आगामी वित्तीय वर्ष में मुद्रास्फीति में कमी: RBI | 10 Apr 2020 | भारतीय अर्थव्यवस्था
प्रीलिम्स के लिये:
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, कोर मुद्रास्फीति
मेन्स के लिये:
मुद्रास्फीति में कमी के कारण
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चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अपनी मौद्रिक नीति रिपोर्ट (MPR) में कहा है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) आधारित मुद्रास्फीति, जो पिछले कुछ महीनों में बढ़ गई थी, के वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान कम रहने की उम्मीद है।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:
- RBI के अनुसार उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित मुद्रास्फ़ीति का वित्तीय वर्ष 2020- 21 में पहली तिमाही में 4.8%, दूसरी तिमाही में 4.4%, तीसरी तिमाही में 2.7% तथा चौथी तिमाही में 2.4% तक कम होने का अनुमान है।
- यह मौद्रिक समीक्षा रिपोर्ट मार्च के अंत में हुई अनिर्धारित बैठक में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण उत्पन्न आर्थिक अनिश्चितताओं पर की गई चर्चा पर आधारित है।
- लॉकडाउन को देखते हुए मार्च तथा आगामी कुछ महीनों के लिये राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI ) का संकलन चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- COVID-19 के द्वारा वृहद आर्थिक प्रभाव डालने के कारण वैश्विक वित्तीय बाजार में उतार-चढ़ाव की वजह से फरवरी-मार्च 2020 तक भारतीय रुपए पर दबाव बढ़ सकता है।

मुद्रास्फीति में कमी के प्रमुख कारण
- COVID-19 के तीव्र प्रसार तथा मौजूदा लॉकडाउन के समय उच्च अनिश्चितता की स्थिति वर्तमान प्रत्याशित मांग तथा ‘कोर मुद्रास्फीति’ में कमी ला सकती है।
- प्रत्याशित मांग में कमी के प्रमुख कारण बेरोज़गारी तथा वेतन में कटौती, ऋण भार में वृद्धि, सार्वजनिक व्यय में कमी की वजह से बाजार में तरलता का अभाव है।
- लॉकडाउन के समय ‘समाजिक दूरी’ के परिणामस्वरूप सेवा क्षेत्र में परिवहन, मनोरंजन तथा संचार के प्रभावित होने के कारण कोर मुद्रास्फीति में कमी हो सकती है।
कोर मुद्रास्फीति (Core Inflation)
- कोर मुद्रास्फीति ऊर्जा और खाद्य वस्तुओं को छोड़कर सभी वस्तुओं और सेवाओं के दामों में बढ़ोतरी दिखाती है। सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष 2000-01 में इसका पहली बार उपयोग किया गया।
- यह देश की महँगाई दर को बेहतर ढंग से परिभाषित नहीं करती, क्योंकि इसमें महँगाई में मुख्य रूप से शामिल ऊर्जा और खाद्य सामग्रियों की गणना नहीं की जाती।
- वर्ष 2015 -2016 से सरकार ने इसके एक नए प्रारूप ‘कोर- कोर मुद्रास्फ़ीति’ (Core -Core Inflation) का उपयोग प्रारंभ किया, जिसके अंतर्गत मुद्रास्फीति की गणना खाद्य सामग्रियों, ईंधन एवं प्रकाश, परिवहन एवं संचार जैसी मदों को बाहर करके की जाती है।
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कुछ मामलों में मुद्रास्फीति वृद्धि के संकेत
- वित्तीय वर्ष 2021-22 में अगर मानसून सामान्य रहे और अगर कोई बहिर्जात या नीतिगत झटका नहीं हो तो संरचनात्मक मॉडल के अनुसार, मुद्रास्फीति 3.6-3.8% तक बढ़ सकती है।
- RBI द्वारा मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो दर को 75 आधार अंकों से घटाकर 4.4% करने तथा नकद आरक्षित अनुपात (CRR) को 100 आधार अंकों से घटाकर 3% करने से भी बाज़ार में मौद्रिक प्रवाह में वृद्धि होने की संभावना है।
- अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में निरंतर तीव्र कमी से देश की व्यापारिक स्थिति में सुधार हो सकता है, लेकिन इस चैनल द्वारा होने वाले लाभ से अभी नुकसान की भरपाई की उम्मीद नहीं है।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक
- CPI भारत में उपभोक्ताओं की खपत और क्रय शक्ति आदि में व्यापक अंतर की गणना करता है।
- CPI मुद्रास्फ़ीति के माइक्रो लेवल विश्लेषण के लिये इस्तेमाल की जाती है।
- उपभोक्ताओं के मध्य सामाजिक-आर्थिक अंतरों को ध्यान में रखते हुए भारत में CPI के चार प्रकार हैं:
- औद्योगिक मज़दूरों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-IW)
- शहरी गैर मैनुअल कर्मचारियों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI -UNME)
- खेतिहर मज़दूरों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-AL)
- ग्रामीण क्षेत्र के मज़दूरों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-RL)
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आगे की राह
- COVID-19 से उत्पन्न स्थिति को जल्दी से सामान्य करना चाहिये, जिससे मजबूत पूंजी प्रवाह को पुनर्जीवित किया जा सके।
- RBI के अनुसार, रुपए में 5% की वृद्धि से मुद्रास्फीति में 20 आधार अंकों तथा सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 15 आधार अंकों की आधारभूत वृद्धि दर्ज की जा सकती है।
स्रोत: द हिंदू