CMS-01 उपग्रह का प्रक्षेपण | 19 Dec 2020

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने आंध्र प्रदेश के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से अपने ‘ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान’ (PSLV - C50) के माध्यम से ‘सीएमएस-01’ (CMS-01) नामक एक संचार उपग्रह को प्रक्षेपित किया है।

  • गौरतलब है कि इससे पहले नवंबर 2020 में इसरो ने भारत के पृथ्वी अवलोकन उपग्रह, EOS-01 के साथ नौ अन्य ग्राहक उपग्रहों (Customer Satellites) को लॉन्च किया था।

प्रमुख बिंदु: 

  • CMS -01 एक संचार उपग्रह है जिसकी परिकल्पना विस्तारित सी बैंड आवृत्ति स्पेक्ट्रम में सेवाएँ प्रदान करने के लिये की गई है।
    • सी बैंड 4.0 से 8.0 गीगाहर्ट्ज़ (GHz) तक फ्रीक्वेंसी की माइक्रोवेव रेंज में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम के एक हिस्से को संदर्भित करता है।
  • इसके कवरेज  क्षेत्र में भारतीय मुख्य भूमि के साथ अंडमान और निकोबार तथा लक्षद्वीप द्वीप समूह शामिल होंगे।
  • इस उपग्रह का जीवन काल (सक्रिय रहने की अवधि)  सात वर्ष से अधिक होने की संभावना है।
  • उपग्रह को पूर्वनिर्धारित उप-भूसमकालिक स्थानांतरण कक्षा (GTO) में प्रविष्ट कराया गया था। इसकी दिशा और स्थिति कुछ बदलावों के बाद इसे भू-समकालिक कक्षा  में अपने निर्दिष्ट स्लॉट में स्थापित करेगी।
  • यह उपग्रह GSAT-12 का स्थान लेगा और इसकी सेवाओं को बढ़ाएगा। 
    • GSAT -12, इसरो द्वारा बनाया गया एक संचार उपग्रह है, जो टेली-एजुकेशन, टेली-मेडिसिन और ग्राम संसाधन केंद्रों (VRC) के लिये विभिन्न संचार सुविधाएँ प्रदान करता है।
      • ग्रामीण क्षेत्रों को अंतरिक्ष आधारित सेवाओं की सीधी पहुँच प्रदान करने के लिये इसरो द्वारा गैर-सरकारी संगठनों/ट्रस्टों और राज्य/केंद्रीय एजेंसियों के साथ मिलकर ‘ग्राम संसाधन केंद्र’ (VRC)  नामक कार्यक्रम की शुरुआत की गई है।

इसरो का अगला प्रक्षेपण :

  •  ‘पीएसएलवी-सी 51’ (PSLV-C51) इसरो का अगला विशेष मिशन होगा, क्योंकि यह भारत सरकार द्वारा घोषित अंतरिक्ष सुधार कार्यक्रम के तहत देश का पहला उपग्रह होगा।
    •  सरकार द्वारा ‘भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र' (IN-SPACe) की स्थापना किये जाने के साथ ही अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी क्षेत्र के लिये खोलने की घोषणा की गई थी।
    • IN-SPACe को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों और एक अनुकूल नियामक वातावरण के माध्यम से अंतरिक्ष गतिविधियों में निजी उद्योगों को समर्थन व बढ़ावा देने तथा उनका मार्गदर्शन करने के लिये शुरू किया गया है।
  •  पीएसएलवी-सी 51 (PSLV-C51) द्वारा प्रक्षेपित उपग्रह:
    • पीएसएलवी-सी 51  के साथ ‘पिक्सेल इंडिया’ (Pixxel India) के ‘आनंद', स्पेस किड्ज़ इंडिया के ‘सतीश सैट’ (Satish Sat) और कुछ विश्वविद्यालयों के एक संघ से ‘यूनिटी सैट (Unity Sat) नामक उपग्रहों को प्रक्षेपित किया जाएगा।

ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान:

  •  भारत का ‘ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान’ (PSLV) तीसरी पीढ़ी का प्रक्षेपण यान है।
  • पीएसएलवी पहला लॉन्च वाहन है जो तरल चरण (Liquid Stages) से सुसज्जित है।
  • PSLV का पहला सफल प्रक्षेपण अक्तूबर 1994 में किया गया था। PSLV का उपयोग भारत के दो सबसे महत्त्वपूर्ण मिशनों (वर्ष 2008 के चंद्रयान -I और वर्ष 2013 के मार्स ऑर्बिटर स्पेसक्राफ्ट) के लिये  भी किया गया था। 
  • 'भू-स्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान मार्क II’ (GSLV MkII) और GSLV MkIII दो अन्य महत्त्वपूर्ण प्रक्षेपण यान हैं।
    • GSLV Mk III को 4 टन वज़न वर्ग के उपग्रहों को भू-समकालिक स्थानांतरण कक्षा (GTO) या लगभग 10 टन वज़न वर्ग के उपग्रह को  पृथ्वी की निचली कक्षा (Low Earth Orbit) में ले जाने के लिये विकसित किया गया है, जो GSLVk II की क्षमता से दोगुना है।
    • चंद्रयान -2 अंतरिक्षयान को लॉन्च करने के लिये चुना गया GSLV MkIII, इसरो द्वारा विकसित एक तीन-चरण वाला हैवी लिफ्ट प्रक्षेपण यान है। इस प्रक्षेपण यान में दो ठोस स्ट्रैप-ऑन, एक कोर तरल बूस्टर और एक क्रायोजेनिक ऊपरी चरण है।
      • GSLV MkII, भारत द्वारा विकसित सबसे बड़ा प्रक्षेपण यान है, जो वर्तमान में प्रचालन में है। यह चौथी पीढ़ी का तीन चरणों वाला प्रक्षेपण यान है जिसमें चार तरल स्ट्रैप-ऑन हैं। स्वदेशी रूप से विकसित क्रायोजेनिक अपर स्टेज (CUS), GSLV Mk II के तीसरे चरण के रूप में कार्य करता है।

भू-समकालिक कक्षा:

  • भू-समकालिक कक्षा पृथ्वी की एक उच्च कक्षा है जो उपग्रहों को पृथ्वी के घूर्णन गति से मेल खाने में सक्षम बनाती है। पृथ्वी की भूमध्य रेखा से 22,236 मील ऊपर स्थित  कक्षा मौसम, संचार और निगरानी के लिये एक महत्त्वपूर्ण स्थान है।

भू-समकालिक स्थानांतरण कक्षा:

  • पृथ्वी की भू-समकालिक (और भूस्थिर) कक्षाओं को प्राप्त करने के लिये एक अंतरिक्षयान को पहले अंडाकार कक्षा में प्रक्षेपित किया जाता है। इसे भू-समकालिक स्थानांतरण कक्षा (GTO) कहा जाता है।
  • एक जीटीओ अत्यधिक अंडाकार होता है। इसका भू-समीपक (पृथ्वी का निकटतम) बिंदु  आम तौर पर पृथ्वी की निचली कक्षा (LEO) के बराबर होता है, जबकि इसका चरम बिंदु (Apogee) या पृथ्वी से सबसे दूर का बिंदु भू-स्थिर कक्षा के बराबर उँचाई पर भू-समकालिक कक्षा के बराबर होता है।

स्रोत: द हिंदू