भारत 8 अत्यधिक संकटग्रस्त गिद्धों को छोड़ने की तैयारी में(India to Release 8 Critically Endangered Vultures) | 11 Nov 2018

चर्चा में क्यों?

भारत, अत्यधिक संकटग्रस्त श्रेणी में शामिल सफेद पीठ वाले (White backed vulture) 8 पोषित बंदी गिद्दों को ट्रैकिंग डिवाइस के साथ छोड़ेगा। इन डिवाइस की मदद से गिद्दों के मौत के कारणों का पता चलेगा और उस कारण से अन्य गिद्दों की होने वाली मौतों को रोका जा सकेगा।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • ये गिद्ध जटायु संरक्षण प्रजनन केंद्र में पाले गए थे और इन्हें बीर शिकारगाह सैंक्चुरी में छोड़ा जाएगा, जहाँ पर बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसायटी (BNHS) इसे ‘वल्चर सेफ जोन’ (Vulture Safe Zone) घोषित करने की दिशा में कार्य कर रहा है।
  • इस सैटेलाइट टैग से यह भी पता चलेगा कि ये पक्षी अन्य नजदीकी प्रजातियों से जंगल में सामान्य रूप से व्यवहार कर रहे है या नहीं?
  • अगर 2 वर्षों में इन 8 पक्षियों की विषाक्तता के कारण मौत दर्ज नहीं की गई तो 20-25 पक्षी हर वर्ष जंगल में पुनः छोड़े जाएंगे।
  • दक्षिण एशिया में पहली बार नवंबर, 2017 में नेपाल सरकार और राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय कंजरवेशन ऑर्गनाइजेशन ने अत्यधिक संकटग्रसत श्रेणी वाले सफेद पीठ वाले गिद्दों को जंगल में छोड़ा था।

अन्य संबंधित तथ्य

  • जटायु संरक्षण प्रजनन केंद्र, बीर शिकारगाह वाइल्ड लाइफ सैंक्चुरी की सीमा पर स्थित है।
  • यह हरियाणा एवं बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसायटी (BNHS) का एक संयुक्त प्रोजेक्ट है, जिसकी स्थापना 2001 में की गई थी।
  • इसका गठन भारत में गिद्दों की 3 गंभीर रूप से संकटग्रस्त ‘जिप्स प्रजाति’ में आई अत्यधिक गिरावट की जाँच-पड़ताल के लिये किया गया था।
  • भारत में गिद्दों (Vultures) की 9 प्रजातियाँ निवास करती हैं। इसमें से 3 प्रजातियों यथा: द व्हाइट बैक्ड, लॉग बिल्ड एवं स्लेण्डर बिल्ड वल्चर्स की जनसंख्या में भयानक रूप से गिरावट दर्ज की गई है जो कि 1990 के मध्य में 90% से अधिक थी।
  • इस पक्षी को अब गंभीर रूप से संकटग्रस्त श्रेणी (Critically Endangered) श्रेणी में शामिल कर लिया गया है।
  • दक्षिण एशिया में इन गिद्दों के विलुप्ति के कागार पर पहुँचने का मुख्य कारण मवेशियों के उपचार में प्रयुक्त की जाने वाली दर्दनिवारक दवा ‘डिक्लोफेनॉक’ है। जब गिद्ध इन डिक्लोफेनॉक से उपचारित मवेशियों के मृत शरीर को खाते है तो इनकी किडनी कार्य करना बंद कर देती है।
  • भारत सरकार ने 2006 से इसके पशुचिकित्सकीय प्रयोग पर प्रतिबंध लगा रखा है।