इसरो का हरित प्रणोदक | 19 May 2018

चर्चा में क्यों?

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के वैज्ञानिकों ने उपग्रहों और अंतरिक्ष यान को शक्ति देने के लिये पर्यावरण के अनुकूल प्रणोदक के विकास में प्रगति की जानकारी दी है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • यह पारंपरिक हाइड्राजीन रॉकेट ईंधन जो कि  एक अत्यधिक जहरीला  और कैंसरजन्य रसायन होता है, को भविष्य के मिशनों के लिये एक हरित प्रणोदक में बदलने का प्रयास है| 
  • लिक्विड प्रोपल्सन सिस्टम्स सेंटर (LPSC) में एक शोध दल द्वारा शुरुआती परीक्षणों ने हाइड्रोक्साइलैमोनियम नाइट्रेट (Hydroxylammonium nitrate-HAN) आधारित प्रणोदक (propellant) के निर्माण और संबंधित परीक्षणों में आशाजनक सफलता प्राप्त किये हैं।
  • अपनी उच्च प्रदर्शन विशेषताओं के कारण, हाइड्राज़िन ने पर्यावरण, स्वास्थ्य संबंधी खतरों और इसके विनिर्माण, भंडारण, स्थान प्रबंधन और परिवहन में आने वाली चुनौतियों के बावजूद, छह दशकों से अधिक समय से प्रणोदक के विकल्प के रूप में अंतरिक्ष उद्योग में अपना प्रभुत्व स्थापित किया है।
  • LPSC टीम में अर्पिता दास, बी राधिका और आर नारायण ने HAN आधारित मोनोप्रोपेलेंट तैयार किया और विभिन्न विशेषताओं के साथ थर्मल और उत्प्रेरक अपघटन और सुसंगतता जैसी इसकी विशेषताओं की जाँच के लिये विभिन्न परीक्षण किये।
  • मोनोप्रोपेलेंट एक रासायनिक प्रणोदन ईंधन है जिसे एक अलग ऑक्सीडाइज़र की आवश्यकता नहीं होती है।
  • इसका उपयोग कक्षीय सुधार और अभिविन्यास नियंत्रण के लिये उपग्रह प्रक्षेपकों (Thrusters) में बड़े पैमाने पर किया जाता है।
  • इन-हाउस फोर्मुलेशन में HAN, अमोनियम नाइट्रेट, मेथनॉल और जल शामिल हैं।
  • जबकि दहन अस्थिरता को कम करने के लिये मेथनॉल मिलाया गया था, HAN को जलने की दर को नियंत्रित करने और प्रणोदक के हिमांक बिंदु को कम करने की क्षमता के कारण लिया गया था।
  • LPSC उड़ान (flight) विन्यास (configuration) में और परीक्षण की योजना बना रहा है।