विलुप्त होने की कगार पर सोन चिरैया | 18 Dec 2018

चर्चा में क्यों?


आईयूसीएन (IUCN) रेड लिस्ट (Red List) के अनुसार, वर्ष 1969 में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड पक्षी की आबादी लगभग 1,260 थी और वर्तमान में देश के पाँच राज्यों में मात्र 150 सोन चिरैया हैं। हाल ही में भारतीय वन्यजीव संस्थान (Wildlife Institute of India-WII) के ताज़ा शोध में यह बात सामने आई है।

indian bustard

सोन चिरैया

  • बहुत कम लोग यह जानते होंगे कि एक समय सोन चिरैया भारत की राष्ट्रीय पक्षी घोषित होते-होते रह गई थी।
  • जब भारत के ‘राष्ट्रीय पक्षी’ के नाम पर विचार किया जा रहा था, तब ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ का नाम भी प्रस्तावित किया गया था जिसका समर्थन प्रख्यात भारतीय पक्षी विज्ञानी सलीम अली ने किया था। लेकिन ‘बस्टर्ड’ शब्द के गलत उच्चारण की आशंका के कारण ‘भारतीय मोर’ को राष्ट्रीय पक्षी चुना गया था।
  • सोन चिरैया, जिसे ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (great Indian bustard) के नाम से भी जाना जाता है, आज विलुप्त होने की कगार पर है। शिकार, बिजली की लाइनों (power lines) आदि के कारण इसकी संख्या में निरंतर कमी होती जा रही है।

परिचय

  • ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ भारत और पाकिस्तान की भूमि पर पाया जाने वाला एक विशाल पक्षी है। यह विश्व में पाए जाने वाली सबसे बड़ी उड़ने वाली पक्षी प्रजातियों में से एक है।
  • ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ को भारतीय चरागाहों की पताका प्रजाति (Flagship species) के रूप में जाना जाता है।
  • इस पक्षी का वैज्ञानिक नाम आर्डीओटिस नाइग्रीसेप्स (Ardeotis nigriceps) है, जबकि मल्धोक, घोराड येरभूत, गोडावण, तुकदार, सोन चिरैया आदि इसके प्रचलित स्थानीय नाम हैं।
  • ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ राजस्थान का राजकीय पक्षी भी है, जहाँ इसे गोडावण नाम से भी जाना जाता है।
  • ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ की जनसंख्या में अभूतपूर्व कमी के कारण अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature and Natural Resources) ने इसे संकटग्रस्त प्रजातियों में भी ‘गंभीर संकटग्रस्त’ (Critically Endangered) प्रजाति के तहत सूचीबद्ध किया है।

विशेषताएँ

  • एक वयस्क सोन चिरैया की ऊँचाई करीब एक मीटर तक होती है। नर पक्षी की ऊँचाई मादा पक्षी के मुकाबले अधिक होती है।
  • नर पक्षी की गर्दन लंबी होती है तथा उसमें पाउच जैसी एक थैली होती है जिससे वह प्रणय के लिये भारी आवाजें निकाल कर मादा को अपनी और आकर्षित करता है।
  • नर और मादा दोनों हल्के भूरे रंग के होते हैं। इनके शरीर पर काले छींट नुमा निशान होते हैं।
  • नर के सर पर मौजूद कलगी के कारण दूर से ही इसकी पहचान हो जाती है।
  • सोन चिरैया ज़मीन पर ही अपना घोंसला बनाती है, यही वजह है कि कुत्तों तथा दूसरे अन्य जानवरों से इसके अण्डों को खतरा होता है।

विलुप्ति का कारण क्या है?

  • प्रश्न यह उठता है कि यदि वर्ष 1969 में सोन चिरैया की 1000 से भी अधिक संख्या मौजूद थी, तो 1969 के बाद ऐसा क्या बदल गया कि आज यह प्रजाति विलुप्त होने के कगार पर है। संभवतः शिकार एक ऐसा कारण है जिसकी वजह से पिछले कुछ दशकों में इस प्रजाति की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है।
  • भारतीय सीमा से सटे पाकिस्तानी क्षेत्रों में सोन चिरैया का शिकार माँस प्राप्त करने के लिये किया जाता है। लंबे क्षेत्र में विचरण करने की प्रवृत्ति के कारण अक्सर सोन चिरैया पाकिस्तानी क्षेत्र में भी प्रवेश कर जाती हैं, जहाँ उसे शिकारी अपना निशाना बनाते है। भारत में सोन चिरैया को WII की श्रेणी1 के संरक्षित वन्य प्राणियों में शामिल किया गया है और इसके शिकार पर पूर्णतः पाबंदी है।
  • वर्तमान समय में यह संकट इसलिये भी गहरा गया है कि घटते मैदान तथा रेगिस्तान में बेहतर सिंचाई व्यवस्था न होने के कारण इनके प्राकृतिक निवास यानी घास के मैदान कम होते जा रहे हैं।
  • सोन चिरैया की सीधे देखने की क्षमता (poor frontal vision) का कम होना और भारी शरीर इसके लिये घातक साबित हुए है। सीधे देखने की क्षमता कम होने के कारण ये बिजली के तारों से टकरा जाती है। यही कारण है कि भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा सोन चिरैया के संरक्षण के लिये इसके वास स्थलों के समीप मौजूद बिजली लाइनों को भूमिगत करने का विचार प्रस्तुत किया है।
  • साथ ही इसके निवास स्थानों को कई हिस्सों में बाँटकर अंडों को संरक्षित कर इनके सुरक्षित प्रजनन के संबंध में भी संस्तुति की है। गौरतलब है कि एक मादा बस्टर्ड एक मौसम में केवल एक ही अंडा देती है। यदि ऐसे वैज्ञानिक तरीके विकसित कर लिये जाएँ जिनसे वह एक बार में ही कई अंडे देने में सक्षम हो तो यह इसके सरंक्षण में महत्त्वपूर्ण साबित होगा।

स्थिति इतनी भयानक हो गई है कि तीन गैर-लाभकारी संगठनों - कॉर्बेट फाउंडेशन (Corbett Foundation), कंज़र्वेशन इंडिया (Conservation India) और अभयारण्य नेचर फाउंडेशन (Sanctuary Nature Foundation‌) ने एक ऑनलाइन याचिका (6,000 से भी अधिक लोगों द्वारा हस्ताक्षरित) शुरू की है। इस याचिका के माध्यम से केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर.के. सिंह से बिजली लाइनों को भूमिगत किये जाने की मांग की गई है।