जनसंख्या वृद्धि | 15 Jul 2020

प्रीलिम्स के लिये:

माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत, लैंसेट रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु, माल्थस सिद्धांत, जनसंख्या वक्र, राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग और जनसंख्या नीति, 2000  

मेन्स के लिये: 

जनसंख्या वृद्धि के प्रभाव एवं इसके नियंत्रण हेतु प्रयास  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में  लैंसेट द्वारा 195 देशों एवं क्षेत्रों के लिये वर्ष 2017 से वर्ष 2100 तक प्रजनन क्षमता, मृत्यु दर और प्रवास एवं जनसंख्या परिदृश्य के संदर्भ में वैश्विक पूर्वानुमान विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। इस विश्लेषण के अनुसार, वर्ष 2048 में भारत की जनसंख्या 1.6 बिलियन आबादी के साथ अपने शीर्ष स्तर पर होगी 

प्रमुख बिंदु:

  • लैंसेट अध्ययन के अनुसार,  वर्ष 2048 में भारत की जनसंख्या विश्व सर्वाधिक होने का अनुमान लगाया गया है जो वर्ष 2017 की 1.38 बिलियन जनसंख्या से बढ़कर लगभग 1.6 बिलियन हो जाएगी।
  • वर्ष 2100 में भारत की जनसंख्या 1.09 बिलियन अनुमानित की गई है।
  • अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2100 में भारत विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश होगा। 
  • अध्ययन के अनुसार, भारत में 20-64 वर्ष की आयु के कामकाजी वयस्कों की संख्या में गिरावट का अनुमान लगाया गया है जो वर्ष 2100 में वर्ष 2017 के लगभग 762 मिलियन से घटकर 578 मिलियन संभावित है। 
    • हालांकि, भारत में वर्ष 2100 तक  विश्व की सर्वाधिक कामकाजी उम्र की जनसंख्या अनुमानित की गई है।
  • चीन में कार्यबल/कामकाजी जनसंख्या वर्ष 2100 में वर्ष 2017 के 950 मिलियन से घटकर 357 मिलियन के स्तर पर पहुँच सकती है।
  • अध्ययन के अनुसार, भारत की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate-TFR) वर्ष 2019 में घटकर 2.1 से नीचे आ गई जो वर्ष 2100 में 1.29 के स्तर पर होगी।
    • कुल प्रजनन दर बच्चों की वह संख्या है जो औसतन किसी स्त्री के संपूर्ण प्रजनन काल  (सामान्यत 15 से 49 वर्ष के बीच) में पैदा होते हैं। अर्थात यह प्रति 1000 स्त्रियों की इकाई के पीछे जीवित जन्मे बच्चों की संख्या है।
    • अध्ययन में वर्ष 2040 तक  भारत की कुल प्रजनन दर गिरावट के साथ स्थिर होने का अनुमान है।

वैश्विक संदर्भ:

Population-Millions

  • रिपोर्ट के अनुसार, विश्व की जनसंख्या वर्ष 2064 में लगभग 9.7 बिलियन होने का अनुमान लगाया गया है।
  • अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2100 में कुल 195 देशों में से 183 देशों में प्रति महिला कुल प्रजनन दर  2.1 के प्रतिस्थापन स्तर से नीचे जाने का अनुमान है।
  • विश्व स्तर पर कुल प्रजनन दर वर्ष 2100 में 1.66 होने का अनुमान लगाया गया है जो वर्ष 2017 में 2.37 थी। 
    •  वर्ष 2100 में कुल प्रजनन दर वर्ष 2017 की तुलना में  - 2.1 की न्यूनतम दर से कम होगी।
  • लैंसेट अध्ययन के अनुसार, वैश्विक आयु संरचना में भारी बदलाव का अनुमान लगाया गया है। 
    • 65 वर्ष से अधिक आयु वालों की संख्या वर्ष 2000 की तुलना में वर्ष 2100 में 1.7 अरब से बढ़कर 2.37 बिलियन के स्तर पर पहुँचने का अनुमान है ।
  • रिपोर्ट में भारत एवं चीन जैसे देशों में कामकाजी उम्र की आबादी में नाटकीय रूप से गिरावट होना का भी पूर्वानुमान प्रस्तुत किया गया है जिसके चलते आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न होगी जो वैश्विक शक्तियों में बदलाव को इंगित करेगा।

वृद्धि के प्रमुख कारण: 

  • चिकित्सा सेवाओं में वृद्धि, कम आयु में विवाह, निम्न साक्षरता, परिवार नियोजन के प्रति विमुखता, गरीबी और जनसंख्या विरोधाभास आदि ने जनसंख्या बढ़ाने में योगदान किया है।

जनसंख्या के संदर्भ में वृद्धि वक्र:

  • वृद्धि वक्र के माध्यम से एक निश्चित समय एवं संख्या में जनसंख्या के बढ़ने की दर को अभिव्यक्त किया जाता है।
  •  समय के साथ किसी देश की बढ़ती आबादी को वृद्धि वक्र के द्वारा दर्शाया जाता है।
  • वृद्धि वक्र का उपयोग जनसंख्या जीव विज्ञान और पारिस्थितिकी से लेकर वित्त और अर्थशास्त्र तक के विभिन्न अनुप्रयोगों में आसानी से किया जाता है।

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जनसंख्या वृद्धि के विभिन्न चरण:

  • जनसंख्या किसी क्षेत्र में रहने वाले लोगों की संख्या है, जबकि जनसांख्यिकीय रूपांतरण का आशय उच्च प्रजनकता और मृत्यु दर की स्थिति से जनसंख्या की नई स्थिर स्थिति की ओर रूपांतर से है जिसमें प्रजनकता और मृत्यु दर निम्न रहे।
  • जनसांख्यिकीय रूपांतर चार चरणों में संपन्न होता है जिसमें से पहले तीन चरण जनसंख्या वृद्धि वाले होते हैं। मृत्यु दर और दीर्घायु सुधार में कमी पहला चरण होता है। दूसरे चरण में, जन्म दर कम हो जाती है लेकिन जन्म दर में गिरावट मृत्यु दर की गिरावट से कम तीव्र होती है।
  • प्रजनकता का प्रतिस्थापन स्तर तीसरे चरण में प्राप्त किया जाता है, लेकिन  जनसंख्या बढ़ती रहती है क्योंकि बहुत बड़ी जनसंख्या प्रजननशील आयु वर्ग में होती है। चौथे चरण में जन्म दर प्रतिस्थापन स्तर से नीचे आ जाती है और प्रजननशील आयु वर्ग में उपस्थित जनसंख्या भी कम हो जाती है; परिणामस्वरूप जनसंख्या वृद्धि रुक जाती है और जनसंख्या स्थिर हो जाती है।

माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत:

  • इस सिद्धांत का प्रतिपादन ब्रिटिश अर्थशास्त्री माल्थस द्वारा अपने लेख ‘प्रिंसपल ऑफ पॉपुलेशन’ में किया गया इसमें जनसंख्या वृद्धि तथा इसके प्रभावों की व्याख्या की गई है।
  • माल्थन का सिद्धांत जनसंख्या में वृद्धि तथा खाद्यान आपूर्ति में वृद्धि के मध्य संबधों की व्याख्या करता है।
  •  माल्थस के अनुसार, किसी भी क्षेत्र में जनसंख्या की वृद्धि गुणोत्तर श्रेणी अर्थात दोगुनी गति (1, 2, 4, 8, 16, 32) से बढ़ती है, जबकि संसाधनों यह वृद्धि समानान्तर श्रेणी अर्थात सामान्य गति (1, 2, 3, 4, 5) से ही होती है।
  •  इस सिद्धांत के अनुसार यदि जीवन निर्वहन के संसाधनों में अवरोध न हो तो प्रत्येक 25 वर्ष बाद जनसंख्या दोगुनी हो जाती है। 

जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याएँ:

  • पर्यावरण पर प्रभाव 
    • तेजी से जनसंख्या वृद्धि से पर्यावरण में परिवर्तन उत्पन्न होता है। 
    • जनसंख्या वृद्धि से बेरोज़गार पुरुषों  एवं महिलाओं की संख्या में तीव्र वृद्धि होती है। जिसके चलते पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों जैसे पहाड़ी क्षेत्रों उष्णकटिबंधीय जंगलों इत्यादि को कृषि  कार्यों के लिये काटा जाता है।
    • बढ़ती जनसंख्या वृद्धि से औद्योगीकरण के साथ बड़ी संख्या में शहरी क्षेत्रों का प्रवास/विकास होता है जिससे बड़े शहरों एवं कस्बों में प्रदूषित हवा, पानी, शोर इत्यादि में वृद्धि होती है।
  •  खद्दानों पर प्रभाव:
    • तेज़ी से बढ़ी हुई जनसंख्या के कारण भोजन एवं खाद्यानों के उपलब्ध स्टॉक पर दबाव बनाता है।
    • तेज़ी  से बढ़ती जनसंख्या वाले अल्प विकसित देशों को आम तौर पर भोजन की कमी की समस्या का सामना करना पड़ता है।
  • सामाजिक प्रभाव:
    • तीव्र जनसंख्या वृद्धि का मतलब श्रम बाजार में आने वाले व्यक्तियों की एक बड़ी संख्या से है।
    • ऐसी स्थिति में बेरोज़गारी की समस्या और अधिक उत्पन्न हो सकती है।
    • बेरोज़गारी के चलते व्यक्तियों के जीवन स्तर में गिरावट आएगी।
    • जनसंख्या वृद्धि के कारण शिक्षा, आवास और चिकित्सा सहायता जैसी बुनियादी सुविधाओं पर और अधिक बोझ उत्पन्न होगा। 

जनसंख्या वृद्धि के कारण उत्पन्न समस्याओं को रोकने हेतु प्रयास:

  • सभी के लिये खाद्यान्न की आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु कृषि को लाभकारी बनाया जाए एवं  खाद्यान्नों की कीमतों में बहुत अधिक परिवर्तन न किया जाए 
  • वन और जल संसाधनों का उचित प्रबंधन कर सतत विकास पर बल दिया जाए तथा सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals) की प्राप्ति किसी भी नीति निर्माण का केंद्र बिंदु हो।
  • जनसंख्या में कमी, अधिकतम समानता, बेहतर पोषण, सार्वभौमिक शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं जैसे सभी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये सरकारों और मज़बूत नागरिक सामाजिक संस्थाओं के बीच बेहतर सामंजस्य की आवश्यकता है।
  • महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार तथा उन्हें निर्णय प्रक्रिया में शामिल करना।
  • शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना तथा अधिक बच्चों के जन्म देने के दृष्टिकोण को परिवर्तित करना। इत्यादि कुछ ऐसे उपाय है जिनके माध्यम से जनसंख्या वृद्धि की समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है। 

राष्ट्रीय जनसंख्या नीति, 2000:

  • राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की घोषणा गर्भ-निरोध, स्वास्थ्य संबंधी आधारभूत ढाँचा, स्वास्थ्य कर्मचारियों और एकीकृत सेवा डिलीवरी की अतृप्त मांगों को पूरा करने के अविलम्ब लक्ष्य को हासिल करने के लिये की गई थी।
  • इस नीति का उद्देश्य कुल प्रजनकता को प्रतिस्थापन स्तर यानी 2 बच्चे प्रति जोड़ा तक लाना है जो इसका मध्य-सत्रीय लक्ष्य है। वर्ष 2045 तक जनसंख्या को स्थिर करना इसका दूरवर्ती लक्ष्य था।
  • नीति में प्रेरणा और प्रोत्साहन संबंधी 16 युक्तियाँ भी बताई गई हैं, जिनमें पंचायतों और ज़िला परिषदों को छोटे परिवारों को प्रोत्साहित करने पर पारितोषिक देना, बाल विवाह विरोधी कानून और प्रसव-पूर्व गर्भ जाँच तकनीक कानून का कड़ाई से पालन, दो बच्चों के प्रतिमान को प्रोत्साहन और नसबंदी की सुविधा को पारितोषिक और प्रोत्साहनों के जरिये मज़बूती प्रदान करना है।

राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग

  • मई, 2000 में गठित राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग के अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं।
  • आयोग को राष्ट्रीय जनसंख्या नीति के क्रियान्वयन से संबंधित समीक्षा करने, निगरानी करने और निर्देश देने, स्वास्थ्य संबंधी, शैक्षणिक, पर्यावरणीय और विकास कार्यक्रमों में सहक्रिया को बढ़ावा देने और कार्यक्रमों की योजना बनाने व क्रियान्वयन करने में अंतर क्षेत्रीय तालमेल को बढ़ावा देने का शासनादेश प्राप्त है।
  • इस आयोग के अंतर्गत, द नेशनल पॉपुलेशन स्टेबलाइज़ेशन फंड (राष्ट्रीय जनसंख्या स्थिरता कोष) की स्थापना की गई, लेकिन बाद में इसे स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग को स्थानांतरित कर दिया गया।

निष्कर्ष: 

लैंसेट अध्ययन के आधार पर कहा जा सकता है कि महिलाओं के शैक्षिक स्तर में  सुधार एवं गर्भनिरोधक कार्यक्रमों तक महिलाओं की पहुँच के चलते प्रजनन क्षमता एवं जनसंख्या वृद्धि में गिरावट आएगी। चीन और भारत जैसे कई देशों में प्रतिस्थापन स्तर से कम TFR के आर्थिक, सामाजिक, पर्यावरणीय और भू-राजनीतिक परिणाम देखने को मिलेंगे । महिला प्रजनन स्वास्थ्य को बनाए रखने में आने वाले वर्ष जनसंख्या वृद्धि के संदर्भ में महत्वपूर्ण साबित होंगे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस