महाराजा रणजीत सिंह | 18 Aug 2021

प्रिलिम्स के लिये

महाराजा रणजीत सिंह

मेन्स के लिये

महाराजा रणजीत सिंह का योगदान

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2019 में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के ‘लाहौर किले’ में स्थापित महाराजा रणजीत सिंह की प्रतिमा को हाल ही में एक धार्मिक कट्टरपंथी संगठन ‘तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान’ (TLP) के सदस्य द्वारा तोड़ दिया गया।

Maharaja-Ranjit-Singh

प्रमुख बिंदु

प्रारंभिक जीवन

  • उनका जन्म 13 नवंबर, 1780 को गुजरांवाला में हुआ था, जो कि अब पाकिस्तान में है।
  • वह ‘महा सिंह’ की इकलौती संतान थे, जिनकी मृत्यु के बाद वर्ष 1792 में रणजीत सिंह एक सिख समूह ‘शुक्रचकियों’ के प्रमुख बने।
  • उनकी रियासत में गुजरांवाला शहर और आसपास के गाँव शामिल थे, जो अब पाकिस्तान में हैं।

योगदान

  • सिख साम्राज्य के संस्थापक:
    • उन्होंने ‘मिस्लों’ को समाप्त कर सिख साम्राज्य की स्थापना की थी।
      • उस समय पंजाब पर शक्तिशाली सरदारों का शासन था, जिन्होंने इस क्षेत्र को ‘मिस्लों’ में विभाजित किया था।
      • मिस्ल, सिख संघ के संप्रभु राज्यों को संदर्भित करता है जो 18वीं शताब्दी के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग में पंजाब क्षेत्र में मुगल साम्राज्य के पतन के बाद उभरे थे।
      • उन्होंने 19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में उत्तर-पश्चिमी भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन किया।
    • लाहौर (उनकी राजधानी) को अफगान आक्रमणकारियों से मुक्त करने में उनकी सफलता के लिये उन्हें ‘पंजाब का शेर’ (शेर-ए-पंजाब) की उपाधि दी गई थी।
  • सेना का आधुनिकीकरण
    • उन्होंने उस समय की एशिया की सबसे शक्तिशाली स्वदेशी सेना को और मज़बूत करने के लिये युद्ध में ‘पश्चिमी आधुनिक हथियारों’ के साथ पारंपरिक खालसा सेना को एकीकृत किया।
    • उन्होंने अपने सैनिकों को प्रशिक्षित करने के लिये बड़ी संख्या में यूरोपीय अधिकारियों, विशेष रूप से फ्राँसीसी अधिकारियों को नियुक्त किया।
    • उन्होंने अपनी सेना के आधुनिकीकरण के लिये एक फ्राँसीसी जनरल को नियुक्त किया था।
  • विस्तृत साम्राज्य:
    • रणजीत सिंह के अंतर-क्षेत्रीय साम्राज्य (कई राज्यों में फैले) में काबुल, पेशावर के अलावा लाहौर और मुल्तान के पूर्व मुगल प्रांत शामिल थे।
    • इनके साम्राज्य की सीमाएँ लद्दाख तक थीं जो उत्तर-पूर्व में खैबर दर्रा (भारत पर आक्रमण करने के लिये विदेशी शासकों द्वारा अपनाया गया मार्ग) और दक्षिण में पंजनाद (जहाँ पंजाब की पाँच नदियाँ सिंधु में मिलती हैं) तक थीं।

विरासत:

  • महाराजा अपने न्यायपूर्ण और धर्मनिरपेक्ष शासन के लिये जाने जाते थे। उनके दरबार में हिंदू और मुस्लिम दोनों को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया था।
  • उन्होंने अमृतसर में हरमंदिर साहिब को सोने से ढककर स्वर्ण मंदिर में परिवर्तित किया दिया।
  • उन्हें महाराष्ट्र के नांदेड़ में गुरु गोबिंद सिंह के अंतिम विश्राम स्थल पर हजूर साहिब गुरुद्वारे के वित्तपोषण का श्रेय भी दिया जाता है।

मृत्यु:

  • एक विजेता के रूप में लाहौर शहर में प्रवेश करने के लगभग 40 साल बाद जून 1839 में लाहौर में उनकी मृत्यु हो गई।
  • उनकी मृत्यु के छह वर्ष बाद ही उनके द्वारा स्थापित सिख राज्य ध्वस्त हो गया जिसका प्रमुख कारण प्रमुख प्रतिद्वंद्वी समूहों के बीच आंतरिक संघर्ष था। 

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान:

  • वर्ष 2016 में फ्रांँस के सेंट ट्रोपेज़ शहर में सम्मान के प्रतीक के रूप में महाराजा की कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया।
  • उनके सिंहासन को लंदन के विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय में प्रमुख रूप से प्रदर्शित किया गया है।
  • वर्ष 2018 में लंदन ने एक प्रदर्शनी की मेज़बानी की जो सिख साम्राज्य के इतिहास और महाराजा द्वारा बनाए गए अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर केंद्रित थी

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस