भारत वर्ष 2023 में वैश्विक विकास में 15% का योगदान देगा: IMF | 23 Feb 2023

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, सकल घरेलू उत्पाद, रूस-यूक्रेन युद्ध, विश्व असमानता रिपोर्ट 2022, विशेष आर्थिक क्षेत्र।

मेन्स के लिये:

भारत के आर्थिक उत्थान के महत्त्वपूर्ण कारक, सतत् आर्थिक विकास में बाधाएँ। 

चर्चा में क्यों?

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार, भारत अकेले वर्ष 2023 में वैश्विक विकास में 15% का योगदान देगा तथा विश्व अर्थव्यवस्था के अनुरूप "उज्ज्वल स्थल” (Bright Spot) बना रहेगा। 

भारत के आर्थिक उत्थान के लिये महत्त्वपूर्ण कारक:

  • विकास की संभावनाएँ: भारत ऐसे समय में "उज्ज्वल स्थल” बना हुआ है जब IMF ने वर्ष  2023 को अर्थव्यवस्था के लिये कठिन समय होने का अनुमान लगाया है; वैश्विक विकास दर वर्ष 2022 के 3.4% से घटकर वर्ष 2023 में 2.9% हो गई है।
    • वित्त वर्ष 2023-24 (अप्रैल 2023 से मार्च 2024) के लिये भारत की विकास दर विश्व की बाकी अर्थव्यवस्थाओं की तरह थोड़ी धीमी गति से 6.1% रहने का अनुमान है, किंतु यह वैश्विक औसत से अधिक है।  
      • इस तरह वर्ष 2023 में भारत वैश्विक विकास में लगभग 15% का योगदान देगा।
  • डिजिटलीकरण: IMF के अनुसार, भारत ने महामारी पर काबू पाने और रोज़गार के अवसर सृजित करने के लिये डिजिटलीकरण का उपयोग किया है, जबकि देश की राजकोषीय नीति आर्थिक परिस्थितियों के लिये उत्तरदायी रही है।
  • हरित अर्थव्यवस्था में निवेश: देश के राजकोषीय उत्तरदायित्त्व को सार्वजनिक वित्त के एक सशक्त सहारे के माध्यम से माध्यम अवधि के ढाँचे में तब्दील कर दिया गया है।
    • इसके अलावा, भारत हरित अर्थव्यवस्था में निवेश कर रहा है, जिसमें अक्षय ऊर्जा भी शामिल है, जो देश को स्वच्छ ऊर्जा की ओर ले जाने की क्षमता रखती है।
  • पूंजीगत व्यय: पूंजीगत व्यय में वृद्धि हुई है, जो सकल घरेलू उत्पाद का 3.3% होगी, तथा वर्ष 2020-21 और वर्ष 2021-22 के मध्य 37% से अधिक की वृद्धि के बाद यह सबसे बड़ी छलांग होगी।
  • जनसांख्यिकीय लाभांश: भारत युवाओं का देश है। प्रतिवर्ष श्रम शक्ति में 15 मिलियन लोग जुड़ते हैं। मज़बूत निवेश के परिणामस्वरूप रोज़गार का सृजन होता है, जो कि भारत के लिये बहुत लाभकारी है। महिलाएँ भारत के विकास यात्रा में अहम योगदान दे सकती हैं।

सतत् आर्थिक विकास को प्राप्त करने में बाधाएँ:

  • समकालीन भू-राजनीतिक मुद्दे: उभरते बाज़ार (भारत सहित) भू-राजनीतिक जोखिम का खामियाजा सहन करते हैं, जिसमें आपूर्ति शृंखला में मांग और आपूर्ति के बीच अंतर का बढ़ना भी शामिल है।
  • अन्य तरीकों, जैसे कि आपूर्ति और मांग के बीच अंतर का विस्तार, के अलावा भारत जैसे उभरते बाज़ार भू -राजनीतिक जोखिम के बोझ को झेलते हैं।
    • उदाहरण के लिये रूस-यूक्रेन युद्ध के परिणामस्वरूप वैश्विक खाद्य शृंखला काफी प्रभावित हुई है।
  • हालिया समय में बेरोज़गार में वृद्धि: भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केंद्र (Centre for Monitoring Indian Economy- CMIE) के अनुसार, भारत में बेरोज़गारी दर लगभग 8% (दिसंबर 2022) है। ऐसा इसलिये है क्योंकि रोज़गार दर, GDP दर से काफी कम है।
    • काम करने में सक्षम लोगों में से केवल 40% श्रम बल वास्तव में कार्यरत है अथवा काम की तलाश कर रहा है, इसमें महिलाओं की भागीदारी कम है।
  • अमीर-गरीब के बीच अंतर में वृद्धि: 'विश्व असमानता रिपोर्ट 2022' के अनुसार, भारत की शीर्ष 10% आबादी के पास कुल राष्ट्रीय आय का 57% हिस्सा है, जबकि निचले 50% के संबंध में यही आँकड़ा गिरकर अब राष्ट्रीय आय का 13% हो गया है।
    • भारत की असमानता ज़्यादातर अपवार्ड मोबिलिटी (यह इंगित करता है कि किसी व्यक्ति की सामाजिक आर्थिक स्थिति कितनी बार बदलती है) के अवसर की कमी के कारण होती है।
  • व्यापक व्यापार घाटा: भारत के निर्यात में गिरावट आई है, भारत के व्यापार घाटे के साथ जुलाई 2022 में विकसित अर्थव्यवस्थाओं (जैसे अमेरिका की तरह) और उच्चतर वस्तुओं की कीमतों में मंदी के रुझान के कारण यह रिकॉर्ड 31 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया है।
    • पूंजी बहिर्वाह और बढ़ता चालू खाता घाटा भारतीय रुपए को काफी प्रभावित कर रहा है।

सतत् आर्थिक विकास सुनिश्चित करने की दिशा में भारत के कदम:

  • आर्थिक विकास लक्ष्यों का निर्धारण: भारत का प्रदर्शन न केवल इस बात पर निर्भर करता है कि यह वर्तमान की चुनौतियों का कितनी अच्छी तरह से निवारण करता है, बल्कि भविष्य की चुनौतियों के लिये इसकी क्या तैयारियाँ हैं।
  • भारत को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि इसके नीति विकल्प सुदृढ़ होने के साथ ही आधुनिक तकनीकी समाधान की संभावनाओं से परिपूर्ण हों। इसके लिये भारत के आर्थिक विकास उद्देश्यों की स्पष्टता हर सफल योजना की नींव है।
  • राष्ट्र की महत्त्वाकांँक्षाओं को दर्शाने हेतु इन उद्देश्यों का साहसिक, ऊर्जावान होना आवश्यक है।
  • भारत में विनिर्माण, भारत एवं विश्व हेतु 'ज़ीरो डिफेक्ट 'ज़ीरो इफेक्ट' पर विशेष ज़ोर देते हुए मेक इन इंडिया पहल को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
    • बैंकिंग क्षेत्र में भी सुधार की आवश्यकता है जो केवल बड़े पैमाने पर निर्माण के बजाय छोटे पैमाने के विनिर्माण को बढ़ावा देने में मदद कर सके।
  • भारतीय महिलाओं की क्षमता को बढ़ाना: शिक्षा और महिलाओं के वित्तीय एवं डिजिटल समावेशन में लैंगिक अंतर को समाप्त करना तथा बंधनों को खत्म करना प्राथमिकताएँ होनी चाहिये।
  • विशेष आर्थिक क्षेत्रों को मज़बूत करना: विदेशी निवेश व निर्यात बढ़ाने और क्षेत्रीय विकास को समर्थन देने हेतु अधिक विशेष आर्थिक क्षेत्रों (Special Economic Zones- SEZ) की आवश्यकता है।
    • SEZ पर बाबा कल्याणी समिति ने सिफारिश की है कि SEZ में MSME निवेश को MSME योजनाओं से जोड़कर तथा क्षेत्र-विशिष्ट MSME की अनुमति देकर बढ़ावा दिया जाए।

Prosperity

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. शहरी क्षेत्रों में श्रमिक उत्पादकता (2004-05 की कीमतों पर प्रति कर्मचारी रुपए) में वृद्धि हुई, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में इसमें कमी हुई।
  2. कार्यबल में ग्रामीण क्षेत्रों की प्रतिशत हिस्सेदारी में सतत् वृद्धि हुई।
  3. ग्रामीण क्षेत्रों में गैर-कृषि अर्थव्यवस्था में वृद्धि हुई।
  4. ग्रामीण रोज़गार की वृद्धि दर में कमी आई है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3 और 4
(c) केवल 3
(d) केवल 1, 2 और 4

उत्तर: (b)


प्रश्न. क्या आप सहमत हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने हाल ही में V-आकार के पुनरुत्थान  का अनुभव किया है? कारण सहित अपने उत्तर की पुष्टि कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2021)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस