खोलोंगछु जलविद्युत परियोजना | 30 Jun 2020

प्रीलिम्स के लिये:

चुखा, ताला, कुरिछु जलविद्युत परियोजना, खोलोंगछु जलविद्युत परियोजना, मंगदेछु (Mangdechhu) जलविद्युत परियोजना

मेन्स के लिये:

भारत-भूटान संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत एवं भूटान ने 600 मेगावाट क्षमता वाली खोलोंगछु जलविद्युत परियोजना (Kholongchhu Hydropower Project) हेतु एक समझौते पर हस्ताक्षर किये।

प्रमुख बिंदु:

  • यह भारत एवं भूटान के बीच पहली संयुक्त उद्यम परियोजना होगी।
  • इस परियोजना के संयुक्त उद्यम साझेदारों में भारत का सतलुज जल विद्युत निगम (Satluj Jal Vidyut Nigam- SJVN) और भूटान का ड्रुक ग्रीन पावर कॉर्पोरेशन (Druk Green Power Corporation- DGPC) शामिल होंगे।
  • उल्लेखनीय है कि भारत ने वर्ष 2008 में भूटान को वर्ष 2020 तक कुल 10,000 मेगावाट विद्युत क्षमता विकसित करने में सहायता का आश्वासन दिया था। भारत की इस प्रतिबद्धता के तहत भूटान में विकसित की जाने वाली चार परियोजनाओं में खोलोंगछु जलविद्युत परियोजना एक अहम परियोजना है।
  • 600 मेगावाट की इस रन-ऑफ-द-रिवर परियोजना (Run-Of-The-River Project) को पूर्वी भूटान के त्राशियांगत्से (Trashiyangtse) ज़िले में खोलोंगछु नदी (Kholongchhu River) के निचले हिस्से पर स्थापित किया जायेगा।
  • इस परियोजना के वर्ष 2025 की दूसरी छमाही में पूरा होने की संभावना है।
  • इस परियोजना का निर्माण दोनों देशों के बीच 50:50 संयुक्त उद्यम भागीदारी के रूप में किया जाएगा।

महत्त्व:

  • रियायत अवधि: भारत सरकार अनुदान के रूप में भूटानी संयुक्त उद्यम कंपनी DGPC को इक्विटी हिस्सेदारी प्रदान करेगी।
    • एक बार परियोजना चालू हो जाने के बाद, संयुक्त उद्यम के सहयोगी इसे 30 वर्षों के लिये संचालित करेंगे जिसे ‘रियायत अवधि’ कहा जाएगा।
    • इसके बाद इस परियोजना का पूर्ण स्वामित्व भूटान सरकार को हस्तांतरित कर दिया जाएगा जो रॉयल्टी के रूप में इस परियोजना से विद्युत प्राप्त करेगा।
  • द्विपक्षीय सहयोग: भूटान में पनबिजली का दोहन भारत एवं भूटान के बीच सफल द्विपक्षीय सहयोग एवं आपसी जुड़ाव का मार्ग प्रशस्त करेगा।
  • रणनीतिक महत्त्व: BIMSTEC का सदस्य होने के कारण भूटान, भारत के लिये भू-सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण है। दोनों देशों के बीच इस तरह की विकास परियोजनाओं के संदर्भ में समर्थन एवं सहायता की साझा भावना से भारत अपनी एक्ट ईस्ट-लुक ईस्ट नीति को प्रभावी बना सकता है।
  • ऊर्जा व्यापार: यह परियोजना ऊर्जा उत्पादन एवं ऊर्जा व्यापार में एक अहम भूमिका निभायेगी। यह परियोजना भारत के लिये एक स्वच्छ एवं स्थिर ऊर्जा स्रोत उपलब्ध कराने में सहायक सिद्ध होगी और नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी योगदान देगी।
  • रोज़गार के अवसर: इस परियोजना की निर्माण गतिविधियों के शुरू होने से भूटान में रोज़गार के अवसर पैदा होंगे।
  • आर्थिक संवृद्धि: यह परियोजना भूटान के आर्थिक विकास को गति प्रदान करेगी और भूटान में सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देगी।

चिंताएँ:

  • पावर टैरिफ: वर्ष 2014 में शुरू हुई परियोजना दिसंबर 2016 के बाद से भारत के ‘क्रॉस बॉर्डर ट्रेड ऑफ इलेक्ट्रिसिटी' (Cross Border Trade of Electricity- CBTE) के नए बिजली शुल्क दिशा-निर्देशों पर टिकी हुई थी जब तक कि भारत सरकार ने भूटान सरकार के साथ बातचीत के बाद अपने दिशा-निर्देशों में संशोधन नहीं किया इसलिये पावर टैरिफ संशोधन जिसमें परिचालन एवं रखरखाव शुल्क में वृद्धि शामिल है, विवाद की जड़ बन सकता है।
  • संयुक्त उद्यम मॉडल का जोखिम: एक प्रमुख मुद्दा इस परियोजना के लिये संयुक्त उद्यम मॉडल के जोखिम के बारे में है क्योंकि भूटान ने परियोजना में देरी के कारण होने वाले अधिक वित्तीय जोखिम पर चिंता व्यक्त की थी।
    • इस परियोजना में होने वाली देरी से भूटान की आर्थिक वृद्धि के साथ ही इसका निर्यात एवं राजस्व भी प्रभावित हुआ है। उदाहरण के लिये विश्व बैंक ने जलविद्युत परियोजना के निर्माण में देरी एवं बिजली उत्पादन में गिरावट से सीधे-सीधे भूटान की विकास दर में गिरावट का उल्लेख किया है।
    • हालाँकि भारत ने कहा है कि वह वाणिज्यिक मॉडल को प्राथमिकता देता है क्योंकि यह न केवल जोखिम साझा करता है बल्कि भारतीय PSU को समय एवं लागत पर अधिक जवाबदेह बनाता है क्योंकि वे ठेकेदारों के बजाय निवेशक बन जाते हैं।

भारत-भूटान जलविद्युत परियोजनाएँ:

  • अब तक भारत सरकार ने भूटान में कुल 1416 मेगावाट की तीन पनबिजली परियोजनाओं- 336 मेगावाट की चुखा (Chukha) परियोजना, 60 मेगावाट की कुरिछू (Kurichhu) परियोजना एवं 1020 मेगावाट की ताला (Tala) परियोजना का निर्माण किया है जो भारत को अधिशेष बिजली का परिचालन एवं निर्यात कर रहे हैं।
  • भारत ने हाल ही में 720 मेगावाट की मंगदेछु (Mangdechhu) जलविद्युत परियोजना को पूरा किया है और दोनों पक्ष 1200 मेगावाट की पुनात्सांगछू-1 (Punatsangchhu-1) एवं 1020 मेगावाट की पुनात्सांगछू-2 (Punatsangchhu-2) सहित अन्य परियोजनाओं को पूरा करने हेतु प्रयासरत हैं।

आगे की राह:

  • भारत एवं भूटान ने पारस्परिक रूप से लाभकारी द्विपक्षीय सहयोग के सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक ‘पनबिजली विकास’ के महत्त्व पर ज़ोर दिया है।
  • खोलोंगछु परियोजना दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय सहयोग की एक निरंतरता है जो दोनों देशों की दोस्ती की प्रगाढ़ता को दर्शाता है।
  • हालाँकि इस परियोजना के कार्यान्वयन में देरी के कारण लागत में वृद्धि हुई है और स्थानीय समुदाय के तत्काल लाभ के अवसरों में चूक हुई है इसलिये निर्माण शुरू होने से पहले एक परियोजना के सभी विवरणों पर पूरी तरह से काम किया जाना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस