मुद्रास्फीति | 14 May 2019

चर्चा में क्यों?

अप्रैल में जारी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) में खुदरा मुद्रास्फीति छह महीने के अपने उच्च स्तर 2.92% पर पहुँच गई।

प्रमुख बिंदु

    • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मार्च में 2.86% था जो अप्रैल में बढ़कर 2.92 हो गया।
    • सूचकांक में खाद्य और पेय पदार्थों के क्षेत्र में मुद्रास्फीति अप्रैल में बढ़कर 1.38% हो गई, जबकि मार्च में यह 0.66% थी।
    • इसी प्रकार ईंधन और बिजली खंड में मुद्रास्फीति मार्च में 2.34% थी जो अप्रैल में 2.56% हो गई।
  • हेडलाइन इन्फ्लेशन किसी विशिष्ट अवधि के लिये कुल मुद्रास्फीति होती है, जिसमें कई वस्तुएँ शामिल होती हैं।
  • कोर मुद्रास्फीति में अस्थिर वस्तुएँ शामिल नहीं होती हैं। इन अस्थिर वस्तुओं में मुख्य रूप से खाद्य और पेय पदार्थ (सब्जियाँ सहित) तथा ईंधन एवं बिजली शामिल होती है।
  • कोर मुद्रास्फीति= हेडलाइन मुद्रास्फीति- खाद्य तथा ईंधन मुद्रास्फीति
  • CPI की हेडलाइन मुद्रास्फीति उम्मीद से थोड़ी कम रही जो अर्थव्यवस्था में बढ़ती मंदी की तरफ इशारा करती है।
  • इसके अलावा, फलों और सब्जियों में भी खाद्य मुद्रास्फीति लगातार बढ़ रही है।
  • मार्च में पान, तंबाकू और नशीले पदार्थों की मुद्रास्फीति 4.61% थी जो अप्रैल में घटकर 4.27% पर पहुँच गई।
  • इसी प्रकार कपड़े और फुटवियर क्षेत्र में मुद्रास्फीति जो मार्च में 2.52% थी अप्रैल में घटकर 2.01% रही।
  • हाउसिंग क्षेत्र में भी मार्च में मुद्रास्फीति 4.93% थी एवं अप्रैल में घटकर 4.76% रह गई।

मुद्रास्फीति

  • जब मांग और आपूर्ति में असंतुलन पैदा होता है तो वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं। कीमतों में इस वृद्धि को मुद्रास्फीति कहते हैं। भारत अपनी मुद्रास्फीति की गणना दो मूल्य सूचियों के आधार पर करता है- थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index- WPI) एवं उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI)।
  • अत्यधिक मुद्रास्फीति अर्थव्यवस्था के लिये हानिकारक होती है, जबकि 2- 3% की मुद्रास्फीति दर अर्थव्यवस्था के लिये ठीक होती है।
  • मुद्रास्फीति मुख्यतः दो कारणों से होती है, मांगजनित कारक एवं लागतजनित कारक।
  • अगर मांग के बढ़ने से वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होती है तो वह मांगजनित मुद्रास्फीति (Demand-Pull Inflation) कहलाती है।
  • अगर उत्पादन के कारकों (भूमि, पूंजी, श्रम, कच्चा माल आदि) की लागत में वृद्धि से वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होती है तो वह लागतजनित मुद्रास्फीति (Cost-Push Inflation) कहलाती है।

मुद्रास्फीति के प्रभाव (Effects of Inflation)

  • निवेशकर्त्ताओं पर

निवेशकर्त्ता दो प्रकार के होते है। पहले प्रकार के निवेशकर्त्ता वे होते है जो सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करते है। सरकारी प्रतिभूतियों से निश्चित आय प्राप्त होती है तथा दूसरे निवेशकर्त्ता वे होते है जो संयुक्त पूंजी कंपनियों के हिस्से खरीदते है। मुद्रास्फीति से निवेशकर्त्ता के पहले वर्ग को नुकसान तथा दूसरे वर्ग को फायदा होगा।

  • निश्चित आय वर्ग पर

निश्चित आय वर्ग में वे सब लोग आते हैं जिनकी आय निश्चित होती है जैसे- श्रमिक, अध्यापक, बैंक कर्मचारी आदि। मुद्रास्फीति के कारण वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतें बढ़ती है जिसका निश्चित आय वर्ग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

  • ऋणी एवं ऋणदाता पर

जब ऋणदाता रुपए किसी को उधार देता है तो मुद्रास्फीति के कारण उसके रुपए का मूल्य कम हो जाएगा। इस प्रकार ऋणदाता को मुद्रास्फीति से हानि तथा ऋणी को लाभ होता है।

  • कृषकों पर

मुद्रास्फीति का कृषक वर्ग पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि कृषक वर्ग उत्पादन करता है तथा मुद्रास्फीति के दौरान उत्पाद की कीमतें बढ़ती हैं। इस प्रकार मुद्रास्फीति के दौरान कृषक वर्ग को लाभ मिलता है।

  • बचत पर

मुद्रास्फीति का बचत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि मुद्रास्फीति के कारण वस्तुओं पर किये जाने वाले व्यय में वृद्धि होती है। इससे बचत की संभावना कम हो जाएगी। दूसरी ओर मुद्रास्फीति से मुद्रा के मूल्य में कमी होगी और लोग बचत करना नहीं चाहेंगे।

  • भुगतान संतुलन

मुद्रास्फीति के समय वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्यों में वृद्धि होती है। इसके कारण हमारे निर्यात महँगे हो जाएंगे तथा आयात सस्ते हो जाएंगे। नियार्त में कमी होगी तथा आयत में वृद्धि होगी जिसके कारण भुगतान संतुलन प्रतिकूल हो जाएगा।

  • करों पर

मुद्रास्फीति के कारण सरकार के सार्वजनिक व्यय में बहुत अधिक वृद्धि होती है। सरकार अपने व्यय की पूर्ति के लिये नए-नए कर लगाती है तथा पुराने करों में वृद्धि करती है। इस प्रकार मुद्रास्फीति के कारण करों के भार में वृद्धि होती है।

  • उत्पादकों पर

मुद्रास्फीति के कारण उत्पादक तथा उद्यमी वर्ग को लाभ होता है क्योंकि उत्पादक जिन वस्तुओं का उत्पादन करते हैं उनकी कीमतें बढ़ रही होती हैं तथा मज़दूरी में भी वृद्धि कीमतों की तुलना में कम होती है। इस प्रकार मुद्रास्फीति से उद्यमी तथा उत्पादकों का फायदा होता है।

मुद्रास्फीति नियंत्रण के उपाय

  • सरकार ने मुद्रास्फीति के नियंत्रण हेतु कई उपाय किये हैं-
  • अनिवार्य वस्तुओं, खासकर दालों के मूल्य में अस्थिरता को नियंत्रित करने हेतु बजट में मूल्य स्थिरता कोष में बढ़ा हुआ आवंटन।
  • बाज़ार में समुचित दखल हेतु 20 लाख टन दालों का ऑफर स्टॉक रखने का अनुमोदन।
  • अनिवार्य वस्तु अधिनियम के अंतर्गत दालों, प्याज, खाद्य तेलों और खाद्य तेल के बीजों हेतु स्टॉक सीमा लागू करने के लिये राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को अधिकृत करना।
  • उत्पादन को प्रोत्साहित कर खाद्य पदार्थों की उपलब्धता बढ़ाने हेतु ताकि मूल्यों में सुधार हो।
  • उच्चतर मूल्य की घोषणा।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस