भारत और अमेरिका के बीच अंतर-सरकारी समझौता | 01 May 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने सीमा पार से होने वाली कर चोरी को रोकने के लिये अमेरिका के साथ एक अंतर-सरकारी समझौता किया है।

  • दोनों देशों ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों की अलग-अलग देशों में आय आवंटन तथा कर भुगतान से जुड़ी रिपोर्ट के आदान-प्रदान के लिये यह समझौता किया है।

प्रमुख बिंदु

  • इस समझौते के पश्चात दोनों देश बहुराष्ट्रीय कंपनियों की मूल संस्थाओं द्वारा एक दूसरे देशों से संबंधित क्षेत्रों में जमा की गई देश-दर-देश (country-by-country- CbC) रिपोर्ट का आदान प्रदान स्वयं कर सकेंगे।
  • यह 1 जनवरी, 2016 या उसके बाद शुरू होने वाले वित्तीय वर्ष से जुड़ी रिपोर्ट पर लागू होगा।
  • ऐसी कंपनियाँ जिनका मुख्यालय अमेरिका में है लेकिन परिचालन और कर देयता भारत में है, उन्हें अब भारत में देश-दर-देश (CbC) रिपोर्ट दाखिल करने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि इस समझौते के बाद वे अब यह रिपोर्ट अमेरिका में ही दाखिल कर सकती हैं।
  • इस प्रकार इन देशों से बाहर चल रही उनकी सहायक कंपनियों पर ऐसे कार्य का बोझ कम होगा।

पृष्ठभूमि

  • आयकर अधिनियम में वर्णित बहुराष्ट्रीय कंपनियों की सहायक भारतीय कंपनियों को अन्य क्षेत्राधिकारों से सम्बद्ध महत्वपूर्ण वित्तीय विवरणों के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी प्रदान करने की आवश्यकता होती है जहां (ऐसे क्षेत्राधिकार) वे संचालित होती हैं।
  • यह ऐसी कंपनियों के बेहतर परिचालन के साथ राजस्व और आयकर के भुगतान के संबंध में आईटी विभाग को बेहतर दृष्टिकोण उपलब्ध कराता है।
  • यह प्रावधान ‘आधार क्षरण और लाभ स्थानांतरण कार्य योजना’ का एक हिस्सा था, जिसे बाद में आईटी अधिनियम में भी शामिल किया गया।

आधार क्षरण और लाभ स्थानांतरण
Base Erosion and Profit Shifting

  • आधार क्षरण और लाभ स्थानांतरण (BEPS) का तात्पर्य टैक्स प्लानिंग रणनीतियों से है जिसके तहत टैक्स नियमों में अंतर और विसंगतियों का लाभ उठाया जाता है तथा मुनाफे को कृत्रिम तरीके से कम कर अथवा बिना कर वाले क्षेत्राधिकारों को स्थानांतरित कर दिया जाता है।
  • इन क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियाँ या तो नहीं होती हैं या मामूली आर्थिक गतिविधियाँ होती हैं। ऐसे में संबंधित कंपनी द्वारा या तो कोई भी कॉरपोरेट टैक्‍स अदा नहीं किया जाता है अथवा मामूली कॉरपोरेट टैक्‍स का ही भुगतान किया जाता है।
    बहुराष्ट्रीय उद्यमों (MNEs) से प्राप्त होने वाले कॉर्पोरेट आयकर पर विकासशील देशों की भारी निर्भरता के कारण BEPS का महत्त्व बढ़ जाता है।
  • BEPS पहल आर्थिक सहयोग तथा विकास संगठन (Organisation for Economic Co-operation and Development- OECD) की एक पहल है। वैश्विक स्तर पर अधिक मानकीकृत कर नियमों को उपलब्ध कराने संबंधी तरीकों की पहचान करने के लिये G20 द्वारा इसे अनुमोदित किया गया है।

आर्थिक सहयोग तथा विकास संगठन
(Organisation for Economic Co-operation and Development- OECD)

  • इसकी स्थापना 1961 में हुई थी।
  • वर्तमान में इसके सदस्य देशों की संख्या 36 है।
  • इसका मुख्यालय पेरिस (फ़्राँस) में है।
  • दुनिया भर में लोगों के आर्थिक और सामाजिक कल्याण में सुधार लाने वाली नीतियों को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देना OECD का प्रमुख उद्देश्य है।
  • इसके सदस्य देश इस प्रकार हैं- ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, कनाडा, चिली, चेक गणतंत्र, डेनमार्क, एस्तोनिया, फिनलैंड, फ्राँस, जर्मनी, ग्रीस, हंगरी, आइसलैंड, आयरलैंड, इज़राइल, इटली, जापान, दक्षिण कोरिया, लक्ज़मबर्ग, लातविया, लिथुआनिया, मेक्सिको, नीदरलैंड, न्यूज़ीलैंड, नॉर्वे, पोलैंड, पुर्तगाल, स्लोवाक गणराज्य, स्लोवेनिया, स्पेन, स्वीडन, स्विट्ज़रलैंड्स, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका।

स्रोत- द इकोनॉमिक टाइम्स