न्यायिक नियुक्तियों में तेज़ी के संकेत | 27 Feb 2017
समाचारों में क्यों?
उच्चतम न्यायालय में एक साथ पाँच न्यायाधीशों की नियुक्ति के साथ ही ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि शीर्ष न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्तियों को लेकर न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच व्याप्त गतिरोध शायद धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। साथ ही मुख्य न्यायधीश जगदीश सिंह खेहर ने उम्मीद जताई है कि न्यायाधीशों के चयन और नियुक्ति से संबंधित बहुचर्चित ज्ञापन प्रक्रिया (Memorandum of Procedure) को भी इस महीने के अंत तक अंतिम रूप दे दिया जाएगा।
क्यों महत्त्वपूर्ण है यह घटनाक्रम?
- विदित हो कि सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों के स्वीकृत पदों की संख्या 31 है लेकिन पिछले कुछ महीनों में इसमें न्यायाधीशों के आठ पद रिक्त हो गए थे। शीर्ष न्यायपालिका में न्यायाधीशों के रिक्त पदों पर समयबद्ध तरीके से प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाए जाने के कारण भी नियुक्तियों में विलंब देखा जा रहा है।
- वर्ष 2016 के दौरान शीर्ष न्यायपालिका में चार न्यायाधीशों की नियुक्ति हुई थी, लेकिन इस अवधि में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश टी एस ठाकुर ने शीर्ष अदालत के लिये किसी भी न्यायाधीश की नियुक्ति की सिफारिश नहीं की थी। हालाँकि वर्तमान मुख्य न्यायाधीश जे एस खेहर ने उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों के रिक्त पदों पर नियुक्ति के मामले को गम्भीरता से लिया है।
चिंताजनक आँकड़े
- गौरतलब है कि शीर्ष न्यायपालिका में लंबित मामले चिंता के विषय बने हुए हैं। उच्चतम न्यायालय में लगभग 62,309 मुकदमे लंबित हैं। इनमें से 26732 मुकदमों के संबंध में नियमित सुनवाई की जा रही है। इस समय शीर्ष अदालत मे संविधान पीठ के 33 मामले हैं। इसी तरह, देश के 24 उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के कुल स्वीकृत 1079 पदों में से इस वर्ष के एक फरवरी की स्थिति के अनुसार न्यायाधीशों के 433 पद रिक्त थे। इस बीच, हालाँकि हाल ही में सरकार ने 21 अतिरिक्त न्यायाधीशों की नियुक्ति को मंजूरी दी है।
- उच्च न्यायालयों में एक अनुमान के अनुसार 40 लाख से अधिक मुकदमे लंबित हैं जबकि अधीनस्थ अदालतों में इनकी संख्या करीब ढाई करोड़ होने का अनुमान है। रिक्त पदों पर हो रही नियुक्तियों के साथ ही यह उम्मीद की जानी चाहिये कि अब इनमें लंबित मुकदमों के तेजी से निस्तारण की प्रक्रिया को गति मिलेगी।
निष्कर्ष
- विदित हो कि न्यायमूर्ति खेहर की अध्यक्षता वाली पाँच सदस्यीय संविधान पीठ ने ही राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग गठित करने संबंधी कानून को निरस्त करते हुए न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाने और सरकार के साथ मिलकर इससे संबंधित ज्ञापन प्रक्रिया तैयार करने का सुझाव दिया था लेकिन सरकार के सुझावों से तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश और कोलेजियम के कुछ सदस्य सहमत नहीं थे। इस वज़ह से यह मामला अभी तक लटका रहा है। चूँकि अब न्यायमूर्ति खेहर इस कोलेजियम के अध्यक्ष हैं, इसलिये ज्ञापन प्रक्रिया को अंतिम रूप देकर इसे अमलीजामा पहनाए जाने की उम्मीद काफी बढ़ गई है।