भारत-EFTA मुक्त व्यापार समझौता | 01 Oct 2025
चर्चा में क्यों?
स्विट्ज़रलैंड, नॉर्वे, आइसलैंड और लिकटेंस्टीन वाले EFTA ब्लॉक के साथ भारत का मुक्त व्यापार समझौता (FTA) प्रभावी हो गया है, जो व्यापार एवं निवेश संबंधों को मज़बूत करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। यह समझौता वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में भारत की बढ़ती भूमिका और विदेशी निवेश आकर्षित करते हुए बाज़ार पहुँच बढ़ाने की उसकी रणनीति को दर्शाता है।
भारत-EFTA FTA क्या है?
- परिचय: भारत-EFTA FTA (व्यापार और आर्थिक भागीदारी समझौता (TEPA)) को मार्च 2024 में अंतिम रूप दिया गया और यह 1 अक्तूबर, 2025 को लागू हुआ।
- यह भारत के वैश्विक व्यापार संबंधों को मज़बूत करता है तथा संयुक्त अरब अमीरात, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के साथ हाल ही में हुए FTA को और अधिक सुदृढ़ बनाता है।
- उद्देश्य:
- उन्नत बाज़ार पहुँच: EFTA ने भारत के औद्योगिक और गैर-कृषि उत्पादों के लिये 100% बाज़ार पहुँच प्रदान की है। प्रसंस्कृत कृषि उत्पादों पर टैरिफ रियायतें प्रदान की गई हैं।
- निवेश और रोज़गार: EFTA के सदस्य देश 15 वर्षों में 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर की बाध्यकारी निवेश प्रतिबद्धता लाएँगे। इस निवेश से भारत में 1 मिलियन प्रत्यक्ष रोज़गार सृजित होने की उम्मीद है।
- व्यापार सुविधा के लिये समर्पित संस्थागत तंत्र: फरवरी 2025 से कार्यरत एक समर्पित EFTA डेस्क, एकल-खिड़की निवेश सुविधा तंत्र के रूप में कार्य करता है। यह EFTA व्यवसायों को भारत में निवेश, विस्तार और संचालन में सहायता प्रदान करता है।
मुक्त व्यापार समझौते क्या हैं?
- परिचय: FTA या मुक्त व्यापार समझौते दो या दो से अधिक देशों के बीच व्यापार में आने वाली बाधाओं जैसे टैरिफ (आयात/निर्यात पर कर) और वस्तुओं एवं सेवाओं पर कोटा को कम करने या समाप्त करने के लिये किये गए समझौते हैं।
- भारत के जापान, ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त अरब अमीरात, मॉरीशस, यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA), सिंगापुर और श्रीलंका जैसे देशों तथा समूहों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) हैं।
- इसके अतिरिक्त, भारत-यूरोपीय संघ FTA पर भी अभी उन्नत वार्ता चल रही है।
- भारत के जापान, ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त अरब अमीरात, मॉरीशस, यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA), सिंगापुर और श्रीलंका जैसे देशों तथा समूहों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) हैं।
- मुक्त व्यापार समझौतों से भारत के लाभ
- बाज़ार पहुँच: टैरिफ/गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करके निर्यात का विस्तार (उदाहरण के लिये, भारत-UAE CEPA ने 90% निर्यातों को शुल्क-मुक्त पहुँच प्रदान की और CEPA के कार्यान्वयन के पहले वर्ष में निर्यात में 12% की वृद्धि हुई)।
- निवेश में वृद्धि: स्थिर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित (भारत-ऑस्ट्रेलिया ECTA के कारण FDI प्रवाह में 25% की वृद्धि हुई)।
- कृषि लाभ: किसानों के लिये नए निर्यात बाज़ार (भारत-मॉरीशस CECPA ने चीनी और चाय जैसे कृषि निर्यात में वृद्धि की)।
- प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: उन्नत तकनीक तक पहुँच (नवीकरणीय ऊर्जा में भारत-ऑस्ट्रेलिया ECTA ऊर्जा परिवर्तन में सहायता कर रहा है)।
- SME समर्थन: व्यापक वैश्विक मूल्य शृंखला एकीकरण (भारत-सिंगापुर CECA आईटी और इंजीनियरिंग में SME को लाभान्वित करता है)।
- नियामक संरेखण: मानकों का सामंजस्य (भारत-EFTA TEPA उत्पाद प्रमाणन को संरेखित करता है, अनुपालन लागत में कमी करता है)।
- भारत के FTA से संबंधित चिंताएँ:
- व्यापार घाटा: बढ़ता आयात बनाम स्थिर निर्यात (भारत-आसियान मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के कारण वित्त वर्ष 2022-23 में आयात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और यह 44 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया है)
- विकसित बाज़ारों तक सीमित पहुँच: गैर-टैरिफ बाधाएँ प्रवेश को प्रतिबंधित करती हैं (उदाहरण के लिये, बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR)/आँकड़ों संबंधी समस्याओं के कारण यूरोपीय संघ के साथ व्यापार समझौते में देरी)।
- छोटे किसान और MSME जोखिम में: किफायती आयात से होने वाली प्रतिस्पर्द्धा से कमज़ोर क्षेत्र प्रभावित होते हैं (उदाहरण के लिये, आसियान मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के तहत रबड़ उत्पादक किसान)।
- श्रम और पर्यावरण संबंधी प्रावधान: यूरोपीय संघ के कार्बन सीमा समायोजन तंत्र जैसी बाध्यकारी शर्तें भारतीय निर्यात को हानि पहुँचा सकती हैं।
- कमज़ोर विवाद समाधान: धीमा/असंतुलित तंत्र (उदाहरण के लिये, पाम ऑयल और मशीनरी शुल्क पर भारत-आसियान विवाद)।
वैश्विक व्यापार में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?
- निर्यात प्रतिस्पर्द्धा को मज़बूत करना: विनिर्माण और कृषि में गुणवत्ता, ब्रांडिंग तथा तकनीकी उन्नयन पर ध्यान केंद्रित करना।
- व्यापार साझेदारों में विविधता लाना: अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया-प्रशांत के उभरते बाज़ारों को शामिल करने के लिये FTA का विस्तार करना।
- MSME और स्टार्टअप्स को समर्थन देना: निर्यातोन्मुख लघु उद्यमों के लिये ऋण, लॉजिस्टिक्स और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म तक पहुँच को सरल बनाना।
- बुनियादी ढाँचे में सुधार करना: लेन-देन की लागत कम करने के लिये बंदरगाहों, लॉजिस्टिक्स केंद्रों, माल ढुलाई गलियारों और कोल्ड चेन सुविधाओं का विस्तार करना।
- अनुपालन और मानकों को बढ़ाना: निर्यातकों के लिये अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता, श्रम और पर्यावरणीय मानदंडों को पूरा करने हेतु क्षमता निर्माण को सुगम बनाना।
- डिजिटल व्यापार प्लेटफॉर्म का लाभ उठाना: व्यापक पहुँच के लिये वर्चुअल ट्रेड शो, ई-मार्केटप्लेस और ऑनलाइन FTA उपयोग को बढ़ावा देना।
निष्कर्ष
भारत-EFTA FTA, भारत के वैश्विक व्यापार संबंधों को मज़बूत करने, निर्यात को बढ़ावा देने, निवेश आकर्षित करने और आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है, साथ ही इसमें घरेलू उद्योग चुनौतियों तथा रणनीतिक व्यापार विविधीकरण के सावधानीपूर्वक प्रबंधन की भी आवश्यकता है।
और पढ़ें: मुक्त व्यापार समझौतों की समीक्षा |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न: निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2018)
- ऑस्ट्रेलिया
- कनाडा
- चीन
- भारत
- जापान
- संयुक्त राज्य अमेरिका
उपर्युक्त में से कौन-से आसियान के 'मुक्त-व्यापार साझेदार' हैं?
(a) 1, 2, 4 और 5
(b) 3, 4, 5 और 6
(c) 1, 3, 4 और 5
(d) 2, 3, 4 और 6
उत्तर: (c)
मेन्स
प्रश्न. भारत के व्यापार संतुलन और औद्योगिक प्रतिस्पर्द्धात्मकता पर मुक्त व्यापार समझौतों के प्रभाव का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (2019)