ब्रिटेन की संसद में कश्मीर पर चर्चा | 18 Jan 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन्स में कश्मीर मुद्दे पर की गई चर्चा को लेकर चिंता ज़ाहिर की है।

  • इससे पूर्व अक्तूबर 2020 में धारा 370 के निरसन के तीन माह बाद इटली, ब्रिटेन, फ्रांँस, जर्मनी, चेक गणराज्य और पोलैंड से यूरोपीय संसद के 27 सदस्यों वाले एक प्रतिनिधिमंडल ने श्रीनगर (कश्मीर) का दौरा किया था।

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प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि

  • इस चर्चा का आयोजन यूनाइटेड किंगडम (UK) की संसद के कुछ सदस्यों द्वारा ‘कश्मीर की राजनीतिक स्थिति’ शीर्षक पर किया गया था।
  • इस चर्चा में शामिल सदस्यों ने जम्मू-कश्मीर में कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन पर चिंता ज़ाहिर की और यूनाइटेड किंगडम की सरकार से इस क्षेत्र तक पहुँच प्राप्त करने की मांग की, ताकि जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) की प्रत्यक्ष रिपोर्ट संसद के समक्ष प्रस्तुत की जा सके। 

भारत की चिंता 

  • इस चर्चा में कश्मीर के संदर्भ में प्रयोग की गई शब्दावली पर भारत ने चिंता ज़ाहिर की है, भारत के अनुसार, ब्रिटिश सांसदों को केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर (जो कि भारत का अभिन्न अंग है) और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) के बीच अंतर करना चाहिये।
    • अक्तूबर 1947 में जब कश्मीर की पूर्ववर्ती रियासत को कानूनी रूप से भारत में शामिल किया गया था, तब कश्मीर के कुछ हिस्से पर पाकिस्तान द्वारा ज़बरन अवैध रूप से कब्ज़ा कर लिया गया था।
  • इस चर्चा के दौरान जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश की वर्तमान ज़मीनी हकीकत को नज़रअंदाज किया गया और इसके बजाय एक तीसरे देश (पाकिस्तान) द्वारा प्रचारित झूठे दावों जैसे- कथित 'नरसंहार' और 'उग्र हिंसा' आदि पर चर्चा की गई।

भारत का पक्ष

  • लंदन में भारतीय उच्चायोग ने रेखांकित किया कि बीते वर्ष शुरू की गई स्मार्ट वाई-फाई (WiFi) परियोजना ने इस क्षेत्र में उच्च गति इंटरनेट के उपयोग को सक्षम बनाया है, वहीं केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में दिसंबर 2020 में हुए आतंकी हमलों, चुनौतीपूर्ण मौसम की स्थिति और महामारी जैसी चुनौतियों के बावजूद ‘ज़िला विकास परिषद’ (DDC) के चुनाव आयोजित किये गए थे।
  • भारत ने एक बार पुनः इस बात को दोहराया कि वह शिमला समझौते (वर्ष 1972) और लाहौर घोषणा (वर्ष 1999) के अनुरूप जम्मू-कश्मीर समेत सभी बकाया मुद्दों पर पाकिस्तान के साथ वार्ता करने को तैयार है। 

ब्रिटेन का पक्ष

  • ब्रिटेन की सरकार ने स्पष्ट किया है कि यद्यपि नियंत्रण रेखा (LoC) के दोनों ओर मानवाधिकार संबंधी चिंताएँ मौजूद हैं, किंतु ब्रिटेन भारत-पाकिस्तान के द्विपक्षीय मामले में मध्यस्थता भूमिका नहीं निभाएगा।
  • कश्मीर को लेकर ब्रिटेन सरकार की नीति स्थिर और अपरिवर्तित है।
    • ब्रिटेन की सरकार अभी भी यह मानती है कि भारत और पाकिस्तान को कश्मीर के लोगों की इच्छाओं को ध्यान में रखते हुए स्थायी राजनीतिक समाधान खोजने की कोशिश करनी चाहिये।

स्रोत: द हिंदू