सुखाग्रस्त महाराष्ट्र में शुरू होगा तीन वर्षीय कृतिम वर्षा अभियान | 16 Feb 2017

सन्दर्भ

  • गौरतलब है कि इस बार मानसून के मौसम में महाराष्ट्र के सोलापुर के आसमान में बादलों के ऊपर सिल्वर आयोडाइड से भरे हुए विमानों को उड़ाया जाएगा, बादलों में सिल्वर आयोडाइड के छिड़काव के द्वारा कृत्रिम वर्षा कराई जाएगी।
  • वस्तुतः इस प्रकार के एक तीन वर्षीय अभियान के माध्यम से यह देखा जाएगा कि क्या कृत्रिम वर्षा द्वारा सूखे से निपटने योग्य बारिश कराई जा सकती है या नहीं!
  • विदित हो कि 250 करोड़ की लागत वाला यह अभियान इस प्रकार का पहला अभियान है। यह अभियान भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम संस्थान(Indian institute of tropical meteorology) के तत्वधान में चलाया जाएगा।

क्या है कृत्रिम वर्षा?

  • कृत्रिम बारिश का मतलब खास तरह की उस प्रक्रिया से है जिसके जरिये बादलों की भौतिक अवस्था में कृत्रिम तरीके से बदलाव लाया जाता है जो इसे बारिश के अनुकूल बनाता है। यह प्रक्रिया क्लाउड सीडिंग कहलाती है। बादल पानी के बहुत छोटे -छोटे कणों से बने होते हैं। जो कम भार की वज़ह से खुद ही पानी की शक्ल में जमीन पर बरसने में पूरी तरह सक्षम नहीं होते हैं। कभी-कभी किसी खास परिस्थितियों में जब ये कण इकट्ठे हो जाते हैं, तो इनका आकार और भार अच्छा खासा बढ़ जाता है। तब ये गुरुत्वाकर्षण के कारण धरती पर बारिश के रूप में गिरने लगते हैं। गौरतलब है कि बादल का एक छोटा सा टुकड़ा अपने भीतर तकरीबन 750 क्यूबिक किलोलीटर पानी समेटे रखता है।
  • हवा के जरिये क्लाउड-सीडिंग करने के लिये आम तौर पर विमान की मदद ली जाती है। विमान में सिल्वर आयोडाइड के दो बर्नर या जनरेटर लगे होते हैं, जिनमें सिल्वर आयोडाइड का घोल उच्च दाब पर भरा होता है। तय इलाके में विमान हवा की उल्टी दिशा में चलाया जाता है। उपयुक्त बादलों से सामना होते ही बर्नर चालू कर दिये जाते हैं। शुष्क बर्फ, पानी को जीरो डिग्री सेल्सियस तक ठंडा कर देती है, जिससे हवा में मौजूद पानी के कण जम जाते हैं। कण इस तरह से बनते हैं, जैसे वे कुदरती बर्फ हों। इसके लिये बैलून, विस्फोटक रॉकेट का भी प्रयोग किया जाता है।

कृत्रिम बारिश की चुनौतियाँ

  • क्लाउड सीडिंग में यह ध्यान रखना पड़ता है कि किस तरह का और कितनी मात्रा में रसायनों का इस्तेमाल करना है। मौसम का मिजाज कृत्रिम बारिश के अनुकूल है या नहीं। जहाँ बारिश करानी है, वहाँ के हालात कैसे हैं। बादल के किस्म, हवा की गति और दिशा क्या है।
  • जहाँ रसायन फैलाना है, वहाँ का वातावरण कैसा है। इसके लिये कंप्यूटर और राडार के प्रयोग से मौसम के मिज़ाज, बादल बनने की प्रक्रिया और बारिश के लिये जिम्मेदार घटकों पर हर पल नज़र रखनी होती है। क्लाउड-सीडिंग तभी कारगर होती है, जब बादल इसके लिये उपयुक्त हों।

महाराष्ट्र के लिये कृत्रिम वर्षा का महत्त्व

  • कुछ सालों से महाराष्‍ट्र सूखे की मार झेल रहा है। बीते कुछ सालों में बार-बार ऐसे हालात बने हैं और महाराष्‍ट्र को गर्मियों के मौसम में पानी की कमी से जूझना पड़ा है। ऐसे में महाराष्‍ट्र सरकार इस समस्‍या का स्‍थायी समाधान खोजने का प्रयास कर रही ताकि भविष्‍य में ऐसे हालात पैदा न हों। यही वज़ह है कि सरकार राज्‍य में क्‍लाउड सीडिंग करने की योजना बना रही है।
  • सरकार ने क्लाउड सीडिंग यानि बादलों का बीजारोपण करने की योजना तैयार की है। सरकार का प्रयास है कि ये कार्यक्रम मानसून की शुरुआत से ही प्रारंभ हो जाए ताकि भविष्‍य में पानी की कमी न होने पाए और मराठवाड़ा जैसे क्षेत्रों में पीने का पानी लोगों को पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो सके। हालाँकि सूखे के समय यह प्रक्रिया ज़्यादा सफल नहीं है, क्योंकि सूखे के समय वैसे बादल कम होते हैं जो क्लाउड-सीडिंग के लिये उपयुक्त माने जाते हैं।