भारत का आपदा जोखिम वित्तपोषण | 02 Dec 2025
प्रिलिम्स के लिये: संघवाद, राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष, राष्ट्रीय और राज्य आपदा जोखिम प्रबंधन निधि
मेन्स के लिये: आपदा प्रबंधन, जलवायु अनुकूलन और आपदा जोखिम वित्तपोषण
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार ने हाल ही में जुलाई 2024 के विनाशकारी वायनाड भूस्खलन के बाद केरल को आपदा राहत के रूप में केवल 260 करोड़ रुपए स्वीकृत किये, जबकि राज्य ने अपनी क्षति का अनुमान 2,200 करोड़ रुपए लगाया था।
- इस स्पष्ट असमानता ने भारत में सहकारी संघवाद के कमज़ोर पड़ने और आपदा-जोखिम वित्त के बढ़ते केंद्रीकरण को लेकर बहसों को एक बार फिर से प्रबल कर दिया है।
भारत की वर्तमान आपदा-वित्तीय व्यवस्था क्या है?
- 15वाँ वित्त आयोग (2021–26) जनसंख्या, कुल भौगोलिक क्षेत्र और पिछले वर्षों के व्यय-रुझानों को आधार बनाकर आपदा-प्रबंधन हेतु निधियाँ आवंटित करता है।
- आयोग ने शमन के लिये अलग निधियाँ बनाने की सिफारिश की, जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय आपदा जोखिम प्रबंधन कोष (NDRMF) और राज्य आपदा जोखिम प्रबंधन कोष (SDRMF) स्थापित किया गया। इससे राहत और शमन को एकीकृत करके एक व्यापक जोखिम-प्रबंधन ढाँचा तैयार हुआ।
- 15वाँ वित्त आयोग (2021-22 से 2025-26): भारत की आपदा-वित्त संरचना को पहले के केवल प्रतिक्रिया-आधारित निधियों, राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF) और राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF) से आगे बढ़ाया गया, जो आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत बनाए गए थे।
- राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष: राज्यों के पास तत्काल राहत (खाद्य, आश्रय, चिकित्सीय सहायता, मुआवजा) के लिये उपलब्ध प्राथमिक कोष।
- सामान्य राज्यों के लिये 75:25 (केंद्र:राज्य) और पूर्वोत्तर एवं हिमालयी राज्यों के लिये 90:10 के अनुपात में वित्तपोषित।
- बाढ़, चक्रवात, भूकंप, भूस्खलन आदि जैसी अधिसूचित आपदाओं को शामिल करता है।
- राज्य अपने परिभाषित मानकों के अनुसार स्थानीय आपदाओं के लिये 10% तक राशि का उपयोग कर सकते हैं।
- वार्षिक केंद्रीय अंशदान, वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार, दो समान किस्तों में जारी किया जाता है।
- राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF): यह SDRF को तब पूरक करता है जब किसी आपदा को ‘गंभीर’ घोषित किया जाता है और SDRF अपर्याप्त होता है।
- NDRF पूरी तरह से केंद्रीय सरकार द्वारा वित्तपोषित होता है।
- राष्ट्रीय एवं राज्य आपदा जोखिम प्रबंधन कोष (NDRMF और SDRMF): 15वें वित्त आयोग की सिफारिश के अनुसार केंद्र सरकार ने वर्ष 2021 में राष्ट्रीय आपदा शमन कोष (NDMF) की स्थापना की और सभी राज्य सरकारों को राज्य आपदा शमन कोष (SDMF) स्थापित करने की सलाह दी।
- अब तक तेलंगाना को छोड़कर सभी राज्यों ने SDMF की स्थापना की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
- केंद्र सरकार सामान्य राज्यों के लिये SDMF में 75% और उत्तर-पूर्वी एवं हिमालयी राज्यों के लिये 90% का योगदान देती है, जिससे संवेदनशील क्षेत्रों में दीर्घकालिक अनुकूलन मज़बूत होता है।
- ये कोष राज्यों को बाढ़ नियंत्रण, भूस्खलन रोकथाम और भूकंपीय सुरक्षा जैसी शमन परियोजनाओं को लागू करने में सहयोग प्रदान करते हैं।
भारत की आपदा-वित्तीय व्यवस्था से जुड़ी प्रमुख चिंताएँ क्या हैं?
- केंद्र–राज्य राजकोषीय असमानता का बढ़ना: राज्यों को प्राय: उनकी बताई गई क्षति की तुलना में बहुत कम धनराशि मिलती है, जिसके कारण आकलित आवश्यकताओं और वास्तविक NDRF/SDRF वितरण के बीच अंतर बढ़ता जा रहा है। यह सहकारी संघवाद को कमज़ोर करता है।
- पुरातन और अप्रासंगिक राहत मानदंड: मुआवज़े की राशि (जैसे, प्रति मृतक केवल 4 लाख रुपये और पूरी तरह क्षतिग्रस्त मकानों के लिये 1.2 लाख रुपये) बढ़ती लागतों के अनुरूप नहीं है। इससे प्रभावित परिवार पुनर्निर्माण करने में सक्षम नहीं हो पाते।
- अस्पष्ट ‘गंभीर आपदा’ वर्गीकरण: आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 में ‘गंभीर आपदा’ की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई है, जिसके कारण निर्णय प्रक्रिया में व्यापक विवेक की स्थिति बन जाती है और NDRF सहायता के चयनात्मक अनुमोदन की संभावना बढ़ जाती है।
- प्रक्रियागत देरी और असमान राहत आवंटन: निधि जारी करने के लिये कई स्तरों की स्वीकृति आवश्यक होती है (राज्य के ज्ञापन से लेकर केंद्रीय मूल्यांकन टीमों, गृह मंत्रालय और उच्च-स्तरीय स्वीकृतियों तक), जिसके परिणामस्वरूप राहत प्रक्रिया उस समय धीमी पड़ जाती है, जब त्वरित कार्रवाई सबसे अधिक आवश्यक होती है।
- केंद्र ने वायनाड भूस्खलन को ‘गंभीर आपदा’ के रूप में वर्गीकृत करने में देरी की, जिससे केरल को उच्च NDRF सहायता पाने में बाधा हुई। यह वास्तविक क्षति और केंद्रीय सहायता के बीच बढ़ते अंतर को दर्शाता है।
- विकृत आवंटन और गलत व्याख्या: जोखिम वित्तपोषण सही तरीके से संरेखित नहीं है क्योंकि वित्त आयोग जनसंख्या और क्षेत्र पर निर्भर करता है, न कि वैज्ञानिक खतरे के संपर्क पर।
- केंद्र अक्सर पहले से स्वीकृत और चल रहे कार्यों के लिये निर्धारित SDRF राशि को ‘अव्ययित’ मान लेता है, जिससे अव्यवस्थित उपयोग का एक भ्रामक चित्र बनता है।
- स्थानीय स्तर की अपर्याप्त क्षमता: कई DDMA और शहरी निकायों में पर्याप्त स्टाफ, GIS क्षमता, डिजिटल उपकरण और योजना-निर्माण कौशल की कमी होती है, जिसके कारण निधि उपलब्ध होने के बावजूद योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन बाधित होता है।
- केंद्रीकरण की प्रवृत्ति: शर्तों पर आधारित अनुमोदनों और विवेकाधीन निधि जारी करने पर बढ़ती निर्भरता एक अधिक केंद्रीकृत आपदा वित्तपोषण मॉडल की ओर सहकारी संघवाद से एक बदलाव का संकेत देती है।
पूरे विश्व में आपदा जोखिम वित्तपोषण
- संयुक्त राज्य अमेरिका: यह उद्देश्यपूर्ण, डेटा-आधारित ट्रिगर का उपयोग करता है, जैसे प्रति-व्यक्ति नुकसान की सीमा, ताकि संघीय सहायता स्वतः जारी हो सके। इससे विवेकाधिकार कम होता है और राहत प्रक्रिया तीव्र होती है।
- मेक्सिको: वर्षा, पवन की गति या अन्य जोखिम सीमा पार होने पर निधियाँ स्वतः जारी कर दी जाती हैं। यह नियम-आधारित मॉडल त्वरित भुगतान सुनिश्चित करता है और राजनीतिक हस्तक्षेप को कम करता है।
- फिलिपींस: वर्षा और मृत्यु दर सूचकांक का उपयोग क्विक रिस्पॉन्स फंड्स को सक्रिय करने के लिये किया जाता है, जिससे स्थानीय सरकार के लिये तीव्र एवं पूर्वानुमान योग्य सहायता संभव होती है।
- अफ्रीकी और कैरिबियाई जोखिम बीमा पूल: सैटेलाइट डेटा द्वारा समर्थित पैरामीट्रिक बीमा का उपयोग करते हैं। जब पूर्वनिर्धारित जोखिम मापदंड पूरे होते हैं, तो भुगतान सक्रिय हो जाता है।
- ऑस्ट्रेलिया: संघीय आपदा सहायता को राज्य के राजस्व में राहत व्यय के हिस्से से जोड़ा जाता है, जिससे जवाबदेही और समय पर सहायता सुनिश्चित होती है।
भारत में प्रभावी और समान आपदा-वित्त पोषण प्रणाली के लिये किन सुधारों की आवश्यकता है?
- उद्देश्यपूर्ण, नियम-आधारित ट्रिगर बनाना: स्पष्ट संकेतकों जैसे वर्षा की तीव्रता, फसल नुकसान, मृत्यु दर और नुकसान-से-GSDP अनुपात का उपयोग करके स्वचालित निधि जारी करने की व्यवस्था अपनाएँ, जिसे वैज्ञानिक आपदा जोखिम सूचकांक द्वारा समर्थित किया जाए।
- भूस्खलन, क्लाउडबर्स्ट, हिमस्खलन और कीट हमले जैसे जोखिमों को शामिल करें तथा पैरामीट्रिक बीमा, बेहतर फसल एवं संपत्ति बीमा तथा क्षेत्रीय जोखिम पूल को बढ़ावा दें।
- राहत मानकों को अद्यतन करना: मृत्यु, मकान क्षति एवं आजीविका हानि के लिये मुआवज़े की राशि को वर्तमान लागत और मुद्रास्फीति के अनुसार अद्यतन करें तथा दशकों पुराने आँकड़ों को प्रतिस्थापित करें।
- संघीय संतुलन को मज़बूत करना: सुनिश्चित करें कि NDRF/SDRF का आवंटन समय पर पारदर्शी एवं पूर्वानुमान योग्य हो और ऐसी शर्तों या समझौतों पर आधारित निधि जारी करने से बचा जाए, जो सहकारी संघवाद को कमज़ोर करती हों।
- वित्त आयोग के मानदंडों में सुधार: जनसंख्या और क्षेत्र आधारित आवंटन को वैज्ञानिक बहु-जोखिम संवेदनशीलता सूचकांक से बदलें, जिसमें GIS जोखिम मानचित्र तथा जलवायु-प्रभाव डेटा शामिल हों।
- स्थानीय स्तर की क्षमता बढ़ाना: DDMA, शहरी स्थानीय निकाय तथा पंचायतों को प्रशिक्षित स्टाफ, GIS उपकरण, अग्नि सेवाएँ और आपातकालीन संचालन केंद्र प्रदान करके सशक्त बनाना।
- बाढ़ संरक्षण, ढलान स्थिरीकरण, चक्रवात आश्रय, पूर्व-चेतावनी प्रणाली और मज़बूत बुनियादी ढाँचे जैसी परियोजनाओं के लिये निधि का व्यापक उपयोग सुनिश्चित करना।
- आपदा मित्र जैसे कार्यक्रमों और स्थानीय स्वयंसेवी नेटवर्क को पहले उत्तरदाता तथा अंतिम स्तर आपदा शासन का समर्थन करने के लिये बढ़ाना।
निष्कर्ष
भारत की आपदा-वित्त पोषण प्रणाली दबाव में है, क्योंकि आकलित क्षति और वास्तविक केंद्रीय सहायता के बीच बढ़ते अंतर से सहकारी संघवाद कमज़ोर हो रहा है। जैसे-जैसे जलवायु संबंधित आपदाएँ बढ़ती हैं, राज्यों और नागरिकों की सुरक्षा के लिये पूर्वानुमान योग्य, नियम-आधारित तथा समान वित्तपोषण ढाँचा आवश्यक है।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत के वर्तमान आपदा-वित्तीय व्यवस्था की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिये। 15वें वित्त आयोग ने इसे कैसे पुनर्गठित किया और अभी भी कौन-सी कमियाँ बनी हुई हैं? |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. NDRF और SDRF क्या है?
SDRF तत्काल राहत कार्यों (भोजन, आश्रय, चिकित्सा सहायता, मुआवज़ा) के लिये मुख्य राज्य कोष है। केंद्र और राज्य का योगदान सामान्य राज्यों के लिये 75:25 और विशेष श्रेणी के राज्यों के लिये 90:10 होता है। NDRF एक केंद्रीय कोष है जो ‘गंभीर’ घोषित आपदाओं में SDRF को पूरक करता है और पूरी तरह से संघीय सरकार द्वारा वित्त पोषित है।
2. आपदा वित्त पोषण के लिये 15वें वित्त आयोग ने कौन-सा प्रमुख बदलाव सुझाया?
आयोग ने प्रतिक्रिया कोषों के साथ-साथ जोखिम-निवारण कोषों की स्थापना की सिफारिश की, जिसके तहत राष्ट्रीय आपदा जोखिम प्रबंधन कोष (NDRMF) और राज्य आपदा जोखिम प्रबंधन कोष (SDRMF) बनाए गए।
3. वर्तमान आपदा-वित्त पोषण प्रणाली की आलोचना क्यों होती है?
मुख्य आलोचनाओं में प्रक्रियात्मक देरी, अस्पष्ट ‘गंभीर आपदा’ वर्गीकरण, पुरानी मुआवजा मानक, आबादी/क्षेत्र आधारित जोखिम असंगत आवंटन और सहकारी संघवाद को कमज़ोर करने वाली केंद्रीयकरण की धारणा शामिल हैं।
सारांश
- वायनाड भूस्खलन के बाद केरल की राहत स्वीकृति कम होने से यह चिंता बढ़ गई है कि भारत का आपदा-वित्त पोषण अधिक केंद्रीकृत और कम सहकारी होता जा रहा है।
- वर्तमान प्रणाली में SDRF/NDRF राहत के लिये और SDRMF/NDRMF जोखिम-निवारण हेतु शामिल हैं, लेकिन निधि आवंटन अभी भी खतरे के आधार के बजाय आबादी तथा क्षेत्रफल पर निर्भर है।
- राज्यों को देरी, पुराने मुआवज़े मानक, अस्पष्ट ‘गंभीर आपदा’ मानदंड और वास्तविक नुकसान की तुलना में असंगत सहायता जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
- वैश्विक मॉडल दिखाते हैं कि स्वचालित, नियम-आधारित ट्रिगर तीव्र और पारदर्शी आपदा वित्त पोषण सुनिश्चित करते हैं।
- भारत को उद्देश्यपूर्ण ट्रिगर, अद्यतन राहत मानक, खतरे-आधारित आवंटन, मज़बूत स्थानीय क्षमता और जोखिम-निवारण एवं अनुकूलन पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)
प्रिलिम्स:
प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी एक भारतीय संघराज्य पद्धति की विशेषता नहीं है? (2017)
(a) भारत में स्वतंत्र न्यायपालिका है।
(b) केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन किया गया है।
(c) संघबद्ध होने वाली इकाइयों को राज्य सभा में असमान प्रतिनिधित्व दिया गया है।
(d) यह संघबद्ध होने वाली इकाइयों के बीच एक सहमति का परिणाम है।
उत्तर: (d)
मेन्स:
प्रश्न. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एन.डी.एम.ए.) के सुझावों के संदर्भ में, उत्तराखंड के अनेकों स्थानों पर हाल ही में बादल फटने की घटनाओं के संघात को कम करने के लिये अपनाए जाने वाले उपायों पर चर्चा कीजिये। (2016)