सौर ई-कचरा | 12 Apr 2019

चर्चा में क्यों?

एनर्जी कंसल्टेंसी फर्म ब्रिज टू इंडिया (BTI) लिमिटेड द्वारा हाल ही में किये गए एक अध्ययन के अनुसार भारत के PV (फोटोवोल्टिक) अपशिष्ट की मात्रा 2030 तक 2,00,000 टन और 2050 तक लगभग 1.8 मिलियन टन बढ़ने का अनुमान है।

पीवी मॉड्यूल

  • एक पीवी मॉड्यूल आवश्यक रूप से काँच, धातु, सिलिकॉन और बहुलक अंशों से बना होता है।
  • इसमें ग्लास और एल्युमीनियम का हिस्सा कुल वज़न का लगभग 80% होता है जो खतरनाक नहीं होता है।
  • लेकिन कुछ अन्य पदार्थ जैसे-पॉलिमर, धातु, धातु यौगिक और मिश्र धातुओं को खतरनाक पदार्थों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • उदाहरण के लिये सीसा के निक्षालन (leaching) से जैव विविधता में नुकसान, पौधों और जीवों में वृद्धि तथा प्रजनन दर में कमी सहित भारी पर्यावरणीय प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा कई अन्य स्वास्थ्य संबंधी खतरे जैसे-किडनी की कार्यप्रणाली, तंत्रिका तंत्र, प्रतिरक्षा प्रणाली, प्रजनन और हृदय संबंधी प्रणालियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

पीवी अपशिष्ट पुनर्चक्रण

  • तकनीकी मानकों और भौतिक अवसंरचना के संदर्भ में पीवी अपशिष्ट रीसाइक्लिंग अभी भी विश्व स्तर पर शुरुआती अवस्था में है। ये कचरे आमतौर पर काँच के टुकड़े तथा धातु के रूप में होते हैं।
  • पीवी मॉड्यूल रीसाइक्लिंग अभी भी व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य नहीं है क्योंकि परिवहन सहित कुल अनुमानित लागत 400 से 600 डॉलर प्रति टन के बीच हो सकती है जो प्राप्त की गई सामग्री के मूल्य से अधिक है।

भारत में स्थिति

  • भारत सरकार ने 2022 तक 100 गीगावॉट सौर ऊर्जा स्थापित करने की प्रतिबद्धता जताई है साथ ही भारत दुनिया में सौर सेल के लिये अग्रणी बाज़ारों में से एक है।
  • अब तक भारत ने लगभग 28 GW के लिये सौर सेल स्थापित किये हैं और यह काफी हद तक आयातित सौर पीवी सेल्स (solar PV cells) पर आधारित है।
  • वर्तमान में भारत के ई-कचरे के नियमों में सौर सेल निर्माताओं को कचरे को रीसाइकल करने या इस क्षेत्र के अपशिष्ट का निपटान करने के लिये कोई कानून नहीं है।
  • अधिकांश केंद्रीय बोली-प्रक्रिया ई-कचरा (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 2011 के अनुसार होती है। इसमें ई-कचरा नियम सौर पीवी कचरे का कोई उल्लेख नहीं है।
  • काँच के टुकड़े और ई-कचरे के लिये बुनियादी रीसाइक्लिंग सुविधाओं का अभाव है।
  • सात वर्षों से अधिक समय से ई-कचरा विनियमन के बावजूद, अनुमानित ई-कचरे को केवल 4% से कम का संगठित क्षेत्र में पुनर्नवीनीकरण किया जाता है।

भारत के लिये सुझाव

  • मॉड्यूल निर्माताओं के लिये पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ डिज़ाइन और सामग्रियों को ध्यान में रखते हुए एंड-ऑफ-लाइफ (ईयू की ईको-डिज़ाइन पहल के समान) का उपयोग करना अनिवार्य किया जाना चाहिये।
  • अपशिष्ट प्रबंधन और उपचार के लिये प्रत्येक हितधारक की देयता और ज़िम्मेदारी निर्दिष्ट की जानी चाहिये।
  • पीवी अपशिष्ट संग्रह, उपचार और निपटान के लिये मानक निर्धारित किया जाना चाहिये।
  • मॉड्यूल आपूर्तिकर्त्ताओं, परियोजना डेवलपर्स और बिजली खरीदारों के बीच आपसी रीसाइक्लिंग ज़िम्मेदारी समझौतों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • प्रौद्योगिकी और क्षमता स्तर को समझने के लिये पुनर्चक्रण सुविधाओं के नियमित सर्वेक्षणों को समझना।
  • समर्पित पीवी रीसाइक्लिंग सुविधाओं के लिये निवेश और तकनीकी आवश्यकताओं की पहचान करना।

स्रोत : द हिंदू