लिंगराज मंदिर | 20 Aug 2020

प्रिलिम्स के लिये:

देउल शैली, लिंगराज मंदिर, गंग शासक, सोम वंश

मेन्स के लिये:

भारत में मंदिर स्थापत्य कला , उत्तर भारत एवं दक्षिण भारत के मंदिरों की स्थापत्य कला में अंतर्

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ओडिशा सरकार द्वारा 11 वीं शताब्दी के लिंगराज मंदिर (Lingaraj Temple) को उसकी 350 वर्ष पूर्व वाली संरचनात्मक स्थिति प्रदान करने की घोषणा की गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • लिंगराज मंदिर, शिव को समर्पित एक मंदिर है जो ओडिशा के भुवनेश्वर ज़िले में स्थित सबसे पुराने मंदिरों में से एक है।
  • यह मंदिर कलिंग वास्तुकला की सर्वोत्कृष्टता का दर्शाता है एवं भुवनेश्वर में स्थापत्य परंपरा के मध्यकालीन चरणों की पराकाष्ठा का प्रतिनिधित्व करता है।
  • भुवनेश्वर को एकाम्र क्षेत्र (Ekamra Kshetra) कहा जाता है क्योंकि 13 वीं शताब्दी के संस्कृत ग्रंथ के अनुसार लिंगराज का देवता मूल रूप से एक आम के वृक्ष ( एकाम्र ) से संबंधित था।
  • माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण सोमवंशी राजवंश ( Somavamsi Dynasty) के राजाओं द्वारा किया गया था, जिसमे आगे चलकर गंग शासकों ( Ganga rulers) द्वारा और निर्माण कार्य कराया गया।
  • इस मंदिर में विष्णु की मूर्तियाँ स्थापित हैं जो संभवत: गंग शासकों के समय जगन्नाथ संप्रदाय के विकास क्रम को इंगित करती हैं, जिन्होंने 12 वीं शताब्दी में पुरी में जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कराया था।


लिंगराज मंदिर की वास्तुकला:

  • इस मंदिर का निर्माण देउल शैली (Deula Style) में किया गया है, जिसमें चार घटक शामिल हैं-
    • विमान- गर्भगृह युक्त संरचना, (Vimana- Structure Containing the Sanctum)
    • जगमोहन- असेंबली हॉल, (Jagamohana (Assembly Hall)
    • नटामंडीरा-फेस्टिवल हॉल (Natamandira- Estival Hall)
    • भोग-मंडप-प्रसाद का हॉल (Bhoga-Mandapa- Hall of Offerings)

स्रोत: द हिंदू