सीरिया पर तुर्की का हमला | 11 Oct 2019

प्रीलिम्स के लिये:

सीरिया और तुर्की की भौगोलिक अवस्थिति, मैप

मुख्य परीक्षा के लिये:

सीरिया संकट, इसका विश्व शांति पर प्रभाव, भारत का रुख, मध्य एशिया की राजनीतिक स्थिति और इस संदर्भ में विश्व की भूमिका

चर्चा में क्यों?

अमेरिका द्वारा सीरिया से अपनी सेना हटाने के तुरंत बाद ही तुर्की ने सीरिया के कुर्दिश लड़ाकों (पीपुल्स प्रोटेक्शन यूनिट्स) के विरुद्ध सैन्य अभियान ‘ऑपरेशन पीस स्प्रिंग’ (Operation Peace Spring) के तहत सैन्य कार्रवाई शुरू कर दी है।

प्रमुख बिंदु

  • गौरतलब है कि सीरिया के कुर्दिश लड़ाके इस्लामिक स्टेट के खिलाफ युद्ध में अमेरिका के सहयोगी थे।
  • दुनिया भर के देशों ने तुर्की द्वारा की जा रही इस सैन्य कार्रवाई की आलोचना करते हुए कहा कि इससे सीरियाई क्षेत्र में अशांति को बढ़ावा मिलेगा।
  • युद्ध जैसा यह माहौल इस्लामिक स्टेट को पुनर्जीवित करने का एक अवसर पेश कर सकता है तथा मध्य-पूर्व में स्थिति को और खराब कर सकता है।

पृष्ठभूमि

  • वर्ष 2010 में मध्य एशिया में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन आरंभ हुआ था इसे अरब स्प्रिंग के नाम से जाना जाता है। इस आंदोलन की शुरुआत ट्यूनीशिया से हुई और धीरे-धीरे यह विभिन्न देशों, जैसे- लीबिया, मिस्र, लेबनान, मोरक्को आदि में फैल गया। इस स्थिति का लाभ उठाकर तुर्की अरब क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता था, साथ ही तुर्की का विचार इन देशों में मुस्लिम राजनीतिक दलों को स्थापित करना था।
  • ज्ञात हो कि सीरिया के साथ तुर्की सीमा साझा करता है, इसका लाभ उठाकर तुर्की, सीरिया के विद्रोहियों को सीरिया में प्रवेश करने के लिये अपनी ज़मीन उपलब्ध कराता रहा है। सीरिया में धीरे-धीरे इस्लामिक स्टेट (IS) का प्रभाव भी बढ़ता गया एवं उसकी स्थिति जटिल होती गई।
  • सीरिया में कई गुट आपस में संघर्षरत थे, इसमें कुर्दिश लड़ाकों की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। विद्रोही असद सरकार को उखाड़ना चाहते थे, कुर्द अपने लिये अलग कुर्दिस्तान हेतु संघर्ष कर रहे थे। किंतु कुर्द जो कि तुर्की, सीरिया तथा इराक में फैले हुए हैं, इन देशों के कुर्द क्षेत्रों को मिलाकर कुर्दिस्तान का निर्माण करना चाहते हैं।
  • कुर्दों के इस विचार का तुर्की प्रबल विरोधी रहा है क्योंकि यह तुर्की की अखंडता के समक्ष संकट उत्पन्न कर सकता है। लेकिन जब कुर्द आतंकवादी संगठन आईएस से युद्ध में उलझ गए तो आईएस को कमज़ोर करने के लिये अमेरिका ने कुर्दों का समर्थन किया, इससे तुर्की के हितों को धक्का लगा। सीरिया में तुर्की को अमेरिका का प्रत्यक्ष समर्थन प्राप्त नहीं हो सका जिसके चलते कुर्दों की स्थिति मज़बूत हुई है।

Syria

तुर्की का पक्ष

  • तुर्की के अनुसार, सीरियाई कुर्द ‘कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी’ से संबंध रखते हैं, जो तुर्की की संप्रभुता और अखंडता के लिये खतरा है। कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी तुर्की में कुर्दों का मार्क्सवादी विचारधारा का संगठन है जिसे तुर्की सरकार आतंकवादी संगठन मानती है।
  • तुर्की के अनुसार, इस सैन्य कार्रवाई का उद्देश्य तुर्की की दक्षिणी सीमा पर ‘आतंकी गलियारे’ को खत्म करना था।

भारत का रुख

  • भारत ने तुर्की की उत्तर पूर्व सीरिया में इस एकतरफा सैन्य कार्रवाई की कड़ी निंदा की है। भारत सरकार के अनुसार, तुर्की की यह सैन्य कार्रवाई वैश्विक स्तर पर अस्थिरता और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को कमज़ोर कर सकती है।
  • उल्लेखनीय है कि कश्मीर मुद्दे पर तुर्की की प्रतिक्रिया से भारत के साथ संबंधों में भी खटास आई है, तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एरदोगन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में पाकिस्तान का समर्थन करते हुए इस मुद्दे पर ‘गहरा खेद’ व्यक्त किया था।
  • हाल ही में भारत ने नौसेना हेतु सहायता जहाज़ के निर्माण के लिये तुर्की की रक्षा कंपनी अनादोलू शिपयार्ड के साथ एक परियोजना को रद्द कर दिया और कंपनी को भारतीय रक्षा बाज़ार में प्रतिबंधित भी कर दिया।
  • सीरिया पर तुर्की द्वारा किया गया यह हमला भारत के लिये आर्थिक दृष्टि से भी प्रतिकूल हो सकता है। इससे मध्य-पूर्वी देशों में तेल उत्पादन पर प्रभाव पड़ सकता है।
  • इन प्रतिकूल परिस्थितियों में वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतों में उछाल आएगा जिससे भारत में भी तेल की कीमतें बढ़ जाएंगी।

स्रोत: द हिंदू