जिबूती आचार संहिता और समुद्री डकैती | 17 Sep 2020

प्रिलिम्स के लिये

जिबूती आचार संहिता और जेद्दा संशोधन

मेन्स के लिये

जिबूती आचार संहिता में शामिल होने के निहितार्थ और भारत की इंडो-पैसिफिक नीति

चर्चा में क्यों?

हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा बढ़ाने के उद्देश्य से भारत जिबूती आचार संहिता (Djibouti Code of Conduct-DCOC) में बतौर पर्यवेक्षक (Observer) शामिल हुआ है।

प्रमुख बिंदु

  • इस संबंध में विदेश मंत्रालय द्वारा जारी आधिकारिक बयान में कहा गया है कि ‘जिबूती आचार संहिता (DCOC) में एक पर्यवेक्षक के रूप में शामिल होकर भारत इसके सदस्य देशों के साथ मिलकर हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा बढ़ाने में योगदान देने के लिये तत्पर है।

भारत के लिये इसके निहितार्थ

  • यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब भारत अपनी इंडो-पैसिफिक नीति के तहत हिंद महासागर और इसके आस-पास के क्षेत्रों में अपनी भूमिका को और मज़बूत करने की कोशिश कर रहा है।
  • भारत ने जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ पारस्परिक सैन्य लॉजिस्टिक्स समर्थन समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं, ताकि इन देशों की नौसेनाओं के साथ अंतर-संचालनीयता को बढ़ावा दिया जा सके।
  • अगस्त 2017 में जिबूती में अपना पहला विदेशी सैन्य अड्डा बनाने के पश्चात् से ही चीन हिंद महासागर क्षेत्र में तीव्र विस्तार की रणनीति अपना रहा है, ऐसे में चीन की इस विस्तारवादी रणनीति की पृष्ठभूमि में भारत के लिये इस प्रकार के समझौते और कदम काफी महत्त्वपूर्ण हैं।

जिबूती आचार संहिता (DCOC)

  • जिबूती आचार संहिता (DCOC) को पश्चिमी हिंद महासागर और अदन की खाड़ी में समुद्री चोरी और सशस्त्र डकैती को रोकने के विषय से संबंधित एक आचार संहिता एक रूप में जाना जाता है।
  • पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र, अदन की खाड़ी और लाल सागर में समुद्री जहाज़ों पर होने वाली चोरी और सशस्त्र डकैती का मुकाबला करने के लिये जिबूती आचार संहिता (DCOC) को 29 जनवरी 2009 को अपनाया गया था। 
  • इस संहिता पर हस्ताक्षर करने वाले देशों ने मुख्य तौर पर निम्नलिखित क्षेत्रों में सहयोग करने पर सहमति व्यक्त की है:
    • उन लोगों की जाँच करना और गिरफ्तारी करना जिन पर समुद्री जहाज़ों पर चोरी करने अथवा समुद्री डकैती करने का संदेह है, इसमें किसी अन्य व्यक्ति को इस कृत्य के लिये उकसाने वाले और इस कार्य को सुविधाजनक बनाने वाले लोग भी शामिल हैं। 
    • संदिग्ध जहाज़ों को रोकना और उस पर मौजूद सामान को ज़ब्त करना। 
    • समुद्री चोरी और डकैती से प्रभावित जहाज़ों, व्यक्तियों और संपत्तियों को बचाना और उनकी उचित देखभाल करना तथा साथ ही समुद्री चोरी और डकैती जैसे कृत्यों में बंदी बनाए गए मल्लाहों, मछुआरों, जहाज़ पर नियुक्त कर्मचारियों और यात्रियों आदि का प्रत्यावासन (Repatriation) करना।
  • इसके अलावा यह संहिता मुख्यतः चार स्तंभों यथा- (1) समुद्री डकैती को रोकने के संबंध में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय प्रशिक्षण (2) राष्ट्रीय कानून को मज़बूत करना (3) सूचना साझाकरण और समुद्री डोमेन जागरूकता (4) समुद्री डकैती के विरुद्ध क्षमता निर्माण, के  तहत संचार, समन्वय और सहयोग के लिये एक रूपरेखा प्रस्तुत करती  है।

जेद्दा संशोधन

  • वर्ष 2017 में सऊदी अरब के जेद्दा में आयोजित ‘जिबूती आचार संहिता’ के लिये हस्ताक्षरकर्त्ताओं की एक उच्च-स्तरीय बैठक ने एक संशोधित आचार संहिता को अपनाया है, जिसे जिबूती आचार संहिता में जेद्दा संशोधन के रूप में जाना जाता है।
  • जेद्दा संशोधन ‘ब्लू इकोनॉमी’ (Blue Economy) की महत्त्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करता है जिसमें शिपिंग, फिशरीज़ और टूरिज़्म में सतत् आर्थिक विकास, खाद्य सुरक्षा, रोज़गार, समृद्धि और स्थिरता का समर्थन करना शामिल है। 

समुद्री डकैती की समस्या

  • समुद्री डकैती से अभिप्राय किसी जहाज़, व्यक्ति या संपत्ति के विरुद्ध निजी प्रयोजनों के लिये की गई हिंसात्मक कार्यवाही से होता है।
  • समुद्री क्षेत्रों में व्यापारी जहाज़ों में होने वाली चोरी और समुद्री डकैती की समस्या विश्व शिपिंग क्षेत्र के लिये एक महत्त्वपूर्ण खतरा है।
  • कोलाराडो स्थित वन अर्थ फाउंडेशन (One Earth Foundation) की रिपोर्ट के अनुसार, समुद्री डकैती की वजह से दुनियाभर के देशों को प्रतिवर्ष 7 से 12 अरब डॉलर का व्यय करना पड़ता है। 
  • इसमें डकैतियों के लिये दी जाने वाली फिरौती, जहाज़ों का रास्ता बदलने के कारण हुआ खर्च, समुद्री लुटेरों से लड़ने के लिये कई देशों की तरफ से नौसेना की तैनाती और कई संगठनों के बजट इस अतिरिक्त व्यय में शामिल हैं।

स्रोत: द हिंदू