जम्मू-कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम | 20 Aug 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय प्रशासनिक सेवा (Indian Administrative Services-IAS) के एक पूर्व अधिकारी को जम्मू-कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम (J&K Public Safety Act-PSA) के तहत बंदी बनाया गया।

अधिनियम के बारे में

  • जम्मू और कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम को 8 अप्रैल, 1978 को जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल से मंज़ूरी प्राप्त हुई थी।
  • इस अधिनियम को शेख अब्दुल्ला की सरकार ने इमारती लकड़ी की तस्करी को रोकने और तस्करों को "प्रचलन से बाहर" रखने के लिये एक सख्त कानून के रूप में प्रस्तुत किया था।
  • यह कानून सरकार को 16 वर्ष से अधिक उम्र के किसी भी व्यक्ति को मुकदमा चलाए बिना दो साल की अवधि हेतु बंदी बनाने की अनुमति देता है।
  • यदि राज्य सरकार को यह आभास हो कि किसी व्यक्ति के कृत्य से राज्य की सुरक्षा को खतरा है तो उसे 2 वर्षों तक प्रशासनिक हिरासत में रखा जा सकता है और यदि किसी व्यक्ति के कृत्य से सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने में कोई बाधा उत्पन्न होती है तो उसे 1 वर्ष की प्रशासनिक हिरासत में लिया जा सकता है।
  • PSA के तहत हिरासत के आदेश संभागीय आयुक्तों या ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किये जा सकते हैं।
  • अधिनियम की धारा 22 अधिनियम के तहत "अच्छे विश्वास" में की गई किसी भी कार्रवाई के लिये सुरक्षा प्रदान करती है।
  • इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार हिरासत में लिये गए किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कोई मुकदमा, अभियोजन या कोई अन्य कानूनी कार्यवाही नहीं की जाएगी।

अधिनियम से जुड़े मुद्दे

  • इसे अक्सर "बेरहम" (Draconian) कानून के रूप में जाना जाता है।
  • हालाँकि शुरुआत से ही कानून का व्यापक रूप से दुरुपयोग किया गया और वर्ष 1990 तक तत्कालीन सरकारों द्वारा राजनीतिक विरोधियों को हिरासत में लेने के लिये इसका उपयोग किया गया।
  • जुलाई 2016 में आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद राज्य में व्यापक अशांति फैल गई थी, जिसके बाद सरकार ने अलगाववादियों पर नकेल कसने के लिये PSA को (विस्तार योग्य हिरासत अवधि के साथ) लागू किया।
  • अगस्त 2018 में राज्य के बाहर भी PSA के तहत व्यक्तियों को हिरासत में लेने की अनुमति देने के लिये अधिनियम में संशोधन किया गया था।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस