न्यायपालिका के लिये अवसंरचनात्मक सुविधाएँ | 15 Jul 2021

प्रिलिम्स के लिये:

ग्राम न्यायालय, ग्राम न्यायालय अधिनियम, केंद्र प्रायोजित योजना, न्याय वितरण और कानूनी सुधार के लिये राष्ट्रीय मिशन

मेन्स के लिये:

केंद्र प्रायोजित योजनाएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने न्यायपालिका हेतु बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिये केंद्र प्रायोजित योजना (CSS) को आगामी पाँच वर्षों यानी वर्ष 2026 तक जारी रखने की मंज़ूरी दे दी है।

  • इस योजना के कार्यान्वयन के लिये ग्राम न्यायालय योजना तथा  न्याय वितरण और कानूनी सुधार के लिये राष्ट्रीय मिशन के ज़रिये मिशन मोड में 50 करोड़ रुपए आवंटित किये जाएंगे।

न्याय वितरण और कानूनी सुधार के लिये राष्ट्रीय मिशन

  • शुरुआत: इसे जून 2011 में केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया था।
  • उद्देश्य: प्रणाली में देरी को कम करके न्याय तक पहुँच बढ़ाना तथा संरचनात्मक परिवर्तनों के माध्यम से जवाबदेही को बढ़ाना। 

प्रमुख बिंदु

केंद्र प्रायोजित योजना के विषय में:

  • इस योजना का प्रचालन वर्ष 1993-94 से न्यायपालिका के लिये बुनियादी सुविधाओं के विकास हेतु  किया जा रहा है।
  • योजना को जारी रखने के इस प्रस्ताव से ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायिक अधिकारियों के लिये 3800 कोर्ट हॉल तथा 4000 आवासीय इकाइयों, 1450 वकील हॉल, 1450 शौचालय परिसर एवं  3800 डिजिटल कंप्यूटर कक्षों के निर्माण में मदद मिलेगी।
  • यह देश में न्यायपालिका के कामकाज़ और प्रदर्शन को बेहतर बनाने में मदद करेगा तथा नए भारत के लिये बेहतर अदालतों के निर्माण की दिशा में एक नया कदम होगा।
  • उन्नत "न्याय विकास-2.0" (Nyaya Vikas-2.0) वेब पोर्टल और मोबाइल एप्लीकेशन का उपयोग पूर्ण तथा चालू परियोजनाओं की जियो-टैगिंग द्वारा सीएसएस न्यायिक बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं की भौतिक एवं वित्तीय प्रगति की निगरानी के लिये किया जाता है।

ग्राम न्यायालय:

  • भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में न्याय प्रणाली की त्वरित और आसान पहुँच सुनिश्चित करने हेतु ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008 के तहत ग्राम न्यायालय स्थापित किये गए हैं।
  • यह अधिनियम 2 अक्तूबर, 2009 को लागू हुआ था।
  • अधिकार क्षेत्र:
    • संबंधित उच्च न्यायालय के परामर्श से राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित किसी निर्दिष्ट क्षेत्र पर ग्राम न्यायालय का अधिकार क्षेत्र होता है।
    • ग्राम न्यायालय अपने विशिष्ट अधिकार क्षेत्र में किसी भी स्थान पर एक मोबाइल न्यायालय के रूप में कार्य कर सकते हैं।
    • उनके पास अपराधों पर फौजदारी (क्रिमिनल) और दीवानी (सिविल) दोनों क्षेत्राधिकार होते हैं।
  • निगरानी:
    • ग्राम न्यायालय पोर्टल, राज्यों को ग्राम न्यायालयों के कामकाज की ऑनलाइन निगरानी करने में मदद करता है।

भारत में न्यायपालिका से संबंधित मुद्दे:

  • देश में न्यायाधीश-जनसंख्या अनुपात बहुत अधिक प्रशंसनीय नहीं है।
    • जबकि अन्य देशों में यह अनुपात लगभग 50-70 न्यायाधीश प्रति मिलियन व्यक्ति है, जबकि भारत में यह 20 न्यायाधीश प्रति मिलियन व्यक्ति है।
  • महामारी के बाद से अदालती कार्यवाही भी आभासी रूप से संचालित होने लगी है, पहले न्यायपालिका में प्रौद्योगिकी की भूमिका ज़्यादा नहीं थी।
  • न्यायपालिका में पदों को आवश्यकतानुसार शीघ्रता से नहीं भरा जाता है।
    • उच्च न्यायपालिका के लिये कॉलेजियम द्वारा सिफारिशों में देरी के कारण न्यायिक नियुक्ति की प्रक्रिया में देरी हो रही है।
    • निचली न्यायपालिका के लिये राज्य आयोग/उच्च न्यायालयों द्वारा की गई भर्ती में देरी भी खराब न्यायिक व्यवस्था का एक कारण है।
  • अदालतों द्वारा अधिवक्ताओं को बार-बार स्थगन दिये जाने से न्याय प्रदान करने में अनावश्यक देरी होती है।

आगे की राह:

  • CSS योजना संपूर्ण देश में ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों/न्यायिक अधिकारियों के लिये सुसज्जित कोर्ट हॉल और आवास की उपलब्धता में वृद्धि करेगी।
  • डिजिटल कंप्यूटर रूम की स्थापना से डिजिटल क्षमताओं में भी सुधार होगा और भारत के डिजिटल इंडिया विज़न के हिस्से के रूप में डिजिटलीकरण की शुरुआत को बढ़ावा मिलेगा।
  • इससे न्यायपालिका के समग्र कामकाज और प्रदर्शन में सुधार करने में मदद मिलेगी। यह ग्राम न्यायालयों को निरंतर सहायता, आम आदमी को उसके दरवाज़े पर त्वरित, पूर्ण और किफायती न्याय प्रदान करने के लिये भी प्रोत्साहन देगी।

स्रोत: पी.आई.बी.