कर्नाटक में हिजाब पर प्रतिबंध मामला | 14 Oct 2022

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, हिजाब, मौलिक अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता से संबंधित मामले।

मेन्स के लिये:

मौलिक अधिकार, न्यायपालिका, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, महिलाओं से संबंधित मुद्दे, धर्म की स्वतंत्रता से संबंधित मामले।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक हिजाब प्रतिबंध मामले में एक विभाजित निर्णय दिया।

  • विभाजित निर्णय की स्थिति में मामले की सुनवाई एक बड़ी बेंच द्वारा की जाती है।
  • जिस बड़ी बेंच को विभाजित निर्णय का मामला हस्तांतरित किया जाता है, वह उच्च न्यायालय की तीन-न्यायाधीशों की पीठ हो सकती है, अथवा इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष भी अपील की जा सकती है।
  • मार्च 2022 में उच्च न्यायालय ने कर्नाटक में मुस्लिम छात्रों के एक वर्ग द्वारा कक्षाओं में हिजाब पहनने की अनुमति मांगने वाली याचिकाओं को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि यह इस्लामी आस्था में आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है।

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निर्णय की प्रमुख बातें:

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हिजाब के मुद्दे पर न्यायालयों के अब तक के निर्णय:

  • वर्ष 2015 में केरल उच्च न्यायालय के समक्ष ऐसी दो याचिकाएँ दायर की गई थीं, इनमें अखिल भारतीय प्री-मेडिकल प्रवेश के लिये ड्रेस कोड को चुनौती दी गई थी, जिसमें सलवार/पायजामा" के साथ चप्पल पहनने की अनुमति थी एवं आधी आस्तीन वाले हल्के कपड़े, जिनमें बड़े बटन, बैज, फूल आदि न हों", ही पहनने का प्रावधान था।
    • केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) के तर्क को स्वीकार करते हुए कि यह नियम केवल यह सुनिश्चित करने के लिये था कि उम्मीदवार कपड़ों के भीतर वस्तुओं को छुपाकर अनुचित तरीकों का इस्तेमाल नहीं करेंगे, केरल उच्च न्यायालय ने CBSE को उन छात्रों की जाँच हेतु अतिरिक्त उपाय करने का निर्देश दिया जो अपने धार्मिक रिवाज़ के अनुसार पोशाक पहनने का इरादा रखते हैं, लेकिन जो ड्रेस कोड के विपरीत है।
  • आमना बिंट बशीर बनाम केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (2016) मामले में केरल उच्च न्यायालय ने इस मुद्दे की अधिक बारीकी से जाँच की। इस मामले में न्यायालय ने माना कि हिजाब पहनने की प्रथा एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है, लेकिन सीबीएसई नियम को रद्द नहीं किया गया।
    • न्यायालय ने एक बार फिर 2015 में "अतिरिक्त उपायों" और सुरक्षा उपायों की अनुमति दी।
  • हालाँकि स्कूल द्वारा निर्धारित ड्रेस के मुद्दे पर एक और बेंच ने फातिमा तसनीम बनाम केरल राज्य (2018) मामले में अलग तरीके से फैसला सुनाया।
    • केरल उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने कहा कि किसी संस्था के सामूहिक अधिकारों को याचिकाकर्त्ता के व्यक्तिगत अधिकारों पर प्राथमिकता दी जाएगी।

संविधान के तहत धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा:

  • संविधान के भाग-3 (मौलिक अधिकार) का अनुच्छेद 25 से 28 धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है।
  • संविधान का अनुच्छेद 25 (1) ‘अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को मानने, आचरण करने तथा प्रचार करने की स्वतंत्रता के अधिकार’ की गारंटी देता है।
  • यह एक ऐसा अधिकार है जो नकारात्मक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, जिसका अर्थ है कि राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि इस स्वतंत्रता का उपयोग करने में कोई हस्तक्षेप या बाधा न हो।
    • हालाँकि सभी मौलिक अधिकारों की तरह राज्य सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता, नैतिकता, स्वास्थ्य और अन्य राज्य हितों के अधिकार को प्रतिबंधित कर सकता है।
  • अनुच्छेद 26 सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने की स्वतंत्रता की व्याख्या करता है।
  • अनुच्छेद 27 के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को किसी विशेष धर्म के प्रचार या व्यवहार के लिये किसी भी कर का भुगतान करने के लिये मजबूर नहीं किया जाएगा।
  • अनुच्छेद 28 शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक पूजा में भाग लेने की स्वतंत्रता की व्याख्या करता है।

आगे की राह

  • मौजूदा राजनीतिक माहौल में कर्नाटक सरकार द्वारा "एकता, समानता एवं सार्वजनिक व्यवस्था के हित में" या तो एक निर्धारित वर्दी या किसी भी पोशाक को अनिवार्य करने के निर्णय को शैक्षिक संस्थानों में धर्मनिरपेक्ष मानदंडों, समानता और अनुशासन को लागू करने की आड़ में एक बहुसंख्यकवादी दावे के रूप में भी देखा गया
  • एक निर्णय जो शिक्षा के लिये इस गैर-समावेशी दृष्टिकोण को वैध बनाता है और एक नीति जो मुस्लिम महिलाओं को अवसर से वंचित कर सकती है, देश के हित में नहीं होगी।
  • उचित गुंज़ाइश तब तक होनी चाहिये जब तक कि हिजाब या कोई भी पहनावा, धार्मिक या अन्य, यूनिफार्म से अलग नहीं होता है।

स्रोत: द हिंदू