शौचालयों के 87% अपशिष्ट खेतों और नदियों में: CSE रिपोर्ट | 23 Oct 2018

संदर्भ

हाल ही में विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (CSE) ने उत्तर प्रदेश के शहरी शौचालयों से निकलने वाले मल-मूत्र के निपटान का विश्लेषण किया। इस विश्लेषण में यह बात खुलकर सामने आई है कि यदि इस स्थिति से निपटने हेतु व्यवस्थित सीवर सिस्टम से जुड़े टैंकों का इस्तेमाल नहीं किया गया तो पूरा प्रदेश दलदल में तब्दील हो जाएगा। 

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • गौरतलब है कि विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (CSE) द्वारा किये गए इस विश्लेषण में उत्तर प्रदेश के कुल 30 शहरों को शामिल किया गया था।
  • उत्तर प्रदेश के शहरी क्षेत्रों के 80% घरों में शौचालय की सुविधा है। लेकिन अप्रभावी स्वच्छता सुविधाओं की वज़ह से 87% मल-मूत्र का निपटान जल निकायों और कृषि योग्य भूमि में किया जाता है।
  • आँकड़ों के अनुसार, विश्लेषण में शामिल शहरों में औसतन 28% घर ही सीवर सिस्टम से जुड़ पाए हैं। ऐसे में वैज्ञानिक तरीके तथा दूरदर्शिता का उपयोग किये बिना शौचालयों का निर्माण पर्यावरण को बहुत ज़्यादा नुकसान पहुँचाएगा तथा हाथ से मैला ढोने और स्वच्छता से संबंधित बीमारियों को बढ़ावा देगा। 
  • इस रिपोर्ट के अनुसार, 2019 तक उत्तर प्रदेश में शौचालयों की संख्या तेज़ी से बढ़ेगी। यदि इन शौचालयों के निर्माण के दौरान वैज्ञानिक तरीकों तथा दूरदर्शिता का उपयोग नहीं किया गया तो इनसे निकलने वाले अपशिष्ट की मात्रा पूरे प्रदेश को दलदल में तब्दील कर देगी।

मैनुअल स्केवेंजर

  • व्यवस्थित सीवर सिस्टम की अनुपस्थिति के कारण सेप्टिक टैंक, किचन और बाथरूम से रिसने वाला अपशिष्ट खुले नाले में प्रवाहित होता है। वहीं दूसरी तरफ, निश्चित समयांतराल पर सेप्टिक टैंक की सफाई करनी पड़ती है। यह सफाई हाथ से या फिर मशीनों से की जा सकती है। 
  • विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (CSE) के विश्लेषण से पता चलता है कि हाथ से मैला ढोने पर कानूनी प्रतिबंध के बावजूद इन शहरों में सफाई का आधा काम मैन्युअल स्केवेंजर से ही करवाया जाता है। 
  • चूँकि अपशिष्ट के निपटान हेतु कोई जगह निर्धारित नहीं की गई है, इसलिये निष्कासित मल-मूत्र को जल निकायों या फिर कृषि योग्य भूमि में ही डाल दिया जाता है। 

अन्य तथ्य

    • 6 महीनों की अवधि के दौरान, शोधकर्त्ताओं ने 30 शहरों के लिये मल-मूत्र प्रवाह का रेखा-चित्र चित्रित किया जो जनसंख्या के आधार पर चार खण्डों में विभाजित है। 

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  • दस लाख से ज़्यादा की आबादी वाले शहरों जैसे- लखनऊ, आगरा और कानपुर में सीवर सिस्टम 44% घरों से जुड़ा है।
  • छोटे शहरों में हालात और भी बुरे हैं। पाँच से दस लाख की आबादी वाले शहरों में 70% से अधिक आबादी खुली नालियों से जुड़े टैंकों पर निर्भर रहती है और उन टैंकों में से केवल आधे सेप्टिक टैंक के मानकों पर खरे उतरते हैं।