व्यभिचार के लिये दंड व्यावहारिक नहीं | 09 Aug 2018

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने केंद्र सरकार की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि व्यभिचार के कारण किसी व्यक्ति को पाँच वर्ष के लिये जेल भेजना व्यावहारिक नहीं है।

प्रमुख बिंदु

पाँच न्यायाधीशों की संविधानिक पीठ की अध्यक्षता करते हुए मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि व्यभिचार को दंडनीय अपराध के रूप में भी नहीं माना जा सकता है और अधिक से अधिक इसे नागरिक दोष कहा जा सकता है। साथ ही उन्होंने तलाक को व्यभिचार के लिये एक नागरिक उपाय बताया।

  • व्यभिचार एक ऐसा संबंध है जिसे महिला की सहमति से स्थापित किया जाता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यदि कोई तीसरा पक्ष किसी अन्य की पत्नी के साथ टीका-टिप्पणी या छेड़छाड़ करता है तो इसे बलात्कार के बराबर माना जाता है, जो कि अपराध है।
  • किंतु यदि महिला की सहमति से संबंध स्थापित किया जाता है तो इसे किस प्रकार अपराध की श्रेणी में रखा जा सकता है। यदि दो वयस्कों के बीच सहमति है तो पत्नी के प्रेमी को क्यों दंडित किया जाए?
  • उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय का उपर्युक्त निर्णय सरकार के विरोध में आया है। इस संदर्भ में सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि व्यभिचार को भारतीय दंड संहिता में रखा जाना चाहिये क्योंकि ऐसा करना लोकहित में उचित होगा और यह विवाह की पवित्रता को सुनिश्चित करता है।
  • इसके उत्तर में न्यायालय ने कहा कि विवाह को बचाए रखने की ज़िम्मेदारी संबंधित दंपति की होती है और यदि वे इसमें असफल होते हैं तो इसके लिये नागरिक समाधान मौज़ूद है। विवाह विच्छेद में लोकहित का मुद्दा कहाँ है?