NDPS अधिनियम का निष्क्रिय प्रावधान: त्रिपुरा उच्च न्यायालय | 23 Jun 2021

प्रिलिम्स के लिये

‘नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस’ (NDPS) अधिनियम, 1985

मेन्स के लिये

भारत में नशीली दवाओं के नियंत्रण से संबंधित प्रावधान, संविधान संशोधन प्रकिया

चर्चा में क्यों?

हाल ही में त्रिपुरा उच्च न्यायालय ने पाया है कि ‘नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस’ (NDPS) अधिनियम, 1985 में वर्ष 2014 के संशोधनों का मसौदा तैयार करते हुए अनजाने में अधिनियम के एक प्रमुख प्रावधान (धारा 27A) को निष्क्रिय कर दिया गया है।

प्रमुख बिंदु

‘नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस’ (NDPS) अधिनियम, 1985

  • भारत संयुक्त राष्ट्र सिंगल कन्वेंशन ऑन नारकोटिक्स ड्रग्स-1961, कन्वेंशन ऑन साइकोट्रोपिक सब्सटेंस-1971 और कन्वेंशन ऑन इलीसिट ट्रैफिक ऑन नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस, 1988 का एक हस्ताक्षरकर्त्ता है।
    • ये सभी कन्वेंशन चिकित्सा और वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिये नशीली दवाओं और साइकोट्रोपिक पदार्थों के उपयोग को सीमित करने के साथ-साथ उसके दुरुपयोग को रोकने हेतु दोहरे उद्देश्यों को प्राप्त करने नियम निर्धारित करते हैं।
  • इस संबंध में भारत सरकार का मूल विधायी साधन ‘नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस’ (NDPS) अधिनियम, 1985 है।
  • यह अधिनियम नशीली दवाओं और साइकोट्रोपिक पदार्थों से संबंधित ऑपरेशन के नियंत्रण और विनियमन के लिये कड़े प्रावधान करता है।
  • साथ ही इसमें नशीली दवाओं और साइकोट्रोपिक पदार्थों के अवैध व्यापार से प्राप्त या उपयोग की गई संपत्ति की ज़ब्ती का प्रावधान किया गया है।
  • बार-बार अपराध किये जाने के मामले में यह अधिनियम मौत की सज़ा का भी प्रावधान करता है।
  • अधिनियम के तहत वर्ष 1986 में ‘नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो’ का भी गठन किया गया था।

NDPS अधिनियम की धारा 27A:

  • धारा 27A के तहत शामिल प्रावधान के मुताबिक, धारा 2 के खंड (viiia) के उप-खंड (i) से (v) में निर्दिष्ट किसी भी गतिविधि में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से शामिल कोई भी व्यक्ति अथवा उपरोक्त किसी भी गतिविधि में संलग्न किसी व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करने वाला कोई भी व्यक्ति अधिनियम के तहत दंड के लिये पात्र होगा।
  • ऐसे व्यक्ति को कठोर कारावास की सज़ा दी जाएगी, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम नहीं होगी और जिसे बीस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, साथ ही उस व्यक्ति पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है, जो कि एक लाख रुपए से कम नहीं होगा, किंतु यह दो लाख रुपए से अधिक भी नहीं होगा।
    • हालाँकि निर्णय में दिये गए कारणों के आधार पर दो लाख रुपए से अधिक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

धारा 27A के निष्क्रिय होने का कारण

  • इसके मुताबिक, धारा 2 (viiia) के उप-खंड (i) से (v) के तहत उल्लिखित अपराध धारा 27A के माध्यम से दंडनीय होंगे। 
  • हालाँकि धारा 2 (viiia) के उप-खंड (i) से (v), जिसे अपराधों की सूची माना जाता है, वर्ष 2014 के संशोधन के बाद मौजूद नहीं है।
  • अतः यदि धारा 27A किसी रिक्त सूची या गैर-मौजूद प्रावधान को दंडनीय बनाती है, तो यह कहा जा सकता है कि यह वस्तुतः निष्क्रिय है।

NDPS अधिनियम में वर्ष 2014 का संशोधन:

  • यह संशोधन मादक अथवा नशीली दवाओं के बेहतर चिकित्सा पहुँच सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लागू किया गया था। चूँकि NDPS अधिनियम के तहत नियमन काफी सख्त थे, अतः एक दर्द निवारक के रूप में इस्तेमाल किये जाने वाले मॉर्फिन का अग्रणी निर्माता होने के बावजूद देश में अस्पतालों के लिये दवा प्राप्त करना मुश्किल था।
  • वर्ष 2014 के संशोधन के माध्यम से ‘आवश्यक मादक दवाओं’ के रूप में वर्गीकृत दवाओं के परिवहन और लाइसेंसिंग में राज्य- स्तर पर उत्पन्न बाधाओं को समाप्त कर दिया गया और इसे केंद्रीकृत कर दिया गया।
  • इसके तहत आवश्यक नशीले पदार्थों को परिभाषित किया गया और आवश्यक मादक दवाओं के निर्माण, परिवहन, अंतर-राज्य आयात, अंतर-राज्य निर्यात, बिक्री, खरीद, खपत और उपयोग की अनुमति दी गई।
    • आवश्यक मादक दवाओं की परिभाषा को जोड़ने के लिये किये गए संशोधन के माध्यम से अपराधों की सूची प्रदान करने वाली धारा 2 (viiiia) को धारा 2 (viiiib) के रूप में लिखा गया, जबकि धारा 2 (viiia) के तहत आवश्यक मादक दवाओं की परिभाषा को शामिल किया गया।
    • हालाँकि इस संशोधन अधिनियम के निर्माता मूल अधिनियम की धारा 27A में भी संश्दोहन करने से चूक गए।

उच्च न्यायालय का निर्णय

  • उच्च न्यायालय ने गृह मंत्रालय (भारत सरकार) को NDPS अधिनियम, 1985 की धारा 27A में संशोधन हेतु उचित कदम उठाने का निर्देश दिया है।
    • न्यायालय ने कहा कि में धारा में संशोधन किया जाना अभी शेष है। हालाँकि, lआपराधिक कानूनों को पूर्वव्यापी रूप से संशोधित नहीं किया जा सकता है। इसलिये यदि संशोधन लाया भी जाता है, तो इससे प्रारूपण त्रुटि के कारण अधिक संवैधानिक प्रश्न उठ सकते हैं।
  • न्यायालय ने अपने आदेश में केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों को इस मामले से संबंधित सामग्री को संक्षेप में सार्वजनिक सूचना के लिये प्रकाशित करने को कहा है, ताकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद-20 का महत्त्व कम न हो।
    • संविधान का अनुच्छेद 20 दोहरे दंड से सुरक्षा की गारंटी देता है।
    • अनुच्छेद 20(1) के मुताबिक, कोई व्यक्ति किसी अपराध के लिये तब तक सिद्धदोष नहीं ठहराया जाएगा, जब तक कि उसने ऐसा कोई कार्य करते समय, जो अपराध के रूप में आरोपित है, किसी प्रवृत्त कानून का उल्लंघन न किया हो या उससे अधिक सज़ा का भागी नहीं होगा जो उस अपराध के किये जाने के समय प्रवृत्त विधि के अधीन अधिरोपित की जा सकती थी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस