वर्ष 2025 में भारत के कार्बन उत्सर्जन में कमी | 17 Nov 2025
चर्चा में क्यों?
ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट (GCP) 2025 अध्ययन के अनुसार, जीवाश्म ईंधनों से भारत के कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में वर्ष 2025 में केवल 1.4% की वृद्धि होने का अनुमान है, जो वर्ष 2024 में दर्ज 4% वृद्धि की तुलना में एक तीव्र मंदी दर्शाता है।
- GCP वर्ष 2001 में स्थापित एक अंतर्राष्ट्रीय सहयोगी कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य वैश्विक कार्बन चक्र और उस पर मानव गतिविधियों के प्रभाव से संबंधित ज्ञान का अध्ययन तथा एकीकरण करना है।
ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट 2025 अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?
- भारत के उत्सर्जन रुझान: वर्ष 2024 में 3.19 बिलियन टन से बढ़कर वर्ष 2025 में भारत का उत्सर्जन 3.22 बिलियन टन होने का अनुमान है।
- भारत का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन 2.2 टन/वर्ष है, जो 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में दूसरा सबसे कम है। कोयला भारत के CO₂ उत्सर्जन का प्राथमिक स्रोत बना हुआ है।
- भारत 3.2 बिलियन टन वार्षिक कार्बन उत्सर्जन (2024) के साथ तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक है, जिसके बाद अमेरिका (4.9 बिलियन टन) और चीन (12 बिलियन टन) का स्थान है।
- वर्ष 2005-2014 के बीच भारत की वार्षिक उत्सर्जन वृद्धि औसतन 6.4% रही, लेकिन वर्ष 2015-2024 के दौरान यह घटकर 3.6% रह गई है, जो कार्बन तीव्रता में सुधार और नवीकरणीय क्षमता के विस्तार को दर्शाता है।
- वैश्विक उत्सर्जन रुझान: जीवाश्म ईंधन से वैश्विक CO₂ उत्सर्जन 1.1% बढ़कर इस वर्ष 38.1 बिलियन टन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुँचने का अनुमान है।
- वर्ष 2025 में वैश्विक जीवाश्म CO₂ उत्सर्जन सभी प्रमुख ईंधनों में बढ़ रहा है, जिससे कोयले में 0.8%, तेल में 1% और प्राकृतिक गैस में 1.3% की वृद्धि होगी।
- वर्षों से जलवायु कार्यवाही के बावजूद, वैश्विक उत्सर्जन में कमी शुरू नहीं हुई है।
- भूमि-उपयोग परिवर्तन (निर्वनीकरण, क्षरण) से CO₂ उत्सर्जन में हल्की गिरावट होने का अनुमान है। हालाँकि, कुल वैश्विक CO₂ उत्सर्जन (जीवाश्म ईंधन + भूमि उपयोग) लगभग 42 बिलियन टन पर स्थिर बना हुआ है, जो वर्ष 2024 के समान है।
- कार्बन बजट और जलवायु जोखिम: अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि कार्बन बजट (अधिकतम CO₂ जो हम 1.5°C से नीचे तापमान बनाए रखते हुए उत्सर्जित कर सकते हैं) लगभग समाप्त हो चुका है तथा केवल 170 बिलियन टन CO₂ शेष रह गया है (वर्ष 2025 के स्तर पर लगभग चार वर्षों का उत्सर्जन)।
- वैज्ञानिकों का कहना है कि वर्तमान उत्सर्जन गति के साथ 1.5°C सीमा के भीतर रहना अब यथार्थवादी नहीं है तथा जलवायु परिवर्तन पहले ही भूमि और महासागर के कार्बन सिंक को कमज़ोर कर रहा है, जिससे CO₂ को अवशोषित करने की उनकी क्षमता घट रही है।
भारत की उत्सर्जन प्रोफाइल
- वर्ष 2024 में UNFCCC को सौंपी गई भारत की चौथी द्विवार्षिक अद्यतन रिपोर्ट (BUR-4) में वर्ष 2019 की तुलना में वर्ष 2020 में कुल ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में 7.93% की गिरावट दर्ज की गई।
- भूमि उपयोग, भूमि-उपयोग परिवर्तन और वनों (LULUCF) को छोड़कर, भारत का उत्सर्जन 2,959 मिलियन टन CO₂e (कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य, GHG के प्रभाव को मापने की एक इकाई) था।
- LULUCF को शामिल करने पर भारत का निवल उत्सर्जन 2,437 मिलियन टन CO₂e रहा।
- ऊर्जा क्षेत्र कुल उत्सर्जन का 75.66% हिस्सा था, जबकि भूमि आधारित गतिविधियों ने लगभग 522 मिलियन टन CO₂ अवशोषित किया, जिससे राष्ट्रीय उत्सर्जन का लगभग 22% हिस्सा संतुलित हुआ।
भारत में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की वृद्धि धीमी होने के कारक कौन-कौन से हैं?
- मौसम संबंधी परिस्थितियों की भूमिका: वर्ष 2025 में मज़बूत और समय से पहले आने वाले मानसून ने शीतलन की आवश्यकता कम कर दी और सिंचाई की मांग भी घटाई, जिससे विद्युत उत्पादन पर दबाव कम हुआ तथा जीवाश्म ईंधन आधारित उत्सर्जन की वृद्धि धीमी रही।
- नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार: सौर और पवन ऊर्जा के तेज़ी से बढ़ते उत्पादन ने ग्रिड में अधिक स्वच्छ विद्युत जोड़ी, जिससे कोयले पर निर्भरता कम हुई तथा CO₂ उत्सर्जन नियंत्रित रहा।
- अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी (IRENA) के नवीकरणीय ऊर्जा सांख्यिकी 2025 के अनुसार, भारत कुल नवीकरणीय क्षमता में विश्व स्तर पर चौथे स्थान पर, पवन ऊर्जा में चौथे स्थान पर तथा सौर ऊर्जा में तीसरे स्थान पर है, जो इसके ऊर्जा परिवर्तन के पैमाने और गति को दर्शाता है।
- भारत की कुल स्थापित विद्युत क्षमता (484.82 गीगावाट) में नवीकरणीय ऊर्जा का योगदान अब 50.07% है, जिससे COP26 गैर-जीवाश्म लक्ष्य निर्धारित समय से पाँच वर्ष पहले ही प्राप्त हो गया है।
- गैर-जीवाश्म क्षमता बढ़कर 242.8 गीगावाट हो गई है, जिससे भारत वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट के लक्ष्य की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है।
- कोयला उपभोग के रुझान: वर्ष 2025 में कोयले के उपयोग में केवल मामूली वृद्धि हुई और भारत के विद्युत क्षेत्र के CO₂ उत्सर्जन में 2025 की पहली छमाही में मज़बूत स्वच्छ ऊर्जा वृद्धि और कम समग्र बिजली मांग के कारण वर्ष-दर-वर्ष 1% की गिरावट आई।
- कम शीतलन आवश्यकताओं और उच्च नवीकरणीय उत्पादन ने भारत को कोयले की खपत में होने वाली सामान्य वृद्धि से बचने में मदद की, जो आमतौर पर उत्सर्जन को बढ़ाती है।
- आर्थिक और संरचनात्मक कारक: ऊर्जा दक्षता और स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में सुधार ने अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को कम कर दिया है, जबकि बड़ा आर्थिक आधार स्वाभाविक रूप से उत्सर्जन में प्रतिशत वृद्धि को धीमा कर देता है।
भारत की दीर्घकालिक निम्न उत्सर्जन रणनीतियाँ (LT-LEDS) क्या हैं?
भारत ने "CLIMATE" परिवर्तन से निपटने के लिये एक स्थायी मार्ग तैयार करने हेतु एक LT-LEDS योजना तैयार की है। भारत की LT-LEDS में सात प्रमुख रणनीतिक परिवर्तन शामिल हैं, अर्थात्:
- C - स्वच्छ बिजली: राष्ट्रीय विकास आवश्यकताओं के अनुरूप बिजली प्रणालियों का कम कार्बन विकास।
- L- निम्न-कार्बन परिवहन: एक एकीकृत, कुशल और समावेशी निम्न-कार्बन परिवहन प्रणाली का निर्माण।
- I – समावेशी शहरी अनुकूलन: जलवायु-लचीले शहरी डिज़ाइन, ऊर्जा-कुशल इमारतों और टिकाऊ शहरीकरण को बढ़ावा देना।
- M - विनिर्माण और उद्योग डीकार्बोनाइजेशन: कुशल, नवीन, कम उत्सर्जन औद्योगिक प्रणालियों के माध्यम से उत्सर्जन से आर्थिक विकास को अलग करना।
- A - वायुमंडलीय CO₂ निष्कासन: CO₂ निष्कासन का स्तर बढ़ाना और कठिन क्षेत्रों से निपटने के लिये इंजीनियरिंग समाधान।
- T - वृक्ष एवं वनस्पति संवर्द्धन: पारिस्थितिक और सामाजिक-आर्थिक विचारों के साथ वन और वनस्पति आवरण का विस्तार करना।
- E - नेट-ज़ीरो के लिये आर्थिक पथ: कम कार्बन विकास हेतु आर्थिक और वित्तीय ढाँचे को मज़बूत करना और वर्ष 2070 तक नेट-ज़ीरो में परिवर्तन करना।
निष्कर्ष
भारत की उत्सर्जन में कमी उत्साहजनक है, लेकिन वैश्विक उत्सर्जन में वृद्धि और लगभग समाप्त हो चुका 1.5°C कार्बन बजट बेलेम में COP30 की तात्कालिकता को बढ़ा देता है। भारत की स्वच्छ ऊर्जा की गति को बनाए रखना तथा मज़बूत वैश्विक कार्रवाई सुनिश्चित करना भविष्य के जलवायु जोखिमों को सीमित करने के लिये महत्त्वपूर्ण होगा।
|
प्रश्न. चर्चा कीजिये कि किस प्रकार भारत का तेज़ी से बढ़ता नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार इसके उत्सर्जन पथ को नया आकार दे रहा है और दीर्घकालिक जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में मदद कर रहा है। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट रिपोर्ट 2025, भारत के उत्सर्जन के बारे में क्या कहती है?
भारत के जीवाश्म ईंधन CO₂ उत्सर्जन में केवल 1.4% की वृद्धि होने की उम्मीद है, जो लगभग 3.22 बिलियन टन तक पहुँच जाएगा।
2. आर्थिक विकास के बावजूद भारत का उत्सर्जन धीमा क्यों हो रहा है?
मज़बूत नवीकरणीय विस्तार, बेहतर ऊर्जा दक्षता, स्वच्छ प्रौद्योगिकियाँ तथा मज़बूत मानसून के कारण शीतलन की कम मांग।
3. भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता कितनी महत्त्वपूर्ण है?
वर्ष 2025 तक नवीकरणीय ऊर्जा कुल स्थापित क्षमता का 50.07% होगी, गैर-जीवाश्म क्षमता 242.8 गीगावाट तक पहुँच गई है।
4. भारत के CO₂ उत्सर्जन में किस क्षेत्र का प्रभुत्व बना हुआ है?
कोयला सबसे बड़ा योगदानकर्त्ता बना हुआ है, हालाँकि उच्च नवीकरणीय उत्पादन के कारण वर्ष 2025 की शुरुआत में विद्युत क्षेत्र के उत्सर्जन में 1% की गिरावट आई है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रीलिम्स
प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2019)
- कार्बन मोनोऑक्साइड
- मीथेन
- ओज़ोन
- सल्फर डाइऑक्साइड
फसल/बायोमास अवशेषों के जलने के कारण उपर्युक्त में से कौन-सा वायुमंडल में उत्सर्जित होता है?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (d)
प्रश्न. यू.एन.ई.पी. द्वारा समर्थित ‘कॉमन कार्बन मेट्रिक’को किसलिये विकसित किया गया है? (2021)
(a) संपूर्ण विश्व में निर्माण कार्यों के कार्बन पदचिह्न का आकलन करने के लिये।
(b) कार्बन उत्सर्जन व्यापार में विश्व भर में वाणिज्यिक कृषि संस्थाओं के प्रवेश हेतु अधिकार प्रदान करने के लिये।
(c) सरकारों को अपने देशों द्वारा किये गए समग्र कार्बन पदचिह्न के आकलन हेतु अधिकार देने के लिये।
(d) किसी इकाई समय (यूनिट टाइम) में विश्व में जीवाश्म ईंधनों के उपयोग से उत्पन्न होने वाले समग्र कार्बन पदचिह्न के आकलन के लिये।
उत्तर: (a)
प्रश्न. “मोमेंटम फॉर चेंज: क्लाइमेट न्यूट्रल नाउ” यह पहल किसके द्वारा शुरू की गई थी? (2018)
(a) जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल
(b) UNEP सचिवालय
(c) UNFCCC सचिवालय
(d) विश्व मौसम विज्ञान संगठन
उत्तर: (c)
मेन्स
प्रश्न. एक व्यक्ति 10 मीटर उत्तर की ओर चलता है, फिर दाएँ मुड़ता है और 5 मीटर चलता है, फिर दाएँ मुड़ता है और 10 मीटर चलता है। अब वह प्रारंभिक बिंदु से कहाँ है? (2023)
