भारत का भूजल संदूषण संकट | 11 Aug 2025

प्रिलिम्स के लिये: केंद्रीय भूजल बोर्ड, जल प्रदूषक, विश्व स्वास्थ्य संगठन, अटल भूजल योजना

मेन्स के लिये: जल संसाधन प्रबंधन और भूजल संदूषण, संरक्षण

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) की वर्ष 2024 की वार्षिक भूजल गुणवत्ता रिपोर्ट में भारत के भूजल में व्यापक संदूषण का खुलासा हुआ है। 600 मिलियन से अधिक भारतीय दैनिक रूप से भूजल पर निर्भर हैं, इसलिये यह प्रदूषण केवल पर्यावरणीय समस्या नहीं, बल्कि एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन गया है।

भारत में भूजल संदूषण संकट के क्या कारण हैं?

  • औद्योगिक प्रदूषण: उद्योगों से भारी धातुओं (सीसा, कैडमियम, क्रोमियम, पारा) और विषैले रसायनों का अनियमित निर्वहन(Discharge) भूजल को प्रदूषित करता है।
    • कानपुर (उत्तर प्रदेश) और वापी (गुजरात) जैसे औद्योगिक क्लस्टरों के पास भूजल में विषाक्तता अत्यंत उच्च स्तर पर है, जिससे ‘मृत्यु क्षेत्र’ बन गए हैं। विषैले जल का निकास गुर्दे की विफलता का कारण बना है।
  • उर्वरकों का अधिक उपयोग: नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग नाइट्रेट प्रदूषण को बढ़ावा देता है। फॉस्फेट उर्वरक भूजल में यूरेनियम प्रदूषण का कारण बनते हैं।
  • असंगत स्वच्छता और अपशिष्ट प्रबंधन: सेप्टिक टैंकों और सीवेज सिस्टम से रिसाव होने पर रोगजनकों के साथ भूजल प्रदूषित होता है। खराब सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स जलजनित बीमारियों के स्थानीय प्रकोपों को जन्म देते हैं।
  • प्राकृतिक (भू-जनित) संदूषण: फ्लोराइड, आर्सेनिक और यूरेनियम कुछ भौगोलिक संरचनाओं में प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं, विशेषकर राजस्थान, बिहार, पंजाब तथा पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में।
    • अत्यधिक पम्पिंग से जल स्तर कम हो जाता है और संदूषण एकत्रित हो जाते हैं, जिससे जलभृत भूजनित विषाक्त पदार्थों तथा लवणता के अतिक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
  • खंडित और कमज़ोर नियामक ढाँचा: जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 में भूजल की काफी अनदेखी की गई है तथा भूजल प्रदूषण पर इसका प्रवर्तन अपर्याप्त है, जिससे प्रदूषकों को खामियों का फायदा उठाने का मौका मिल जाता है।
    • CGWB के पास वैधानिक प्राधिकार का अभाव है एवं राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) के पास संसाधन की कमी है तथा वे तकनीकी रूप से सीमित हैं।
    • CGWB, CPCB, SPCB और जल शक्ति मंत्रालय जैसी एजेंसियाँ अलग-अलग कार्य करती हैं, जिससे प्रयासों में दोहराव होता है तथा समन्वय की कमी के कारण एकीकृत कार्रवाई नहीं हो पाती।
  • कमज़ोर निगरानी और जन-जागरूकता: डेटा संग्रहण कम होता है और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं होता, जिससे प्रदूषण का पता लगाने तथा प्रतिक्रिया में देरी होती है। स्थानीय समुदायों और पंचायतों की भूजल गुणवत्ता की निगरानी एवं प्रबंधन में भागीदारी भी कमज़ोर है।

भारत के भूजल प्रबंधन में शामिल प्रमुख निकाय

  • केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (CGWA): यद्यपि जल राज्य का विषय है, भूजल विनियमन केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर होता है। 
    • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत वर्ष 1997 में स्थापित CGWA संपूर्ण भारत में भूजल का नियमन और नियंत्रण करता है।
  • केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB): जल शक्ति मंत्रालय के अंतर्गत एक बहु-विषयक वैज्ञानिक निकाय। यह भूजल संसाधनों की खोज और निगरानी करता है।
  • केंद्रीय जल आयोग (CWC):  जल संसाधन के लिये भारत का प्रमुख तकनीकी निकाय, जल शक्ति मंत्रालय के अधीन कार्यरत। मुख्यालय नई दिल्ली में।
    • यह बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई, नौवहन, पेयजल और जल विद्युत परियोजनाओं पर राज्य सरकारों के साथ समन्वय करता है।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB): जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 को लागू करता है।
    • यह जल की गुणवत्ता को बनाए रखता है, प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण एवं वायु गुणवत्ता में सुधार के संबंध में केंद्र सरकार को सलाह देता है।

दूषित भूजल के प्रभाव क्या हैं?

  • स्वास्थ्य:
    • फ्लोराइड संदूषण: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की 1.5 मिलीग्राम/लीटर की सीमा से ऊपर, जिससे स्केलेटल फ्लोरोसिस, जोड़ों में दर्द, अस्थियों में विकृति तथा विकास अवरुद्ध हो सकता है। 
      • विशेषकर राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में इससे लगभग 66 मिलियन लोग प्रभावित हैं।
    • आर्सेनिक विषाक्तता: बिहार और उत्तर प्रदेश में इसका स्तर 200 µg/L तक पहुँच गया है, जो हज़ारों कैंसर मामलों से संबंधित है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की 10 µg/L की सीमा से ऊपर, आर्सेनिक विषाक्तता से त्वचा पर घाव, श्वसन संबंधी समस्याएँ और कैंसर हो सकता है। 
    • नाइट्रेट संदूषण: विश्व स्वास्थ्य संगठन की सुरक्षित सीमा 45 मि.ग्रा./ली. से ऊपर होने पर, यह शिशुओं में “ब्लू बेबी सिंड्रोम” (मेथेमोग्लोबिनेमिया) का कारण बनता है, जिसकी वजह से  पंजाब, हरियाणा और कर्नाटक में अस्पतालों में भर्ती होने वाले शिशुओं की संख्या बढ़ रही है।
    • यूरेनियम संदूषण: विश्व स्वास्थ्य संगठन की 30 µg/L की सीमा से ऊपर, जिससे दीर्घकालिक अंग क्षति और किडनी की विषाक्तता हो सकती है। 
    • भारी धातुएँ (सीसा, कैडमियम, क्रोमियम, पारा): कानपुर और वापी जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में इसका उच्च स्तर विकासात्मक विलंबता, एनीमिया, तंत्रिका संबंधी और प्रतिरक्षा क्षति का कारण बनता है।
    • रोगजनक संदूषण: सीवेज़ रिसाव से बैक्टीरिया और वायरस फैलते हैं, जिससे हैजा, दस्त, हेपेटाइटिस A और E के प्रकोप होते हैं।
      • पंजाब के मालवा क्षेत्र में 66% नमूने सुरक्षित स्तर से अधिक हैं।
  • कृषि: दूषित भूजल भारी धातुओं और विषाक्त पदार्थों जैसे हानिकारक पदार्थों को खाद्य शृंखला में शामिल करके फसल की पैदावार को कम कर देता है। 
    • तटीय क्षेत्रों में भूजल के अत्यधिक दोहन से लवणता में वृद्धि होती है, जिससे कृषि उत्पादकता में उल्लेखनीय कमी आती है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र स्थिरता: प्रदूषित भूजल जल स्रोतों को दूषित करके, आवासों को बाधित करके और जैवविविधता को प्रभावित करके स्थानीय वन्यजीवों को नुकसान पहुँचाता है, जिसके परिणामस्वरूप स्वच्छ जल पर निर्भर प्रजातियों में कमी आती है।

भूजल प्रदूषण संकट से निपटने के लिये किन सुधारों की आवश्यकता है?

  • राष्ट्रीय भूजल प्रदूषण नियंत्रण ढाँचा (NGPCF): NGPCF की स्थापना कर स्पष्ट भूमिकाएँ परिभाषित की जाएँ तथा केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) को नियामकीय अधिकार प्रदान किये जाएँ।
  • आधुनिक निगरानी प्रणाली: भूजल की निगरानी को रीयल-टाइम सेंसर, रिमोट सेंसिंग, राष्ट्रीय जलाभृत मानचित्रण एवं प्रबंधन कार्यक्रम तथा ओपन डाटा प्लेटफॉर्म के माध्यम से उन्नत किया जाए। इसे हेल्थ मैनेजमेंट इन्फ़ॉर्मेशन सिस्टम जैसे स्वास्थ्य निगरानी तंत्र से एकीकृत कर प्रारंभिक पहचान सुनिश्चित की जाए।
  • लक्षित उपचार: जल जीवन मिशन (JJM) के अंतर्गत सामुदायिक जल शुद्धिकरण संयंत्र (CWPP) (आर्सेनिक एवं फ्लोराइड निवारण संयंत्र) का विस्तार और स्थापना की जाए तथा सुरक्षित पाइप जलापूर्ति का दायरा बढ़ाया जाए।
  • कठोर औद्योगिक एवं अपशिष्ट विनियमन: जीरो लिक्विड डिस्चार्ज (ZLD) को अनिवार्य किया जाए, लैंडफिल का कठोर नियमन हो तथा CGWB को अवैध उत्सर्जन पर दंड लागू करने का अधिकार दिया जाए
  • कृषि-रसायन सुधार: परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) जैसी योजनाओं के माध्यम से जैविक कृषि को प्रोत्साहित किया जाए। 
    • रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग को नियंत्रित व कम कर नाइट्रेट एवं भारी धातु प्रदूषण से बचाव किया जाए।
  • सामुदायिक-केंद्रित भूजल शासन: पंचायतों, जल उपभोक्ता समूहों एवं विद्यालयों जैसी स्थानीय संस्थाओं को भूजल निगरानी और प्रबंधन में सक्रिय भागीदारी के लिये सशक्त किया जाए।
    • अटल भूजल योजना (ATAL JAL) जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से समुदाय-आधारित सतत् भूजल प्रबंधन को जागरूकता, क्षमता निर्माण एवं केंद्र-राज्य प्रयासों के अभिसरण के जरिये बढ़ावा दिया जाए, ताकि दीर्घकालिक जल सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न.  भारत में भूजल प्रदूषण के प्रमुख कारणों और स्वास्थ्य परिणामों पर चर्चा कीजिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से भारत के कुछ भागों में पीने के जल में प्रदूषक के रूप में पाए जाते हैं? (2013)

  1. आर्सेनिक
  2. सारबिटॉल
  3. फ्लुओराइड
  4. फार्मेल्डिहाइड
  5. यूरेनियम

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2, 4 और 5
(c) केवल 1, 3 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: C 


मेन्स

प्रश्न. जल संरक्षण और जल सुरक्षा हेतु भारत सरकार द्वारा प्रवर्तित जल शक्ति अभियान की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? (2020) 

प्रश्न. भारत में घटते भूजल संसाधनों का आदर्श समाधान जल संचयन प्रणाली है। इसे शहरी क्षेत्रों में कैसे प्रभावी बनाया जा सकता है? (2018)