केन-बेतवा इंटर-लिंकिंग परियोजना | 10 Dec 2021

प्रिलिम्स के लिये:

केन-बेतवा इंटर-लिंकिंग परियोजना, केन और बेतवा नदी, बेतवा नदी

मेन्स के लिये:

केन-बेतवा इंटर-लिंकिंग परियोजना से जुड़े विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने केन-बेतवा नदियों को जोड़ने की परियोजना के वित्तपोषण और कार्यान्वयन को मंज़ूरी दी है।

  • इस परियोजना में केन नदी से बेतवा नदी में जल स्थानांतरित करने की परिकल्पना की गई है, ये दोनों ही यमुना की सहायक नदियाँ हैं। यह परियोजना आठ वर्षों में पूरी होगी।

Yamuna_River

प्रमुख बिंदु

  • परिचय: यह नदियों को आपस में जोड़ने के लिये राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के तहत पहली परियोजना है। केन-बेतवा लिंक नहर 221 किमी. लंबी होगी, जिसमें 2 किमी. लंबी सुरंग भी शामिल है।

केन और बेतवा नदी: 

  • केन और बेतवा नदियों का उद्गम स्थल मध्य प्रदेश में है, ये यमुना की सहायक नदियाँ हैं।
  • केन नदी उत्तर प्रदेश के बांदा ज़िले में यमुना नदी में मिलती है तथा बेतवा नदी से यह उत्तर प्रदेश के हमीरपुर ज़िले में मिलती है।
  • राजघाट, पारीछा और माताटीला बाँध बेतवा नदी पर निर्मित हैं।
  • केन नदी पन्ना बाघ अभयारण्य से होकर गुज़रती है।
  • पृष्ठभूमि: केन को बेतवा से जोड़ने के विचार को अगस्त 2005 में एक बड़ा झटका तब लगा, जब केंद्र सरकार और मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश की सरकारों के बीच एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) तैयार करने के लिये एक त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए।
    • वर्ष 2008 में, केंद्र ने KBLP को एक राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया। बाद में इसे सूखाग्रस्त बुंदेलखंड क्षेत्र के विकास के लिये प्रधानमंत्री के पैकेज के हिस्से के रूप में शामिल किया गया था।
    • इस परियोजना के कार्यान्वयन के लिये वर्ष 2021 में ही जल शक्ति मंत्रालय और दोनों राज्यों के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर भी किये गए थे।
  • कार्यान्वयन एजेंसी: 
    • परियोजना को लागू करने के लिये केन-बेतवा लिंक परियोजना प्राधिकरण (KBLPA) नामक एक विशेष प्रयोजन वाहन (SPV) की स्थापना की जाएगी।
    • अलग-अलग लिंक परियोजनाओं के लिये SPV स्थापित करने की शक्तियाँ राष्ट्रीय नदी अन्तराबंधन प्राधिकरण (National Interlinking of Rivers Authority- NIRA) में निहित हैं।
  • परियोजना के चरण: परियोजना के दो चरण हैं, जिसमें मुख्य रूप से चार घटक शामिल हैं। 
    • चरण- I में एक घटक शामिल होगा- दौधन बाँध परिसर और इसकी सहायक इकाइयाँ जिसमें निम्न स्तरीय सुरंग, उच्च स्तरीय सुरंग, केन-बेतवा लिंक नहर और बिजली घर शामिल हैं।
    • चरण- II में तीन घटक शामिल होंगे- ‘लोअर और बाँध’, बीना कॉम्प्लेक्स परियोजना और कोठा बैराज।
  • लाभ: यह परियोजना बुंदेलखंड में है, जो एक सूखाग्रस्त क्षेत्र है तथा इसका विस्तार उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 13 ज़िलों में है।
    • जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, इस परियोजना से जल की कमी वाले इस क्षेत्र को अत्यधिक लाभ प्राप्त होगा।
    • इसके अलावा, यह नदी परियोजनाओं को जोड़ने की दिशा में मार्ग प्रशस्त करेगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जल की कमी देश के विकास में अवरोधक न बने।
    • जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, इस परियोजना से 10.62 लाख हेक्टेयर की वार्षिक सिंचाई, लगभग 62 लाख लोगों को पीने के पानी की आपूर्ति और 103 मेगावाट जलविद्युत और 27 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पन्न होने की उम्मीद है।
  • संबंधित चुनौतियांँ: 
    • पन्ना टाइगर रिज़र्व का जलमग्न होना: राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी के अनुसार, दौधन बाँध के जलाशय से 9000 हेक्टेयर का क्षेत्र जलमग्न होगा जिसमें से 5803 हेक्टेयर क्षेत्र पन्ना टाइगर रिज़र्व (Panna Tiger Reserve- PTR) के अंतर्गत आता है।
      • इसे कम करने के लिये तीन वन्यजीव अभयारण्यों (WLS), अर्थात् नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य, मध्यप्रदेश के रानी दुर्गावती और उत्तरप्रदेश के रानीपुर वन्यजीव अभयारण्य को PTR के साथ एकीकृत करने की योजना है।
    • विभिन्न मंज़ूरियों की आवश्यकता: परियोजना के कार्यान्वयन हेतु विभिन्न प्रकार की मंज़ूरी प्राप्त करना आवश्यक है, जैसे:
      • केंद्रीय जल आयोग द्वारा तकनीकी-आर्थिक मंज़ूरी।
      • वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वन एवं पर्यावरण संबंधी मंज़ूरी। 
      • जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा आदिवासी आबादी के पुनःस्थापन और पुनर्वास की योजना को मंज़ूरी।

भारत में रिवर इंटर-लिंकिंग का इतिहास:

  • औपनिवेशिक अवधारणा
    • यह विचार पहली बार ब्रिटिश राज के दौरान रखा गया था, जब एक ब्रिटिश सिंचाई इंजीनियर सर आर्थर थॉमस कॉटन (Sir Arthur Thomas Cotton) ने नौवहन उद्देश्यों के लिये गंगा और कावेरी को जोड़ने का सुझाव दिया था।
  • अंग्रेज़ों द्वारा शुरू की गई परियोजनाएँ:
    • अतीत में कई रिवर इंटर-लिंकिंग परियोजनाएँ शुरू की गई हैं। उदाहरण के लिये पेरियार परियोजना, जिसके तहत पेरियार बेसिन से वैगई बेसिन में पानी के हस्तांतरण की परिकल्पना की गई थी, को वर्ष 1895 में चालू किया गया था।
      • अन्य परियोजनाएँ जैसे परम्बिकुलम अलियार, कुरनूल कडप्पा नहर, तेलुगु गंगा परियोजना, और रावी-ब्यास-सतलज भी शुरू की गईं हैं।
  • राष्ट्रीय जल ग्रिड:
    • 1970 के दशक में, एक नदी के अधिशेष जल को जल संकट वाले क्षेत्र में स्थानांतरित करने का विचार तत्कालीन केंद्रीय सिंचाई मंत्री ‘डॉ के. एल. राव’ ने रखा था।
    • उन्होंने जल से समृद्ध क्षेत्रों से पानी की कमी वाले क्षेत्रों में पानी स्थानांतरित करने के लिये एक राष्ट्रीय जल ग्रिड के निर्माण का सुझाव दिया था।
  • माला नहर:
    • बाद में कैप्टन ‘दिनशॉ जे दस्तूर’ ने एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में पानी के पुनर्वितरण के लिये ‘गारलैंड नहर’ का प्रस्ताव रखा था। हालाँकि, सरकार ने इन दोनों विचारों को आगे नहीं बढ़ाया।
  • राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना:
    • अगस्त 1980 में सिंचाई मंत्रालय ने जल संसाधन विकास के लिये एक ‘राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना’ तैयार की, जिसमें अंतर-बेसिन जल अंतरण की परिकल्पना की गई थी।
    • ‘राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना’ में दो घटक शामिल थे: हिमालयी नदियों का विकास और प्रायद्वीपीय नदियों का विकास।
    • राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के आधार पर ‘राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी’ (NWDA) ने 30 नदी लिंकों की पहचान की- 16 प्रायद्वीपीय घटक के तहत और 14 हिमालयी घटक के तहत।
    • केन-बेतवा लिंक परियोजना प्रायद्वीपीय घटक के तहत 16 परियोजनाओं में से एक है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस