भारत का वृद्ध कार्यबल | 26 Aug 2023

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का वृद्ध कार्यबल, CMIE (सेंटर फॉर माॅनीटरिंग इंडियन इकॉनमी), स्थायी रोज़गार के अवसर, अनौपचारिक क्षेत्र

मेन्स के लिये:

भारत के वृद्ध कार्यबल को लेकर चिंता

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

विश्व स्तर पर सबसे बड़ी युवा आबादी होने के बावजूद CMIE (सेंटर फॉर माॅनीटरिंग इंडियन इकॉनमी) के आर्थिक आउटलुक डेटा के उपयोग से कार्यबल के विश्लेषण के अनुसार भारत के कार्यबल में ज़्यादा उम्र वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है, यह एक चिंताजनक रुझान है।

  • वृद्ध कार्यबल का मूल रूप से मतलब यह है कि यदि भारत में सभी नियोजित लोगों को देखा जाए, तो युवा लोगों की हिस्सेदारी में कमी आई है, जबकि 60 वर्ष के करीब की उम्र वाले लोगों की हिस्सेदारी में वृद्धि देखी गई है।

विश्लेषण के प्रमुख बिंदु:

  • आयु समूह और कार्यबल संरचना:
    • वृद्ध कार्यबल की प्रवृत्ति को बेहतर ढंग से समझने के लिये यह विश्लेषण कार्यबल को तीन अलग-अलग आयु समूहों में वर्गीकृत करता है:
      • 15-29 वर्ष की आयु: कुल कार्यबल में इस आयु वर्ग की हिस्सेदारी वर्ष 2016-17 के 25% से घटकर वित्तीय वर्ष 2022-23 में 17% हो गई है।
      • 30-44 वर्ष की आयु: इसी अवधि में इस आयु वर्ग के व्यक्तियों की हिस्सेदारी भी 38% से घटकर 33% हो गई है।
      • 45 वर्ष और उससे अधिक आयु: इस आयु वर्ग की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जो 37% से बढ़कर 49% हो गई है।

  • युवाओं के बीच गिरती रोज़गार दर:
    • जबकि युवा आबादी 2.64 करोड़ (वर्ष 2016-17 में 35.49 करोड़ से वर्ष 2022-23 में 38.13 करोड़) बढ़ी है, इस समूह में नियोजित व्यक्तियों की संख्या में 3.24 करोड़ की भारी गिरावट आई है।
    • परिणामस्वरुप इस आयु वर्ग के लिये रोज़गार दर सात वर्षों में 29% से गिरकर 19% हो गई है।

  • विभिन्न आयु समूहों पर भिन्न प्रभाव:
    • जबकि रोज़गार दर में गिरावट युवाओं के मामले में सबसे अधिक देखी गई है, यह प्रवृत्ति कुछ हद तक अन्य आयु समूहों तक भी विस्तृत है।
    • विशेष रूप से सबसे अधिक आयु वर्ग (45 वर्ष तथा उससे अधिक) में रोज़गार दर में अपेक्षाकृत कम गिरावट देखी गई है तथा वास्तव में नियोजित व्यक्तियों की पूर्ण संख्या में वृद्धि देखी गई है।

कार्यबल की आयु बढ़ाने में योगदान देने वाले कारक:

  • पर्याप्त नौकरी के अवसरों का अभाव:
    • युवाओं के रोज़गार में गिरावट का एक प्रमुख कारण पर्याप्त नौकरी के अवसरों की कमी है।
    • युवा आबादी की तीव्र वृद्धि उपलब्ध नौकरियों में आनुपातिक वृद्धि के अनुरूप नहीं है, जिससे सीमित पदों के लिये तीव्र प्रतिस्पर्द्धा देखी जा रही है।
  • अनुपयुक्त कौशल: 
    • युवाओं के पास मौजूद कौशल और रोज़गार बाज़ार के लिये आवश्यक कौशल के बीच अनुपयुक्तता के परिणामस्वरूप बेरोज़गारी की उच्च दर हो सकती है।
    • शिक्षा प्रणाली युवा व्यक्तियों को उभरते रोज़गार परिदृश्य के लिये पर्याप्त रूप से तैयार नहीं कर पा रही है, जिससे अल्परोज़गार या बेरोज़गारी की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
  • अनौपचारिक क्षेत्र का प्रभुत्व:
    • भारत के कार्यबल का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा अनौपचारिक क्षेत्र में लगा हुआ है, जिसमें अक्सर स्थिर रोज़गार के अवसरों और सामाजिक सुरक्षा लाभों का अभाव होता है।
    • नौकरी बाज़ार में प्रवेश करने वाले युवाओं को स्थिर और औपचारिक रोज़गार सुरक्षित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, जिससे अस्थिरता तथा कौशल का कम उपयोग हो सकता है।
  • शैक्षिक उपलब्धि और आकांक्षाएँ:
    • जबकि युवाओं के बीच शैक्षिक उपलब्धि बढ़ रही है, शिक्षा के माध्यम से प्राप्त कौशल और नौकरी बाज़ार द्वारा मांगे जाने वाले कौशल के बीच एक अंतर हो सकता है।
    • उच्च-स्तरीय नौकरियों की आकांक्षा ऐसी स्थिति पैदा कर सकती है जहाँ युवा उपयुक्त पदों के लिये इंतज़ार करने को तैयार हैं, इससे युवाओं के रोज़गार में गिरावट आएगी।

वृद्ध भारतीय कार्यबल की चिंताएँ और निहितार्थ:

  • उत्पादकता: 
    • स्वास्थ्य समस्याओं और घटती शारीरिक क्षमताओं के कारण पुराने कर्मचारियों की उत्पादकता में कमी का अनुभव हो सकता है। इसका असर समग्र आर्थिक उत्पादन पर पड़ सकता है।
    • स्वास्थ्य सेवाओं की मांग में वृद्धि हो सकती है, जो स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर दबाव डाल सकती है और सार्वजनिक एवं निजी दोनों खर्चों को प्रभावित कर सकती है।
  • नवाचार: 
    • युवा कर्मचारी अक्सर नए दृष्टिकोण और तकनीकी समझ लेकर आते हैं, जो उद्योगों में नवाचार को बढ़ावा दे सकता है।
      • वृद्ध कार्यबल में इस गतिशीलता का अभाव है।
  • आर्थिक विकास: 
    • घटता कार्यबल आर्थिक विकास क्षमता को प्रभावित कर सकता है, क्योंकि छोटी कामकाज़ी उम्र की आबादी उत्पादन और खपत में कम योगदान देती है।
    • जो क्षेत्र शारीरिक श्रम पर बहुत अधिक निर्भर हैं, जैसे कि निर्माण और विनिर्माण, यदि पुराने श्रमिकों के स्थान पर युवा श्रमिक उपलब्ध नहीं होंगे, तो उन्हें श्रमिकों की कमी का सामना करना पड़ सकता है।
  • कौशल की कमी:
    • उम्रदराज़ कार्यबल कौशल की कमी पैदा कर सकता है, खासकर उन उद्योगों में जिनमें विशेष ज्ञान की आवश्यकता होती है।
    • इससे तकनीकी प्रगति और नवप्रवर्तन में बाधा आ सकती है।
  • उपभोग के तरीके:
    • वृद्ध व्यक्तियों के उपभोग के तरीके अधिकतर अलग होते हैं, वे बचत और आवश्यक वस्तुओं पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, जो उपभोक्ता मांग और लक्ज़री वस्तुओं की ओर अग्रसर उद्योगों को प्रभावित कर सकता है।

आगे की राह 

  • ऐसी नीतियाँ जो जल्दी सेवानिवृत्ति को हतोत्साहित करती हैं और वृद्ध व्यक्तियों को कार्यबल में बने रहने के लिए प्रोत्साहित करती हैं, उनके उत्पादक वर्षों को बढ़ाने में सहायता कर सकती हैं।
  • इसमें लचीली सेवानिवृत्ति की आयु, काम के कम घंटे और वित्तीय प्रोत्साहन शामिल हो सकते हैं।
  • कंपनियाँ आयु-समावेशी कार्यस्थल नीतियों को अपना सकती हैं जो पुराने श्रमिकों की ज़रूरतों को पूरा करती हैं और श्रम-दक्षता संबंधी सुविधाएँ, स्वास्थ्य सहायता तथा कौशल बढ़ाने के अवसर प्रदान करती हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. सुभेद्य वर्गों के लिये क्रियान्वित की जाने वाली कल्याण योजनाओं का निष्पादन उनके बारे में जागरूकता के न होने और नीति प्रक्रम की सभी अवस्थाओं पर उनके सक्रिय तौर पर सम्मिलित न होने के कारण इतना प्रभावी नहीं होता है - चर्चा कीजिये। (2019)