सिंचाई प्रतिरूप और मानसून | 12 Aug 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई ने पता लगाया है, कि सिंचाई प्रतिरूप मानसूनी वर्षा को प्रभावित कर रहा है।

प्रमुख बिंदु:

  • पहली बार भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के शोधकर्त्ताओं ने बताया है कि बेहतर सिंचाई नीति के माध्यम से वायुमंडलीय प्रतिक्रिया के साथ ही भारत में मानसूनी वर्षा को तीव्र किया जा सकता है।
  • शोधकर्त्ताओं ने बताया कि, उत्तर-पश्चिमी भारत में गर्मियों में मानसूनी वर्षा में परिवर्तन और सितंबर महीने में मध्य भारत में अत्यधिक वर्षा को सिंचाई प्रतिरूप प्रभावित कर रहा है।
  • सितंबर के महीने में कृषि भूमि अत्यधिक सिंचित होती है और फसलें परिपक्व होती हैं, जिसके परिणामस्वरूप वायुमंडल में अधिक नमी विद्यमान रहती है।
  • इससे पहले भी कई अध्ययनों से पता चला था कि सिंचाई भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून को प्रभावित करती है।
  • लेकिन IIT मुंबई, नॉर्थवेस्ट पैसिफिक नेशनल लेबोरेटरी ( Pacific Northwest National Laboratory ) और ओक रिज नेशनल लेबोरेटरी (Oak Ridge National Laboratory ) के शोधकर्त्ताओं ने पहली बार स्पष्ट किया कि सिंचाई प्रबंधन में किसी बदलाव से वातावरण में नमी की मात्र में भी बदलाव होता है।

भूमि-सतह मॉडल:

  • सिंचाई की मानसूनी वर्षा की भूमिका के रूप में शोधकर्त्ताओं ने भूमि-सतह मॉडल का एक मॉड्यूल विकसित किया है। यह भारत की स्थानीय मिट्टी, सिंचाई और कृषि पैटर्न को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है।
  • सामान्यतः मिट्टी में नमी कम होने के कारण सिंचाई की जाती है लेकिन भारत में अनियंत्रित सिंचाई होती है।
  • भारत का लगभग 50% फसल क्षेत्र धान से आच्छादित है, जहाँ खेतों को जलमग्न स्थिति में रखा जाता है। इसलिये धान के फसल क्षेत्रों में मानसूनी वर्षा का प्रतिरूप अन्य जगहों से भिन्न होता है।
  • सिंचाई प्रतिरूप के साथ-साथ तापमान और वाष्पीकरण भी मानसून को प्रभावित करता है।

वातावरण की प्रतिक्रिया के अध्ययन में मिट्टी की नमी को उपेक्षित नहीं किया जाना चाहिये। भारत में उपयोग किये जाने वाले किसी भी भूमि-सतह मॉडल हेतु भारत की स्थानीय सिंचाई और कृषि प्रणाली को ध्यान में अवश्य रखना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू