भारत सरकार की जलविद्युत परियोजनाओं के लिये टैरिफ कम करने की योजना | 24 Jan 2018

चर्चा में क्यों?
भारत सरकार नई जलविद्युत परियोजनाओं की अन्य सस्ते विद्युत स्रोतों से स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करने हेतु इन परियोजनाओं के टैरिफ कम करने पर विचार कर रही है। भारत की नदियों में लगभग 100 गीगावाट जलविद्युत उत्पादन की क्षमता है किंतु उच्च टैरिफ के कारण इस क्षमता का दोहन नहीं हो पाया है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु 

  • केंद्रीय विद्युत मंत्रालय ने नई जलविद्युत परियोजनाओं को व्यवहार्य (Viable) बनाने के लिये टैरिफ के निर्धारण में सड़कों और पुलों जैसे बुनियादी ढाँचे के निर्माण की लागत को शामिल नहीं करने का प्रस्ताव दिया है। 
  • भारत में अधिकांश जलविद्युत परियोजनाएँ पर्वतीय क्षेत्र में स्थित हैं। इनके निर्माण के लिये उपकरणों को लाने व ले जाने के लिये सड़कों और पुलों के निर्माण की लागत काफी अधिक होने से टैरिफ में भी वृद्धि हो जाती है। 
  • इन परियोजनाओं की राज्यों के लिये उपादेयता काफी अधिक है इसलिये इन लागतों को राज्य सरकारों और केंद्र सरकार द्वारा वहन किया जा सकता है।
  • राज्य स्तर पर बिजली के खुदरा विक्रेता अपने वित्तीय संसाधनों को मज़बूत करने के दबाव के चलते उच्च लागत वाली बिजली खरीदने के लिये तैयार नहीं हैं।
  • इसलिये प्रस्ताव में यह भी शामिल है कि खुदरा बिजली विक्रेताओं को अपनी खरीद में जलविद्युत का एक निश्चित हिस्सा शामिल करना अनिवार्य होगा तथा ऐसी परियोजनाओं के टैरिफ में स्थिरता लाने के लिये दीर्घकालिक ऋण भी उपलब्ध कराया जाएगा। इस प्रस्ताव को विचार विमर्श के लिये अन्य मंत्रालयों को भेजा गया है।

टैरिफ कम करने की आवश्यकता क्यों?

  • नई जलविद्युत परियोजनाओं का टैरिफ करीब 6 रूपए प्रति किलोवाट या उससे ज़्यादा निकल के आता है, जबकि अधिकांश खुदरा बिजली विक्रेता 5 रूपए प्रति किलोवाट से कम लागत वाले ऊर्जा विकल्प की खोज में रहते हैं। पिछले वर्ष पवन और सौर ऊर्जा के टैरिफ भी रिकार्ड स्तर तक कम हो गए थे।
  • ऐसे में वितरण इकाइयों द्वारा उच्च मूल्य वाली जलविद्युत को खरीदने की संभावना कम है क्योंकि उन्हें कम लागत वाली तापीय और अन्य नवीकरणीय स्रोतों से बिजली उपलब्ध हो जाती है।

भारत में जलविद्युत परिदृश्य

  • भारत को अत्यधिक मात्रा में जल विद्युत संभाव्यता का वरदान मिला है और वैश्विक परिदृश्य में दोहन योग्य जल विद्युत संभाव्यता की दृष्टि से भारत का 5वाँ स्थान है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुमान के अनुसार भारत में मितव्ययी तरीके से दोहन योग्य लगभग 1,48,700 मेगावाट संस्थापित क्षमता के स्तर की जलविद्युत संभाव्यता विद्यमान है। 
  • भारत में बेसिनवार संभावित क्षमता निम्नानुसार है-
  • इसके अतिरिक्त 94000 मेगावाट संभावित संस्थापित क्षमता वाली 56 पम्पड स्टोरेज परियोजनाओं की भी पहचान की गई है।
  • इसके साथ ही 1,512 स्थलों पर लघु, मिनी तथा माइक्रो योजनाएँ हैं जिनकी क्षमता 6,782 मेगावाट होने का अनुमान है। इस प्रकार समग्र रूप से भारत में लगभग 2,50,000 मेगावाट की जलविद्युत संभाव्यता विद्यमान है। 

जलविद्युत के लाभ

  • नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत - दुर्लभ ईंधन भण्डारों की बचत।
  • प्रदूषण रहित होने के कारण पर्यावरण हितैषी
  • ऊर्जा के अन्य स्रोतों की तुलना में उत्पादन लागत, प्रचालन और अनुरक्षण कम है।
  • हाइड्रोइलैक्ट्रिक प्लांट्स को शीघ्रता से चालू और बंद किया जा सकता है। इस कारण सौर और पवन ऊर्जा से अनियमित आपूर्ति के कारण ग्रिड में होने वाले उतार-चढ़ाव के समाधान तथा तंत्र की विश्वसनीयता और स्थिरता बढ़ाने के लिये ये परियोजनाएँ उपयुक्त है। 
  • ताप विद्युत (35%) तथा गैस (लगभग 50%) की तुलना में इसकी क्षमता अधिक (90% से ऊपर) है।
  • इन परियोजनाओं की शुरुआती स्थापना के बाद उत्पादन लागत मुद्रा स्फीति के प्रभावों से मुक्त रहती है।
  • भण्डारण आधारित जलविद्युत योजनाओं से विद्युत के साथ-साथ सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण, पेयजल आपूर्ति, नौकायन, मनोरंजन, पर्यटन तथा मत्स्य पालन जैसे लाभ प्राप्त होते हैं।
  • अधिकांश जलविद्युत परियोजनाएँ सुदूरवर्ती क्षेत्रों में स्थित होने के कारण पिछड़े क्षेत्रों का विकास करती हैं। जैसे - शिक्षा, चिकित्सा, सड़क संचार, टेलीकम्युनिकेशन इत्यादि।
  • विद्युत ग्रिड के संतुलन के अलावा जलविद्युत भारत के लिये सामरिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। चीन सबसे बड़ी जलविद्युत क्षमता वाले उत्तर-पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश के एक हिस्से पर अपना दावा करता है।
  • जलविद्युत परियोजनाओं के द्वारा भारत, चीन और पाकिस्तान की सीमा पर अवस्थित राज्यों में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा दे सकता है।

जलविद्युत की समस्या और समाधान 

  • हालाँकि जलविद्युत एक स्वच्छ ऊर्जा का विकल्प है किन्तु पर्यावरण और वन्यजीवों पर नकारात्मक प्रभाव, राहत और पुनर्वास जैसी समस्याएँ इससे सलंग्न हैं।
  • इसके अतिरिक्त, भूमि उपयोग परिवर्तन, ग्रीनहाउस गैसों, जैसे-मीथेन का उत्सर्जन और बड़े-बड़े बांधों के कारण भौगोलिक एवं भूगर्भीय असंतुलन जैसी समस्याएँ भी हैं।
  • इसलिये लघु जलविद्युत परियोजनाएँ एक बेहतर विकल्प प्रस्तुत करती हैं। भारत में लघु जलविद्युत परियोजनाओं को 25 मेगावाट तक मानकीकृत किया गया है। इन्हें नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अंतर्गत रखा गया है।
  • जबकि, 25 मेगावाट से अधिक की परियोजनाओं को वृहद् जलविद्युत परियोजना कहा जाता और इन्हें विद्युत मंत्रालय द्वारा प्रशासित किया जाता है।

जलविद्युत की स्थापित क्षमता में कम वृद्धि के मुख्य कारण

  • विद्युत मंत्रालय की योजना शाखा केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार, भारत में लगभग 149 गीगावाट जलविद्युत उत्पादन की क्षमता है और भारत ने अभी तक लगभग 45 गीगावाट (30%) की जलविद्युत क्षमता स्थापित की है।
  • वर्तमान में समग्र ऊर्जा मिश्रण में जलविद्युत का हिस्सा 1962-63 के 51% की तुलना में महज़ 13% है।
  • पर्यावरणीय मंज़ूरी में देरी, स्थानीय मुद्दों (कानून और व्यवस्था की समस्याएँ, आंदोलन आदि), भूमि अधिग्रहण, राहत और पुनर्वास संबंधी मुद्दे एवं ठेकेदारों और कंपनियों के बीच अनुबंध संबंधी विवाद जैसे कारणों की वजह से भारत में जलविद्युत क्षमताओं का कुशल तरीके से दोहन नहीं हो पा रहा है।