेदार है।

LWO के कार्य:

  • टिड्डियों पर अनुसंधान करना।
  • राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ संपर्क और समन्वय स्थापित करना।
  • टिड्डी चेतावनी संगठन के सदस्यों, राज्य के अधिकारियों, BSF कर्मियों और किसानों को इस क्षेत्र में प्रशिक्षण प्रदान करना।
  • टिड्डियों के कारण निर्मित होने वाली आपातकालीन परिस्थितियों से निपटने के लिये टिड्डी नियंत्रण अभियान प्रारंभ करना।
  • अंतर्राष्ट्रीय दायित्त्वों और प्रतिबद्धताओं को मानते हुए अनुसूचित मरुस्थलीय क्षेत्रों (Scheduled Desert Area-SDA) में टिड्डियों की निगरानी और आवाज़ाही को नियंत्रित करना।

स्रोत- द हिंदू