लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट (Living Planet Report), 2018 | 03 Nov 2018

चर्चा में क्यों?

हाल ही में WWF (World Wildlife Fund) ने अपनी लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2018 जारी की है। इस रिपोर्ट में वन्यजीवन पर मानवीय गतिविधियों के भयानक प्रभाव के साथ-साथ जंगलों पर पड़ने वाले प्रभाव, प्रजातियों के विलुप्तिकरण, सीमाओं के संकुचन तथा समुद्र पर पड़ने वाले प्रभावों पर भी चर्चा की गई है। रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है कि 1970 के बाद मानवीय गतिविधियों की वज़ह से वन्यजीवों की आबादी में 60 प्रतिशत तथा वेटलैंड्स में 87 प्रतिशत की कमी आई है।

  • इस रिपोर्ट में प्रजातियों का वितरण, विलुप्त होने का जोखिम और सामुदायिक संरचना में आने वाले बदलावों को मापने वाले तीन अन्य संकेतकों के बारे में भी चर्चा की गई। ये तीनों मानक गंभीर गिरावट या परिवर्तन को प्रदर्शित करते हैं।

 लिविंग प्लैनेट इंडेक्स

  • लिविंग प्लैनेट इंडेक्स (Living Planet Index - LPI), दुनिया भर से प्रजातियों की कशेरुकी (vertebrate) आबादी में आने वाले रुझानों के आधार पर वैश्विक जैविक विविधता की स्थिति का संकेतक है।
  • सर्वप्रथम, वर्ष 1998 में इसे प्रकाशित किया गया था। यह रिपोर्ट वर्ष में दो बार प्रकाशित की जाती है।
  • जैव विविधता के सम्मेलन (Convention of Biological Diversity-CBD) द्वारा 2011-2020 के लक्ष्य 'जैव विविधता के नुकसान को रोकने के लिये प्रभावी और तत्काल कार्रवाई करने' की दिशा में प्रगति के संकेतक के रूप में इसे अपनाया गया है।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु

  • रिपोर्ट के इस संस्करण में मृदा जैव विविधता का खंड नया है। रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक मृदा जैव विविधता पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। वेटलैंड्स का गायब होना भारत के लिये गंभीर चिंता का विषय है।
  • इस रिपोर्ट में प्राकृतिक आवास का ह्रास या कमी, संसाधनों का अत्यधिक दोहन, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण एवं आक्रामक प्रजातियों से होने वाले खतरों को भी सूचीबद्ध किया गया है।

जनसंख्या में कमी (1970-2014)

  • जैव विविधता में गिरावट का मुख्य कारण कृषि योग्य भूमि रूपांतरण की अतिवृद्धि है।
  • कशेरुकी (vertebrate) जानवरों की संख्या में 60 प्रतिशत की गिरावट।
  • ताज़े पानी के जीवों की आबादी में 80% गिरावट।
  • लैटिन अमेरिका में 90% वन्यजीवन की क्षति।

विलुप्त होती प्रजातियाँ

  • 1970 से 2014 तक मछली, पक्षियों, स्तनधारियों, उभयचर और सरीसृपों की आबादी में औसतन 60% की कमी हुई है और इसी अवधि में ताज़े पानी में रहने वाली प्रजातियों की आबादी में 83% की कमी आई है।
  • 1960 से अब तक वैश्विक पारिस्थितिकीय पदचिह्न (footprint) में 190% से अधिक की वृद्धि हुई है।
  • वैश्विक स्तर पर 1970 से अब तक आर्द्रभूमि की सीमा में 87% की कमी हुई है।

सिकुड़ते वन क्षेत्र

  • वन क्षेत्र में ह्रास का मुख्य कारण मानव द्वारा दिनों-दिन बढ़ता वन संसाधनों का उपभोग है। ऊर्जा, भूमि और पानी की बढ़ती मांग के चलते प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन जारी है। उपभोग संकेतक जैसे - पारिस्थितिक पदचिह्न (Ecological Footprint), इस समग्र संसाधन उपभोग की एक तस्वीर प्रस्तुत करते हैं, जो इस बात का प्रमाण है कि किस सीमा तक पर्यावरण क्षतिग्रस्त हो चुका है।
  • पिछले पाँच दशकों में अमेज़न वर्षावन का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा (दुनिया का सबसे बड़ा वर्षावन) विलुप्त हो गया है। उष्णकटिबंधीय वनों की कटाई भी लगातार  जारी है, मुख्य रूप से सोयाबीन, ताड़ के वृक्ष और मवेशियों के चरागाह के रूप में इनका इस्तेमाल दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है।
  • वैश्विक स्तर पर वर्ष 2000 से 2014 के बीच दुनियाभर में 920,000 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र नष्ट हो गया, जो लगभग पाकिस्तान या फ्राँस और जर्मनी के आकार के बराबर क्षेत्र था।

क्षीण होते महासागर

  • दुनिया भर के सभी प्रमुख समुद्री परिवेशों में प्लास्टिक प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है, महासागरों के किनारों,  सतही जल यहाँ तक की गहरे समुद्री हिस्सों तक इसकी मौजूदगी के साक्ष्य पाए जाते हैं, जिसमें दुनिया की सबसे गहरी समुद्री खाई मारियाना ट्रेंच (Mariana Trench) भी शामिल है।
  • झीलों, नदियों और आर्द्रभूमि जैसे ताज़े पानी के आवासीय क्षेत्र सबसे अधिक खतरे में हैं। ये सभी आवासीय क्षेत्र रूपांतरण, विखंडन और विनाश सहित विदेशी प्रजातियों के आक्रमण, प्रदूषण, बीमारियों और जलवायु परिवर्तन जैसे अन्य कारकों से भी प्रभावित होते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के कारण सबसे अधिक नुकसान कोरल रीफ को पहुँचा है।
  • तटीय मैंग्रोव वन, जो तीव्र समुद्री तूफानों से बचने में सहायक होते है, की संख्या पिछले 50 वर्षों में घटकर आधे से भी कम हो गई है।

आगे की राह

  • दो प्रमुख वैश्विक नीति प्रक्रियाओं यथा वर्ष 2020 तक सीबीडी (Convention on Biological Diversity-CBD) और सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals) को लागू किये जाने से आशा की किरण नज़र आती है। संभवतः इन दोनों के अनुपालन से इस समस्त परिदृश्य में कुछ बदलाव आए और ये आँकड़ें जीवन के समर्थन में साक्ष्य प्रस्तुत करने में सहायक साबित हों।
  • अन्य महत्त्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों, जैसे- जलवायु परिवर्तन के संबंध में प्रत्येक अंतर्संबंधित इकाई भले ही वह  सरकार हो या व्यापार अथवा वित्त, अनुसंधान, नागरिक समाज और व्यक्ति सभी को अपने-अपने स्तर पर आवश्यक प्रयास करने चाहिये ताकि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सटीक एवं प्रभावी कदम उठाए जा सकें।