न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत | 28 Sep 2022

मेन्स के लिये:

न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत और संबद्ध मुद्दे

न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत:

  • उत्पत्ति:
    • न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत (Just War Theory) की उत्पत्ति शास्त्रीय ग्रीक और रोमन दार्शनिकों जैसे प्लेटो और सिसरो के साथ हुई थी तथा बाद में ऑगस्टीन एवं थॉमस एक्विनास जैसे ईसाई धर्मशास्त्रियों द्वारा इसे आगे बढ़ाया गया था।
  • विषय:
    • न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत मुख्यतः एक ईसाई दर्शन है जो तीन चीजों में सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करता है:
      • मानव हत्या वास्तव में बहुत गलत है।
      • राज्यों का कर्त्तव्य है कि वे अपने नागरिकों और न्याय की रक्षा करें
      • निर्दोष मानव जीवन और महत्त्वपूर्ण नैतिक मूल्यों की रक्षा के लिये कभी-कभी बल एवं हिंसा का उपयोग करने की आवश्यकता होती है
    • यह सिद्धांत युद्ध पर जाने और साथ ही युद्ध लड़ने के तरीकों से संबंधित शर्तों की व्याख्या करता है ।
    • हालाँकि इसे ईसाई धर्मशास्त्रियों द्वारा बड़े पैमाने पर विकसित किया गया था, लेकिन इसका उपयोग हर धर्म के लोग कर सकते हैं या कोई भी नहीं।
    • न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत के अनुसार, युद्ध शायद कई बार नैतिक रूप से सही होता है। हालाँकि, कोई भी युद्ध रणनीतिक, विवेकपूर्ण या साहसिक होने के लिये प्रशंसनीय नहीं है। कभी-कभी, युद्ध सामूहिक राजनीतिक हिंसा के नैतिक उपयोग का प्रतिनिधित्त्व करता है।
      • मित्र राष्ट्रों की ओर से द्वितीय विश्वयुद्ध को अक्सर एक न्यायपूर्ण और अच्छे युद्ध के उदाहरण के रूप में उद्धृत किया जाता है।

न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत (Just War Theory) के तत्त्व:

  • जस्ट वॉर थ्योरी को तीन भागों में बाँटा गया है जिनके लैटिन नाम हैं। ये भाग हैं:
    • जूस एड बेलम: पहले चरण में युद्ध का सहारा लेने के न्याय के बारे में।
    • जूस इन बेल्लो: यह युद्ध के दौरान आचरण के न्याय के बारे में है।
    • जूस पोस्ट बेलम: यह शांति समझौतों के न्याय और युद्ध की समाप्ति के चरण के बारे में है।

न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत का उद्देश्य:

  • इसका उद्देश्य संभावित संघर्ष स्थितियों में राज्यों को कार्य करने के लिये सही तरीके से मार्गदर्शन प्रदान करना है।  
    • यह सिद्धांत केवल राज्यों पर लागू होता है, न कि व्यक्तियों पर (हालाँकि एक व्यक्ति इस सिद्धांत का उपयोग यह तय करने के लिये कर सकता है कि क्या किसी विशेष युद्ध में भाग लेना नैतिक रूप से सही है)।
  • यह सिद्धांत व्यक्तियों और राजनीतिक समूहों को संभावित युद्धों पर चर्चा के लिये उपयोगी ढाँचा प्रदान करता है।
  • इस सिद्धांत का उद्देश्य युद्धों को न्यायोचित ठहराना नहीं है, बल्कि उन्हें रोकना है। जिसमें इस बात पर बल दिया जाता है कि कुछ सीमित परिस्थितियों को छोड़कर युद्ध  करना  गलत है और इसके माध्यम से   राज्यों को संघर्षों को हल करने के अन्य तरीके खोजने के लिये प्रेरित किया जाता है।

न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत के विपक्ष में तर्क:

  • नैतिक सिद्धांत में कोई स्थान नहीं:
    • सभी युद्ध अन्यायपूर्ण हैं और किसी भी नैतिक सिद्धांत में इनका कोई स्थान नहीं है:
      • नैतिकता को हमेशा हिंसा का विरोध करना चाहिये।
      • हिंसा को सीमित करने के बजाय केवल युद्ध के विचार इसे प्रोत्साहित करते हैं।
  • समाज के सामान्य नियमों को बाधित करना:
    • युद्ध के परिणामस्वरूप समाज के सामान्य नियम भंग हो जाते हैं और नैतिकता के क्षेत्र से बाहर हो जाते हैं।
  • अवास्तविक सिद्धांत:
    • न्यायसंगत युद्ध सिद्धांत अवास्तविक और व्यर्थ है।
      • संघर्ष में "मज़बूत वही करते हैं जो वे करना चाहते हैं और कमज़ोर वही करते हैं जो उन्हें करना पड़ता है"।
      • युद्ध छेड़ने का निर्णय यथार्थवाद और सापेक्ष शक्ति द्वारा नियंत्रित होता है, नैतिकता से नहीं।
      • इस प्रकार नैतिकता का युद्ध में कोई उपयोग नहीं है।

आगे की राह

  • युद्ध का सर्वोपरि लक्ष्य यह होना चाहिये कि यथाशीघ्र और सरलता से जीत हासिल की जाए।
  • यदि कारण न्यायसंगत है, तो उसे प्राप्त करने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाना चाहिये।
  • युद्ध के संचालन के नियम केवल छलावरण हैं क्योंकि वे हमेशा 'सैन्य आवश्यकता' से अधिक शासित होते हैं।
  • आतंकवादी स्वाभाविक रूप से नैतिकता में रुचि नहीं रखते हैं, इसलिये युद्ध के किसी भी नैतिक सिद्धांत का पालन करना उन लोगों के लियेअनावश्यक समझते है जिन पर आतंकवादी हमला करते हैं, इस प्रकार एक अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।

स्रोत: बी.बी.सी.