लाइटसैल 2 | 27 Jul 2019

चर्चा में क्यों?

प्लैनेटरी सोसायटी (Planetary Society) ने लाइटसैल प्रोजेक्ट का प्रसार करते हुए लाइटसैल 2 को तैनात किया है, जिसका उद्देश्य सौर ऊर्जा के संचालन के माध्यम ब्रह्मांड के पार अंतरिक्ष अभियानों की क्षमता विकसित करना है।

Light sail 2

प्रमुख बिंदु:

  • वर्ष 1600 के आस-पास पहली बार जर्मन खगोल वैज्ञानिक जोहान्स केपलर (Johannes Kepler) द्वारा सूर्य के फोटॉन की ऊर्जा से अंतरिक्ष यात्रा की कल्पना की गई थी।
  • वर्ष 1964 में आर्थर सी. क्लार्क (Arthur C. Clarke) ने भी इस प्रकार की संकल्पना सनजमेर (Sunjammer) नामक एक छोटी-सी कहानी में की थी।
  • इस प्रकार की संकल्पनाओं को मूर्त रूप देने के लिये वर्ष 1970 के आस-पास से लाइटसैल (सौर पाल) के निर्माण के अनुसंधान पर ज़ोर दिया जाने लगा था।
  • लाइटसैल प्रोजेक्ट एक गैर सरकारी संगठन प्लैनेटरी सोसायटी (Planetary Society) के तत्त्वावधान में संचालित है।
  • इस प्रकार के प्रोजेक्टों के सफल होने से अंतरिक्ष अभियानों में ईधन संबंधी समस्या को काफी हद तक दूर किया जा सकता है क्योंकि अंतरिक्ष में फोटॉन का प्रसार अनवरत रूप से हो रहा है।
  • जापान की अंतरिक्ष एजेंसी JAXA ने वर्ष 2010 में पहले लाइटसैल (सौर पाल) का प्रयोग शुक्र के अन्वेषण हेतु अंतरिक्ष यान इक्रॉस (Ikaros) में किया था; लेकिन यह अभियान पूर्णतः सफल नहीं हो सका।

लाइटसैल 2:

  • ऐसा अनुमान है कि लाइटसैल 2 अन्य अंतरिक्ष सेटेलाइटों की अपेक्षा ज़्यादा तीव्रता से कार्य करेगा, उदाहरण के लिये यदि नासा के वोयेजर अंतरिक्ष यान (Voyager spacecraft) को लाइट सैल के माध्यम से भेजा गया होता तो यह अपनी 40 वर्ष की यात्रा को आधे समय में ही पूरा कर लेता।

वोयेजर अंतरिक्ष यान (Voyager spacecraft): नासा द्वारा 15 सितंबर,1977 को बाह्य सोलर प्रणाली के अध्ययन के लिये वोयेजर अंतरिक्ष यान को लॉन्च किया गया था।

  • लाइटसैल 2 पृथ्वी के समीप की कक्षा में लॉन्च किया गया पहला लाइटसैल (सौर पाल) है। लाइटसैल 2 बॉक्सिंग रिंग के आकार का है और इसे पतली माइलर (Mylar) सामग्री से बनाया गया है।
  • पृथ्वी पर प्लैनेटरी सोसायटी की इंजीनियरिंग टीम इस लाइटसैल को सूर्य से 90 डिग्री के कोण पर रखेगी।
  • लाइटसैल पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए जब सबसे दूर बिंदु पर पहुँचता है तो इस सबसे दूर के बिंदु को एपोजी (Apogee) कहते हैं।
  • प्राथमिक मिशन लगभग एक महीने तक चलने के बाद लाइटसैल 2 एक वर्ष तक पृथ्वी की परिक्रमा करेगा।
  • लाइटसैल 2 को कभी-कभी पृथ्वी से नग्न आँखों द्वारा भी देखा जा सकेगा।

स्रोत: द न्यूयार्क टाइम्स