महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती | 26 Feb 2022

प्रिलिम्स के लिये:

महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती, आर्य समाज।

मेन्स के लिये:

महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती और उनका योगदान, महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व, आर्य समाज के मार्गदर्शक सिद्धांत।

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2022 में महर्षि दयानंद सरस्वती 26 फरवरी को मनाई जा रही है।

  • पारंपरिक हिंदू कैलेंडर के अनुसार, दयानंद सरस्वती का जन्म फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को हुआ था।

Maharishi-Dayanand-Saraswati

महर्षि दयानंद सरस्वती:

  • जन्म:
    • स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी, 1824 को गुजरात के टंकारा में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता यशोधाबाई और लालजी तिवारी रूढ़िवादी ब्राह्मण थे।
    • मूल नक्षत्र के दौरान पैदा होने के कारण उन्हें पहले मूल शंकर तिवारी नाम दिया गया था।
    • सत्य की खोज में वे पंद्रह वर्ष (1845-60) तक तपस्वी के रूप में भटकते रहे।
    • दयानंद के विचार उनकी प्रसिद्ध कृति सत्यार्थ प्रकाश में प्रकाशित हुए थे।
  • समाज के लिये योगदान:
    • वह एक भारतीय दार्शनिक, सामाजिक नेता और आर्य समाज के संस्थापक थे।
      • आर्य समाज वैदिक धर्म का एक सुधार आंदोलन है और वह वर्ष 1876 में "भारत भारतीयों के लिये" के रूप में स्वराज का आह्वान करने वाले पहले व्यक्ति थे।
    • वह एक स्व-प्रबोधित व्यक्ति और भारत के महान नेता थे जिन्होंने भारतीय समाज पर व्यापक प्रभाव छोड़ा। 
    • उनके द्वारा आर्य समाज की पहली इकाई की स्थापना औपचारिक रूप से 1875 में मुंबई (तब बॉम्बे) में की गई थी और बाद में इसका मुख्यालय लाहौर में स्थापित किया गया था।
    • उनके एक अखंड भारत के दृष्टिकोण में वर्गहीन और जातिविहीन समाज (धार्मिक, सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर) तथा विदेशी शासन से मुक्त भारत शामिल था, जिसमें आर्य धर्म सभी का सामान्य धर्म हो।
    • उन्होंने वेदों से प्रेरणा ली और उन्हें 'भारत के युग की चट्टान', ‘हिंदू धर्म का अचूक और सच्चा मूल बीज’ माना। उन्होंने "वेदों की ओर लौटो" का नारा दिया।
    • उन्होंने चतुर्वर्ण व्यवस्था की वैदिक धारणा प्रस्तुत की इसके अनुसार किसी भी व्यक्ति के वर्ण  का निर्धारण उसकी जाति के अनुसार नहीं बल्कि उसके द्वारा पालन किये जाने वाले व्यवसाय के आधार पर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र के रूप में पहचाना जाता था।
  • शिक्षा प्रणाली में योगदान:
    • उन्होंने शिक्षा प्रणाली में पूरी तरह से बदलाव की शुरुआत की और उन्हें आधुनिक भारत के दूरदर्शी लोगों में से एक माना जाता है।
    • स्वामी दयानंद सरस्वती के दृष्टिकोण को साकार करने के लिये वर्ष 1886 में डीएवी (दयानंद एंग्लो वैदिक) स्कूल अस्तित्व में आए।
    • पहला डीएवी स्कूल लाहौर में स्थापित किया गया और महात्मा हंसराज इसके प्रधानाध्यापक थे।

आर्य समाज के बारे में: 

  • आर्य समाज का उद्देश्य वेदों (सबसे पुराने हिंदू धर्मग्रंथ) को सत्य के रूप में फिर से स्थापित करना है। उन्होंने वेदों में बाद की अभिवृद्धि को खारिज कर दिया और अपनी व्याख्या में अन्य वैदिक विचारों को भी शामिल किया।
    • वर्ष 1920 और 1930 के दशक की शुरुआत में कई मुद्दों पर तनाव बढ़ गया। मुस्लिम "मस्जिद से पहले संगीत", गौ रक्षा आंदोलन और आर्य समाज के शुद्धि आंदोलन से नाराज़ थे।
  • आर्य समाज का प्रभाव  पश्चिमी और उत्तरी भारत में अधिक रहा है।
  • आर्य समाज में मूर्ति पूजा का विरोध, पशु बलि, श्राद्ध (पूर्वजों की ओर से अनुष्ठान), जन्म के आधार पर जाति का निर्धारण न कि योग्यता के आधार पर, अस्पृश्यता, बाल विवाह, तीर्थयात्रा, पुजारी पद्धति और मंदिर प्रसाद की पूजा का विरोध किया जाता है।
  • यह वेदों की अचूकता, कर्म सिद्धांत (पिछले कर्मों का संचित प्रभाव) और संसार (मृत्यु व पुनर्जन्म की प्रक्रिया), गाय की पवित्रता, संस्कारों के महत्त्व (व्यक्तिगत संस्कार) की प्रभावशीलता को कायम रखता है। तथा अग्नि के लिये  वैदिक यज्ञों की प्रभावकारिता एवं सामाजिक सुधार के कार्यक्रमों की पुष्टि करता है।
  • आर्य समाज द्वारा महिला शिक्षा के उत्थान के साथ ही अंतर्जातीय विवाह को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य किया गया। विधवाओं के लिये मिशन, अनाथालय व घरों का निर्माण, स्कूलों तथा कॉलेजों का एक नेटवर्क स्थापित किया और अकाल राहत व चिकित्सा कार्य किये गए।

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया