अंतरराज्यीय परिषद का पुनर्गठन | 03 Nov 2017

संदर्भ

  • अंतरराज्यीय परिषद का पुनर्गठन किया गया है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके अध्यक्ष होंगे तथा छह केंद्रीय मंत्रियों और सभी मुख्यमंत्रियों को इसका सदस्य बनाया गया है। परिषद की स्थायी समिति का भी पुनर्गठन किया गया है| 

क्या है नया?

  • पुनर्गठित परिषद के सदस्यों में शामिल 6 केंद्रीय मंत्रियों में राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, नितिन गडकरी, थावरचंद गहलोत और निर्मला सीतारमण हैं। 
  • सभी राज्यों और विधानसभा वाले केंद्रशासित क्षेत्रों के मुख्यमंत्री भी परिषद के सदस्य होंगे।
  • पुनर्गठित परिषद के स्थायी आमंत्रित सदस्यों में आठ अन्य केंद्रीय मंत्री—सुरेश प्रभु, रामविलास पासवान हरसिमरत कौर बादल, जुयाल ओराम, प्रकाश जावडेकर, धर्मेद्र प्रधान और पीयूष गोयल शामिल हैं। 

स्थायी समिति का भी पुनर्गठन: इसके अलावा सरकार ने अंतरराज्यीय परिषद की स्थायी समिति का भी पुनगर्ठन करते हुए गृह मंत्री राजनाथ सिंह को इसका अध्यक्ष बनाया है। परिषद की नई स्थायी समिति के सदस्यों में चार केंद्रीय मंत्री और सात मुख्यमंत्री शामिल हैं। ये चार केंद्रीय मंत्री हैं—सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, नितिन गडकरी और थावरचंद गहलोत हैं। 7 मुख्यमंत्रियों में शामिल हैं— एन. चंद्रबाबू नायडू (आंध्र प्रदेश), अमरिंदर सिंह (पंजाब), रमन सिंह (छत्तीसगढ़), माणिक सरकार (त्रिपुरा), नवीन पटनायक (ओडिशा), वसुंधरा राजे (राजस्थान) और योगी आदित्यनाथ (उत्तर प्रदेश)।

अंतरराज्यीय परिषद को भेजने से पूर्व केंद्र-राज्य संबंधी सभी मामलों पर स्थायी समिति में विचार-विमर्श होगा और इसके बाद ही इन्हें परिषद के विचारार्थ भेजने की संस्तुति की जाएगी|

  • स्थायी समिति में निरंतर विचार-विमर्श होगा और परिषद के विचारार्थ विभिन्न विषयों पर मंथन होगा| 
  • अंतरराज्जीय परिषद में विचार-विमर्श से पहले केंद्र-राज्य संबंधों से संबंधित सभी विषयों पर चर्चा की जाएगी।
  • परिषद की सिफारिशों पर लिये गए निर्णयों के कार्यान्वयन की निगरानी होगी| 
  • अध्यक्ष/परिषद द्वारा इसे सौंपे गए किसी भी अन्य विषय पर विचार किया जाएगा। 
  • स्थायी समिति आवश्यक समझने पर विशेषज्ञों और विशिष्ट क्षेत्रों के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को आमंत्रित कर सकती है, ताकि संबंधित विषयों पर विचार-विमर्श करते समय उनके विचारों से अवगत होने का लाभ उठाया जा सके।  

क्या है और क्या करती है अंतरराज्यीय परिषद?

भारत के संविधान में ऐसी शासन व्यवस्था का प्रावधान किया गया है जिसमें केंद्र और राज्यों के बीच उन्हें सौंपे गए क्षेत्रों का प्रयोग किये जाने के लिये प्राधिकार के क्षेत्रों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। इसके अनुरूप संविधान ने विधायी, प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियों के क्षेत्रों में केन्द्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विस्तृत वितरण किया है। तदनुसार, विधायी शक्ति का विषय संविधान की सातवीं अनुसूची में तीन सूचियों– केन्द्रीय सूची (सूची ।), राज्य सूची (सूची ।।) और समवर्ती सूची (सूची ।।।) में वर्गीकृत किया गया है। विधायन की अवशिष्ट शक्तियाँ संसद में निहित हैं। 

केंद्र सरकार ने शक्तियों के वितरण के क्षेत्रों में केंद्र और राज्यों के बीच विवादास्पद मुद्दों की जाँच करने के लिये समय-समय पर कदम उठाए हैं। केन्द्र सरकार ने केन्द्र और राज्यों के बीच वर्तमान व्यवस्थाओं के कार्यकरण की समीक्षा करने के लिये न्यायमूर्ति आर.एस. सरकारिया की अध्यक्षता में 1988 में एक आयोग गठित किया था। सरकारिया आयोग ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 263 के अनुसार परिभाषित अधिदेश के अनुसरण में परामर्श करने के लिये एक स्वतंत्र राष्ट्रीय फोरम के रूप में अंतरराज्जीय परिषद स्थापित किये जाने की महत्त्वपूर्ण सिफारिश की थी। इस सिफारिश के अनुसरण में संविधान के अनुच्छेद 263 के तहत राष्ट्रपति के दिनांक 28 मई, 1990 के आदेश के तहत अंतरराज्यीय परिषद का गठन किया गया था, जिसकी पहली बैठक 10 अक्टूबर, 1990 को हुई थी| 

  • अंतरराज्यीय परिषद को राज्यों के बीच उत्पन्न होने वाले विवादों की जाँच करने और सलाह देने, कुछ या सभी राज्यों, या केंद्र और एक या अधिक राज्यों के समान हित वाले विषयों की पड़ताल और विमर्श करने का अधिकार है। 
  • इस पर ऐसे विवादों पर सिफारिशें देने और नीति तथा कार्यं के बीच बेहतर समन्वय के लिये सुझाव देने का दायित्व भी है।