भारत का अद्वितीय रोज़गार संकट | 08 Aug 2022

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय, आवधिक श्रम सर्वेक्षण, विभिन्न क्षेत्रों में रोज़गार, बेरोज़गारी के प्रकार

मेन्स के लिये:

अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का महत्त्व, भारत में रोज़गार और बेरोज़गारी, बेरोज़गारी के प्रकार

चर्चा में क्यों?

हाल के एक अध्ययन के अनुसार, वर्तमान में कृषि में कम लोग कार्यरत हैं, इसके वाबजूद परिवर्तन कमज़ोर रहा है।

  • कृषि कार्य को छोड़ने वाले लोग कारखानों की तुलना में निर्माण स्थलों और असंगठित अर्थव्यवस्था में अधिक संख्या में काम कर रहे हैं।

कृषि क्षेत्र में रोज़गार:

  • वर्ष1993-94 में कृषि देश की नियोजित श्रम शक्ति का लगभग 62% थी।
  • कृषि में श्रम प्रतिशत (राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के आँकड़ों के आधार पर) वर्ष 2004-05 तक लगभग 6% अंक और अगले सात वर्षों में 9% अंक गिर गया।
    • गिरावट की प्रवृत्ति बाद के सात वर्षों में भी धीमी गति से जारी रही।
  • वर्ष 1993-94 और वर्ष 2018-19 के बीच भारत के कार्यबल में कृषि की हिस्सेदारी 61.9% से घटकर 41.4% हो गई।
    • यह अनुमान है कि वर्ष 2018 में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद स्तर के अनुसार, भारत के कृषि क्षेत्र में कुल कार्यबल का 33-34% कार्यरत होना चाहिये।
      • अर्थात् यह 41.4% औसत कार्यबल से पर्याप्त विचलन को नहीं दर्शाता है।

sectoral-employment

भारत में रोज़गार प्रवृत्ति:

  • कृषि:
    • प्रवृत्ति का उत्क्रमण:
      • पिछले दो वर्षों में प्रवृत्ति में बदलाव आया है, जिससे वर्ष 2020-21 में कृषि में कार्यरत लोगों की हिस्सेदारी बढ़कर 44-45% हो गई है।
        • यह मुख्य रूप से कोविड-प्रेरित आर्थिक व्यवधानों से संबंधित है।
    • संरचनात्मक परिवर्तन:
      • यहाँ तक कि पिछले तीन दशकों या उससे अधिक समय में भारत में कृषि से श्रम का जो पलायन देखा गया वह उस योग्य नहीं है जिसे अर्थशास्त्री "संरचनात्मक परिवर्तन" कहते हैं।
        • संरचनात्मक परिवर्तन में कृषि से श्रम का स्थानांतरण उन क्षेत्रों, विशेष रूप से विनिर्माण और आधुनिक सेवाओं जहाँ उत्पादकता, मूल्यवर्द्धन तथा औसत आय अधिक है, में होना शामिल है।
        • हालाँकि कुल रोज़गार में कृषि के साथ ही विनिर्माण (और खनन) का भी हिस्सा कम हुआ है।
        • कृषि से अधिशेष श्रम को बड़े पैमाने पर निर्माण और सेवाओं में समाहित किया जा रहा है।
      • भारत में संरचनात्मक परिवर्तन की प्रक्रिया कमज़ोर और दोषपूर्ण रही है।
        • कोविड के कारण अस्थायी रूप से ठप होने के बावजूद कृषि से अलग क्षेत्रों में मजदूरों की आवाजाही जारी है।
        • लेकिन वह अधिशेष श्रम उच्च मूल्यवर्द्धित गैर-कृषि गतिविधियों विशेष रूप से विनिर्माण और आधुनिक सेवाओं की ओर नहीं बढ़ रहा है।
        • श्रम हस्तांतरण कम उत्पादकता वाली अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के भीतर हो रहा है।
  • सेवा क्षेत्र:
    • सेवा क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी, व्यवसाय प्रक्रिया, आउटसोर्सिंग, दूरसंचार, वित्त, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और लोक प्रशासन जैसे अपेक्षाकृत अच्छी तरह से भुगतान करने वाले उद्योग शामिल हैं।
      • इस मामले में अधिकांश नौकरियाँ छोटी खुदरा बिक्री, छोटे भोजनालयों, घरेलू मदद, स्वच्छता, सुरक्षा स्टाफ, परिवहन और इसी तरह की अन्य अनौपचारिक आर्थिक गतिविधियोंं से संबंधित हैं।
      • यह संगठित उद्यमों में रोज़गार के कम हिस्से से भी स्पष्ट है, जिन्हें 10 या अधिक श्रमिकों को नियुक्त करने वाले के रूप में परिभाषित किया गया है।

सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में रोज़गार के बढ़ते अवसर:

  • वर्ष 2020-22 के बीच भारत की शीर्ष पाँच आईटी कंपनियों (टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़, इंफोसिस, विप्रो, एचसीएल टेक्नोलॉजीज़ और टेक महिंद्रा) में संयुक्त कर्मचारियों की संख्या55 लाख से बढ़कर 15.69 लाख हो गई है।
    • महामारी के बाद की अवधि में यह 4.14 लाख या लगभग 36% की वृद्धि है, जब कृषि को छोड़कर अधिकांश अन्य क्षेत्र नौकरियों और वेतन में कमी कर रहे थे।
    • इन पाँच कंपनियों में संयुक्त रोज़गार की संख्या, भारतीय रेलवे और तीन रक्षा सेवाओं के संयुक्त रोज़गार की तुलना में अधिक हैं।
  • आईटी क्षेत्र में हाल की अधिकांश सफलता निर्यात के परिणामस्वरूप है।
    • भारत का सॉफ्टवेयर सेवाओं में शुद्ध निर्यात वर्ष 2019-20 में 84.64 बिलियन डॉलर से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 109.54 बिलियन डॉलर हो गया है।

बेरोज़गारी पर अंकुश लगाने हेतु संभावित उपाय:

 बेरोज़गारी के प्रकार:

  • प्रच्छन्न बेरोज़गारी:
    • यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें वास्तव में आवश्यकता से अधिक लोगों को रोज़गार दिया जाता है।
    • यह मुख्य रूप से भारत के कृषि और असंगठित क्षेत्रों में पाई जाती है।
  • मौसमी बेरोज़गारी:
    • यह बेरोज़गारी वर्ष के कुछ निश्चित मौसमों के दौरान देखी जाती है।
    • भारत में खेतिहर मज़दूरों के पास वर्ष भर काफी कम काम होता है।
  • संरचनात्मक बेरोज़गारी:
    • यह बाज़ार में उपलब्ध नौकरियों और श्रमिकों के कौशल के बीच असंतुलन होने से उत्पन्न बेरोज़गारी की एक श्रेणी है।
  • चक्रीय बेरोज़गारी:
    • यह व्यापार चक्र का परिणाम है, जहाँ मंदी के दौरान बेरोज़गारी बढ़ती है और आर्थिक विकास के साथ घटती है।
  • तकनीकी बेरोज़गारी:
    • यह प्रौद्योगिकी में बदलाव के कारण रोज़गार में आई कमी है।
  • घर्षण बेरोज़गारी:
    • घर्षण बेरोज़गारी का आशय ऐसी स्थिति से है, जब कोई व्यक्ति नई नौकरी की तलाश कर रहा होता है या नौकरियाँ बदल रहा होता है, यह नौकरियों के बीच समय अंतराल को संदर्भित करती है।
  • सुभेद्य रोज़गार:
    • इसका मतलब है कि लोग बिना उचित नौकरी अनुबंध के अनौपचारिक रूप से काम कर रहे हैं और इस प्रकार इनके लिये कोई कानूनी सुरक्षा नहीं है।
    • इन व्यक्तियों को 'बेरोज़गार' माना जाता है क्योंकि उनके कार्य का रिकॉर्ड कभी भी नहीं बनाया जाता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs): 

प्रच्छन्न बेरोज़गारी का आमतौर पर अर्थ होता है:

(a) बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार रहते हैं
(b) वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध नहीं है
(c) श्रम की सीमांत उत्पादकता शून्य है
(d) श्रमिकों की उत्पादकता कम है

उत्तर: C

व्याख्या:

  • एक अर्थव्यवस्था तब प्रच्छन्न बेरोज़गारी को प्रदर्शित करती है जब उत्पादकता कम होती है और बहुत से श्रमिक कार्य कर रहे हों।
  • एक अर्थव्यवस्था उस उत्पादन को प्रदर्शित करती है जो श्रम की एक इकाई के अतिरिक्त प्राप्त होता है। प्रच्छन्न बेरोज़गारी जब उत्पादकता कम होती है और कम कार्य के लिये बहुत से श्रमिक नियोजित होतें हैं।
  • सीमांत उत्पादकता योजक को संदर्भित करती है।
  • चूँकि प्रच्छन्न बेरोज़गारी में आवश्यकता से अधिक श्रम पहले से ही काम में लगा होता है, अतः श्रम की सीमांत उत्पादकता शून्य होती है।
  • अतः विकल्प (c) सही है।

प्र. क्या क्षेत्रीय-संसाधन आधारित विनिर्माण की रणनीति भारत में रोज़गार को बढ़ावा देने में मदद कर सकती है? (मुख्य परीक्षा, 2019)

प्रश्न. आमतौर पर देश कृषि से उद्योग में और फिर बाद में सेवाओं में स्थानांतरित हो जाते हैं, लेकिन भारत कृषि से सीधे सेवाओं में स्थानांतरित हो गया। देश में उद्योग की तुलना में सेवाओं की भारी वृद्धि के क्या कारण हैं? क्या मज़बूत औद्योगिक आधार के बिना भारत एक विकसित देश बन सकता है? (मुख्य परीक्षा, 2014)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस