भारत-श्रीलंका मत्स्य ग्रहण विवाद | 12 Sep 2025
चर्चा में क्यों?
भारत-श्रीलंका मत्स्य ग्रहण विवाद इस तर्क को उजागर करता है कि पाक जलडमरूमध्य और कच्चातिवु द्वीप (Katchatheevu Islands) के आसपास मत्स्य जीविकोपार्जन और पारिस्थितिक संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित करने के लिये एक ‘मानवीय दृष्टिकोण’ अपनाने की आवश्यकता है।
भारत-श्रीलंका मत्स्य ग्रहण विवाद क्या है?
- स्थान: यह विवाद पाक जलडमरूमध्य को लेकर है, जो तमिलनाडु (भारत) और श्रीलंका के उत्तरी प्रांत को अलग करने वाला एक संकरा जलमार्ग है। पाक जलडमरूमध्य पाक खाड़ी को बंगाल की खाड़ी से जोड़ता है।
- कच्चातिवु पाक जलडमरूमध्य में स्थित एक छोटा, निर्जन द्वीप है। यह विवाद इस 285 एकड़ के द्वीप से संबंधित है, जिसे वर्ष 1974 का समुद्री सीमा समझौता (Maritime Boundary Agreement) के तहत श्रीलंका को सौंपा गया था।
- यद्यपि संप्रभुता कानूनी रूप से श्रीलंका के पक्ष में निश्चित है, फिर भी भारतीय मछुआरों को जाल सुखाने तथा धार्मिक उद्देश्यों के लिये उस द्वीप पर जाने की अनुमति है।
- मात्स्यिकी अधिकार एक अलग मामला है जो ऐतिहासिक प्रथा, अंतर्राष्ट्रीय कानून (सामुद्रिक कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCLOS), 1982) और द्विपक्षीय समझौतों द्वारा शासित होते हैं।
- कच्चातिवु पाक जलडमरूमध्य में स्थित एक छोटा, निर्जन द्वीप है। यह विवाद इस 285 एकड़ के द्वीप से संबंधित है, जिसे वर्ष 1974 का समुद्री सीमा समझौता (Maritime Boundary Agreement) के तहत श्रीलंका को सौंपा गया था।
- संबंधित समुदाय: परंपरागत तमिलनाडु के मछुआरे और श्रीलंका के उत्तरी प्रांत के मछुआरे सदियों से इन जलक्षेत्रों को साझा करते आए हैं।
- मुख्य विवाद: भारतीय यांत्रिक ट्रॉलर्स श्रीलंकाई जलक्षेत्रों में प्रवेश कर बॉटम ट्रॉलिंग करते हैं, जिसे श्रीलंका ने वर्ष 2017 से प्रतिबंधित किया हुआ है। यह प्रक्रिया प्रवाल भित्तियों, झींगा आवासों को क्षति पहुँचाती है और मत्स्य भंडार को नष्ट करती है।
- छोटे स्तर के शिल्पकार मछुआरे जीविका संकट का सामना करते हैं, क्योंकि यांत्रिक ट्रॉलर्स व्यावसायिक लाभ की खोज में साझा समुद्री संसाधनों को क्षति पहुँचाते हैं।
- इस प्रकार यह संघर्ष सीमापार (भारत–श्रीलंका) और समुदाय के भीतर (तमिलनाडु में कारीगर बनाम ट्रॉलर संचालक) दोनों है।
- हाई सीज़ (High Seas) संबंधी मुद्दे: मत्स्य भंडार के क्षय के कारण भारतीय मछुआरे बढ़ती संख्या में हाई सीज़ क्षेत्रों की ओर बढ़ रहे हैं, जिसके कारण मालदीव के जलक्षेत्र में और डिएगो गार्सिया के पास ब्रिटिश नौसेना द्वारा कथित तौर पर समुद्री सीमा पार करने के आरोप में गिरफ्तारियाँ हो रही हैं।
भारत तथा श्रीलंका के बीच मत्स्य-ग्रहण संबंधी समस्या का समाधान करने तथा धारणीय मात्स्यिकी सुनिश्चित करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- आजीविका में अंतर: परंपरागत और धारणीय तरीकों पर निर्भर कारीगर मछुआरों (Artisanal Fishers) को प्राथमिकता दें। इसके साथ ही यंत्र चालित बॉटम ट्रॉलिंग (Mechanised Bottom Trawling) को धीरे-धीरे समाप्त करें, क्योंकि यह समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाती है और भारतीय व श्रीलंकाई छोटे मछुआरों दोनों की आजीविका को प्रभावित करती है।
- सहयोग ढाँचे को मज़बूत करना: मछुआरा समूहों, वैज्ञानिकों और अधिकारियों को शामिल करते हुए भारत–श्रीलंका फिशरीज मैनेजमेंट काउंसिल (Fisheries Management Council) की स्थापना करना।
- अर्द्ध-संलग्न पाक जलडमरूमध्य और मन्नार की खाड़ी में सहयोग का मार्गदर्शन करने के लिये UNCLOS अनुच्छेद 123 का उपयोग करना।
- संयुक्त कोटा (बाल्टिक सागर मात्स्यिकी सम्मेलन के कोटा-साझाकरण मॉडल के समान), इसके अतिरिक्त मौसमी मछली पकड़ने के अधिकार या नियंत्रित मछली पकड़ने के दिन, विशेष रूप से कारीगर (परंपरागत) मछुआरों के लिये निर्धारित किये जा सकते हैं।
- विकल्पों में निवेश करना: भारत के 200 समुद्री मील के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में गहरे समुद्र में मछली पकड़ने को बढ़ावा दें ताकि तट के निकट संसाधनों पर दबाव कम किया जा सके।
- मछुआरों को विनाशकारी मछली पकड़ने की पद्धति से हटने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु उन्हें प्रशिक्षण, आधुनिक जहाज़ और वित्तीय सहायता प्रदान की जाए।
- कच्चातीवु का राजनीतिकरण न करना: यह स्वीकार किया जाए कि कच्चतीवु पर संप्रभुता का मामला 1974 की संधि के तहत कानूनी रूप से सुलझ चुका है। यह मिथक दूर किया जाना चाहिये कि इसे "उपहार में दिया गया" था, क्योंकि ऐतिहासिक रिकॉर्ड बताते हैं कि श्रीलंका का दावा इस पर अधिक मज़बूत था।
- इस बात पर ज़ोर दिया जाए कि मछली पकड़ने के अधिकार संप्रभुता से अलग विषय हैं और इन पर अब भी आपसी सहयोग से बातचीत की जा सकती है। कच्चतीवु का उपयोग संयुक्त समुद्री अनुसंधान केंद्रों के लिये किया जा सकता है और इसे पारिस्थितिक सहयोग के एक केंद्र बिंदु के रूप में विकसित किया जा सकता है।
- सामुदायिक सहानुभूति को बढ़ावा देना: तमिलनाडु में सद्भावना बनाने के लिये श्रीलंकाई तमिल मछुआरों की युद्धकालीन कठिनाइयों को उजागर करना। जन-से-जन संबंधों को प्रोत्साहित करना, यह याद दिलाते हुए कि श्रीलंका के गृहयुद्ध के दौरान तमिलनाडु ने मानवीय सहयोग प्रदान किया था।
निष्कर्ष:
कच्चातिवु और पाक जलडमरूमध्य से जुड़े मुद्दों को संघर्ष नहीं, बल्कि सहयोग के अवसर के रूप में देखा जाना चाहिये। एक न्यायसंगत मात्स्यिकी व्यवस्था, जो पारंपरिक मछुआरों की आजीविका और पारिस्थितिकी की रक्षा करे, अत्यंत आवश्यक है। छोटे-छोटे विवाद दक्षिण एशिया में शांति और पारस्परिक सम्मान की बड़ी दृष्टि पर हावी नहीं होने चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत–श्रीलंका मत्स्य विवाद आजीविका की आवश्यकताओं और पारिस्थितिकीय स्थिरता के बीच टकराव को दर्शाता है। विवेचना कीजिए। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
मेन्स:
प्रश्न. भारत-श्रीलंका के संबंधों के संदर्भ में विवेचना कीजिये कि किस प्रकार आतंरिक (देशीय) कारक विदेश नीति को प्रभावित करते हैं। (2013)
प्रश्न. 'भारत श्रीलंका का बरसों पुराना मित्र है।' पूर्ववर्ती कथन के आलोक में श्रीलंका के वर्तमान संकट में भारत की भूमिका की विवेचना कीजिये। (2022)