लेमरू हाथी रिज़र्व | 12 Jul 2021

प्रिलिम्स के लिये

 लेमरू हाथी रिज़र्व , वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972, भारत में हाथियों की संरक्षण स्थिति

मेन्स के लिये 

लेमरू हाथी रिज़र्व की अवस्थिति तथा इसका महत्त्व, रिज़र्व क्षेत्र की वजह से पड़ने वाले प्रभाव

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में छत्तीसगढ़ सरकार ने लेमरू हाथी रिज़र्व क्षेत्र को 1,995 वर्ग किमी. से घटाकर 450 वर्ग किमी. तक रखने का प्रस्ताव दिया है।

  •  वर्ष 2007 में केंद्र सरकार ने 450 वर्ग किमी. वन्य क्षेत्र में लेमरू हाथी रिज़र्व के निर्माण की अनुमति दी तथा वर्ष 2019 में राज्य सरकार ने इस क्षेत्र को 1,995 वर्ग किमी. तक विस्तारित करने का फैसला किया।

प्रमुख बिंदु 

परिचय :

  • यह रिज़र्व छत्तीसगढ़ के कोरबा ज़िले में स्थित है।
  • रिज़र्व का लक्ष्य हाथियों को स्थायी आवास प्रदान करने के साथ-साथ  मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकना तथा संपत्ति के विनाश को कम करना है।
  • इससे पूर्व  अक्तूबर 2020 में राज्य सरकार ने वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 (WLPA) की धारा 36A के अंतर्गत रिज़र्व (संरक्षित क्षेत्र/ रिज़र्व) को अधिसूचित किया था।
    • धारा 36A में एक विशेष प्रावधान है जो संघ सरकार को संरक्षित क्षेत्र/ रिज़र्व के रूप में अधिसूचित की जाने वाली भूमि के केंद्र से संबंधित क्षेत्रों के मामले में अधिसूचना की प्रक्रिया में एक अधिकार देती है।
    • हाथी रिज़र्व WLPA के तहत स्वीकृत ​नहीं हैं।

रिज़र्व  क्षेत्र को कम करने का कारण:

  • रिज़र्व के अंतर्गत प्रस्तावित क्षेत्र हसदेव अरण्य जंगलों का हिस्सा है, साथ ही यह एक  अधिक विविधतापूर्ण बायोज़ोन है जो कोयले के भंडार में भी समृद्ध है।
  • इस क्षेत्र के 22 कोयला खदानों/ब्लॉकों में से 7 को पहले ही आवंटित किया जा चुका है, जबकि तीन में उत्खनन कार्य जारी है तथा अन्य चार में उत्खनन  की प्रक्रिया की दिशा में कार्यरत हैं।
  • आरक्षित क्षेत्र को विस्तारित करने में सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि कई कोयला खदानें अनुपयोगी हो जाएंगी।

रिज़र्व का महत्त्व:

  • अकेले उत्तरी छत्तीसगढ़ 240 से अधिक हाथियों का आवास स्थल है। पिछले 20 वर्षों में राज्य में 150 से अधिक हाथियों की मौत हुई है, जिसमें 16 हाथियों की मृत्यु जून से अक्तूबर 2020 के मध्य हुई है।
  • छत्तीसगढ़ राज्य में पाए जाने वाले हाथी अपेक्षाकृत नए हैं। हाथियों ने वर्ष 1990 में अविभाजित मध्य प्रदेश में विचरण शुरू किया।
  • जबकि मध्य प्रदेश में झारखंड से आने वाले जानवरों के विचरण पर अंकुश लगाने की नीति थी। छत्तीसगढ़ के गठन के बाद औपचारिक नीति के अभाव के चलते हाथियों को राज्य के उत्तर और मध्य भागों में एक गलियारे के रूप में उपयोग करने को अनुमति प्रदान की गई।
  • चूँकि ये जानवर अपेक्षाकृत नए थे, इसलिये मानव-पशु संघर्ष तब शुरू हुआ जब हाथी भोजन की तलाश में बसे हुए क्षेत्रों में भटकने लगे।

छत्तीसगढ़ में अन्य संरक्षित क्षेत्र:

National-Park-Sanctuaries

हाथी:

  • हाथी कीस्टोन प्रजाति (keystone species) है।
  • एशियाई हाथी की तीन उप-प्रजातियाँ हैं- भारतीय, सुमात्रन और श्रीलंकाई।
  • महाद्वीप पर शेष बचे हाथियों की तुलना में भारतीय हाथियों की संख्या और रेंज व्यापक है।

भारतीय हाथियों की संरक्षण स्थिति:

हाथियों के संरक्षण के लिये भारत की पहल:

  • गज यात्रा (Gaj Yatra): यह हाथियों की रक्षा के लिये शुरू किया गया एक राष्ट्रव्यापी अभियान है जिसकी शुरुआत वर्ष 2017 में विश्व हाथी दिवस  (World Elephant Day) के अवसर पर की गई थी।
  • प्रोजेक्ट एलीफेंट (Project Elephant): यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसे वर्ष 1992 में शुरू किया गया था।
  • सीड्स बम या बॉल (Seed Bombs): हाल ही में ओडिशा के अथागढ़ वन प्रभाग ने मानव-हाथी संघर्ष को रोकने के लिये जंगली हाथियों हेतु खाद्य भंडार को समृद्ध करने हेतु विभिन्न आरक्षित वन क्षेत्रों के अंदर बीज गेंदों (या बम) का प्रयोग शुरू कर दिया है।

जानवरों के प्रवासी मार्ग का अधिकार:

  • हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने नीलगिरि हाथी कॉरिडोर (Nilgiris Elephant Corridor) पर मद्रास उच्च न्यायालय के वर्ष 2011 के एक आदेश को बरकरार रखा जो हाथियों से संबंधित 'राइट ऑफ पैसेज' (Right of Passage) और क्षेत्र में होटल/रिसॉर्ट्स को बंद करने की पुष्टि करता है।

हाथियों के संरक्षण हेतु अंतर्राष्ट्रीय पहल:

  • हाथियों की अवैध हत्या की निगरानी (Monitoring of Illegal Killing of Elephants- MIKE) हेतु कार्यक्रम: यह CITES के पक्षकारों के सम्मेलन (Conference Of Parties- COP) द्वारा अज्ञापित है। इसकी शुरुआत दक्षिण एशिया में (वर्ष 2003) निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ की गई थी:
    • हाथियों के अवैध शिकार के स्तर और प्रवृत्ति को मापना।
    • इन प्रवृत्तियों में समय के साथ हुए परिवर्तन का निर्धारण करना।
    • इन परिवर्तनों या इनसे जुड़े कारकों को निर्धारित करना और विशेष रूप से इस बात का आकलन करना कि CITES के COP द्वारा लिये गए किसी भी निर्णय का इन प्रवृत्तियों पर क्या प्रभाव पड़ा है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस