देश के बड़े राज्य निवेश आकर्षित करने में पीछे | 14 Sep 2017

चर्चा में क्यों ?

देश में औद्योगिकीकरण की दशा कैसी है इसका खुलासा आरबीआई के आँकड़ों से होता है। पिछले पाँच वर्षों (2012-13 से 2016-17) के आँकड़ों के अनुसार भारत के सबसे बड़े राज्य निवेश आकर्षित करने के मामले में अन्य राज्यों से पीछे हैं। देश में 62% परियोजनाएँ गुजरात, ओडिशा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में ही चल रही हैं।  

सबसे अधिक निवेश प्राप्त करने वाले राज्य एवं उद्योग

  • निजी कॉर्पोरेट निवेश पर आरबीआई के अध्ययन के अनुसार राज्यों का हिस्सा निम्न प्रकार से है:- 

→ गुजरात   - 22.7% 
→ महाराष्ट्र   - 8.6% 
→ आंध्र प्रदेश - 8.2%, 
→ मध्य प्रदेश - 7.4%
→ कर्नाटक   - 6.6%
→ तेलंगाना   - 5.5% 
→ तमिलनाडु - 4.5%

  • देश के सात राज्यों ने 62 प्रतिशत निवेश आकर्षित किया है| जबकि शेष निवेश 22 राज्यों और 7 केंद्रशासित प्रदेशों में हुआ है।   
  • आरबीआई के अनुसार, सबसे अधिक निवेश ऊर्जा क्षेत्र में हुआ है, लेकिन महाराष्ट्र और तमिलनाडु में निर्माण उद्योग में सबसे अधिक निवेश हुआ है जो कि क्रमशः 54.3 % और  67% है।  
  • गुजरात में वस्त्र, परिवहन और उसके कल-पुर्जे, कर्नाटक में सीमेंट, पुल और सड़क, तेलंगाना में  फार्मास्यूटिकल और ड्रग्स में सबसे अधिक निवेश हुआ है।  

पूंजीगत व्यय में गिरावट

  • हालाँकि, आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में चालू वित्त वर्ष में नियोजित परियोजनाओं के पूंजीगत व्यय में एक महत्त्वपूर्ण गिरावट का खुलासा किया है।
  • पूर्ववर्ती वर्षों में स्वीकृत परियोजनाओं के आधार पर योजनाबद्ध कैपेक्स (capex) 2015-16 में 174,400 करोड़ रुपए और 2016-17 में 154,800 करोड़ रुपए के मुकाबले 2017-18 में 69,400 करोड़ रुपए हो सकता है।  
  • यह वर्ष 2011-12 में 361,800 करोड़ रुपए की पूंजीगत योजना के मुकाबले काफी कम है, जिसके बाद साल-दर-साल कैपेक्स में गिरावट आ रही है।  

जीएसटी और विमुद्रीकरण का असर 

  • जिस तरह से जीएसटी और विमुद्रीकरण के कारण कॉरपोरेट के प्रदर्शन में गिरावट आई है, उसे देखते हुए यह नहीं लगता कि यह पिछले वर्ष तय कैपेक्स लक्ष्य तक पहुँच पाएगा। 
  • आम तौर पर, किसी परियोजना पर कैपेक्स कई वर्षों के लिये होता है। उधारदाताओं से वित्तीय सहायता के लिये आवेदन करते समय फर्मों को ऐसे व्यय के लिये प्रस्तावित योजना का संकेत देना आवश्यक होता है। 
  • यह ज़रूरी नहीं है कि कंपनियों द्वारा घोषित सभी निवेश योजनाएँ पूरी की जाएंगी।  पिछले पाँच वर्षों से यह स्पष्ट हो चुका है कि कुछ योजनाएँ केवल कागजों में ही बनी रहती हैं।
  • कई कंपनियों ने विमुद्रीकरण और जीएसटी के कारण अपनी योजनाएँ स्थगित कर दी थी। 
  • इसके अलावा भारी तनाव वाली परिसंपत्तियों, दिवालिया कार्रवाइयों और प्रावधानों के साथ संघर्ष कर रहे कई बैंक भी उद्योग को साख प्रदान करने में बहुत उत्साह नहीं दिखा रहे हैं। 
  • आरबीआई के आँकड़े बताते हैं कि जुलाई 2017 को खत्म हुए 12 महीनों के दौरान मध्यम उद्योगों पर बैंकों का बकाया ऋण 7.7 प्रतिशत की गिरावट के साथ 100,500 करोड़ रुपए रह गया है।