विद्युत (संशोधन) विधेयक 2020 | 01 Jul 2020

प्रीलिम्स के लिये

विधेयक के प्रावधान

मेन्स के लिये

विद्युत (संशोधन) विधेयक 2020 की आवश्यकता व उसका महत्त्व

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्र सरकार ने विद्युत अधिनियम 2003 के विभिन्न प्रावधानों में संशोधन करने के लिये विद्युत (संशोधन) विधेयक, 2020 सदन में पेश किया है। 

प्रमुख बिंदु

  • विद्युत क्षेत्र में वाणिज्यिक और निवेश गतिविधियों को कमज़ोर करने वाले महत्त्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित करने के लिये विद्युत (संशोधन) विधेयक, 2020 प्रस्तुत किया गया है।
  • विद्युत क्षेत्र की मौजूदा चुनौतियाँ संरचनात्मक मुद्दों को दूर करने में हुई लापरवाही से उत्पन्न हुई हैं।
  • इनमें विद्युत उत्पादन, पारेषण और वितरण उपयोगिताओं, बिजली आपूर्ति की पहुँच और गुणवत्ता, राजनीतिक हस्तक्षेप, निजी निवेश की कमी, अपर्याप्त सार्वजनिक अवसंरचना और उपभोक्ता भागीदारी की कमी तथा परिचालन और वित्तीय अक्षमताएँ शामिल हैं।

उद्देश्य

  • उपभोक्ता केंद्रित अवधारणा सुनिश्चित करना।
  • विद्युत क्षेत्र की स्थिरता में वृद्धि करना।
  • हरित ऊर्जा को प्रोत्साहन प्रदान करना।

मुख्य संशोधन 

  • राष्ट्रीय चयन समिति: अलग चयन समिति (अध्यक्ष और राज्य विद्युत नियामक आयोगों के सदस्यों की नियुक्ति के लिये) के बजाय एक राष्ट्रीय चयन समिति गठित करने का प्रस्ताव है।
    • हालाँकि केंद्र सरकार, प्रत्येक राज्य के लिये मौजूदा चयन समितियों को बनाए रखने पर विचार कर रही है लेकिन उन्हें स्थायी चयन समितियाँ में परिवर्तित करने की आवश्यकता है ताकि हर बार पद रिक्त होने पर उन्हें नए सिरे से गठित करने की आवश्यकता न हो।
  • प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण का प्रयोग: प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण राज्य सरकारों और वितरण कंपनियों दोनों के लिये लाभदायक होगा। 
    • यह राज्य सरकार के लिये लाभदायक होगा क्योंकि यह सुनिश्चित करेगा कि सब्सिडी उन लोगों तक पहुँच रही है जो वास्तव में पात्र हैं।
    • यह वितरण कंपनी को लाभार्थियों की संख्या के अनुसार, प्राप्त होने वाली सब्सिडी सुनिश्चित करके लाभान्वित करेगा। 
  • राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा नीति: भारत पेरिस जलवायु समझौते का हस्ताक्षरकर्ता है, इसलिये ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों से बिजली उत्पादन के विकास और संवर्द्धन के लिये एक अलग नीति का प्रस्ताव करता है।
  • कॉस्ट रिफ्लेक्टिव टैरिफ: निर्धारित किये गए टैरिफ को अपनाने में विभिन्न राज्य आयोग लापरवाही करते हैं, जिससे लागत में वृद्धि हो जाती है।
    • इस समस्या को हल करने के लिये प्रस्तावित संशोधन ने निर्धारित टैरिफ को अपनाने के लिये 60 दिनों की अवधि निर्धारित कर दी है। 
  • विद्युत संविदा प्रवर्तन प्राधिकरण की स्थापना: इस प्राधिकरण की अध्यक्षता उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा की जाएगी जो अपनी शक्तियों को दीवानी न्यायालय की डिक्री की भाँति निष्पादित करेंगे। 
    • यह प्राधिकरण विद्युत उत्पादक कंपनी, वितरण लाइसेंसधारी या ट्रांसमिशन लाइसेंसधारी के बीच विद्युत की खरीद या बिक्री या प्रसारण से संबंधित अनुबंधों को क्रियान्वित करेगा।
    • केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (Central Electricity Regulatory Commission-CERC) और राज्य विद्युत नियामक आयोगों (State Electricity Regulatory Commissions-SERCs) के पास अपने आदेशों को निष्पादित करने का अधिकार नहीं है, जैसा कि किसी दीवानी न्यायालय के पास डिक्री जारी करने की शक्ति होती है। 

  • सीमा पार व्यापार विद्युत व्यापार: विधेयक में अन्य देशों के साथ विद्युत व्यापार को सुविधाजनक बनाने और विकसित करने के लिये कई प्रावधान जोड़े गए हैं।

  • वितरण उप-लाइसेंस: आपूर्ति की गुणवत्ता में सुधार करने के लिये राज्य विद्युत नियामक आयोग की अनुमति के साथ डिस्कॉम को अपने क्षेत्र के किसी विशेष हिस्से में विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये एक अन्य व्यक्ति को अधिकृत करने का अधिकार डिस्कॉम को एक विकल्प के रूप में प्रदान करने का प्रस्ताव है। 
  • अपीलीय न्यायाधिकरण को मज़बूत करना: मामलों के त्वरित निपटान की सुविधा के लिये अपीलीय न्यायाधिकरण की संख्या में वृद्धि करना प्रस्तावित है।
    • अपने आदेशों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये, इसे कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट एक्ट (Contempt of Courts Act) के प्रावधानों के तहत उच्च न्यायालय की शक्तियाँ देने का भी प्रस्ताव है।

आगे की राह

  • प्रस्तावित विधेयक केंद्र सरकार को विद्युत क्षेत्र में टैरिफ और नियमों को निर्धारित करने के लिये और अधिक शक्ति प्रदान करेगा। 
  • चूँकि विद्युत समवर्ती सूची का विषय है, इसलिये राज्यों को इस संशोधन के माध्यम से उनकी शक्तियों से वंचित नहीं करना चाहिये। 

स्रोत: PIB