नेता विपक्ष के बिना भी हो सकती है लोकपाल की नियुक्ति | 28 Apr 2017

समाचारों में क्यों 

  • हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने यह पाया कि वर्ष 2013 का लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम एक विशिष्ट कानून है| इस अधिनियम के तहत मान्यता प्राप्त विपक्ष के नेता की अनुपस्थिति में भी लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति की जा सकती है|

क्यों है विवाद?

  • वर्ष 2013 के लोकपाल अधिनियम के अंतर्गत लोकपाल के लिये नियुक्तियाँ एक उच्चस्तरीय समिति द्वारा की जाएंगी| इस समिति में प्रधानमंत्री, लोक सभा अध्यक्ष, और विपक्षी दल का नेता भी शामिल होंगे| 
  • चूँकि वर्ष 2014 के चुनाव में कांग्रेस सदस्यता के लिये 10% मत भी प्राप्त नहीं कर सकी थी अतः 16वीं लोक सभा में कोई भी मान्यता प्राप्त विपक्षी दल का नेता नहीं है|
  • यह निर्णय सरकार के इन तर्कों के विपरीत है कि लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति वर्तमान में संभव नहीं है और इसके लिये वर्ष 2013 के अधिनियम में सुधार करना होगा| इसमें विपक्षी दल के नेता को सबसे बड़े विरोधी दल के नेता द्वारा प्रतिस्थापित करना होगा|
  • गौरतलब है कि न्यायालय ने लोकपाल अधिनियम, 2013 की धारा 4 की उप-धारा 2 की ओर भी संकेत करते हुए कहा कि यह धारा स्पष्ट करती है कि लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति को केवल इसलिये अवैध करार नहीं दिया जा सकता क्योंकि चयन समिति का एक सदस्य अनुपस्थित था|

2014 के निर्णय के विपरीत सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय

  • विदित हो कि सर्वोच्च न्यायालय ने अपने वर्ष 2014 के निर्णय के विपरीत निर्णय देते हुए कहा कि लोकपाल में नियुक्तियाँ विरोधी दल के नेता की अनुपस्थिति में की जा सकती हैं|
  • कॉमन कॉज द्वारा दायर किये गए मामले पर सुनवाई करते हुए भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश आर.एम लोढ़ा की अध्यक्षता में एक तीन सदस्यीय खंडपीठ ने यह कहा था कि विरोधी दल के नेता को लोक सभा में एक महत्त्वपूर्ण दर्जा प्राप्त होता है और वह सरकार के विरोधियों का प्रतिनिधित्व करता है|
  • सर्वोच्च न्यायालय ने वक्तव्य दिया कि विरोधी दल के नेता की अनुपस्थिति में चयन समिति की बहुल स्थिति से क़ानूनी समस्याएँ उत्पन्न होंगी|

निष्कर्ष

  • वर्ष 2014 के निर्णय में अलग रुख दिखाने के बावजूद इसी मामले में लिये हुए एक अंतिम निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विपक्ष के नेता के बिना प्रधानमंत्री,लोक सभा अध्यक्ष, भारत के मुख्य न्यायाधीश और एक प्रख्यात विधिवेत्ता से बनी एक छोटी समिति भी लोकपाल में नियुक्तियाँ कर सकती है|
  • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, 16वीं लोक सभा में कोई मान्यता प्राप्त विपक्षी नेता नहीं है| विपक्षी नेता का मुद्दा केवल लोकपाल कानून में ही प्रासंगिक नहीं है बल्कि इसकी प्रासंगिकता मौजूदा विधानों में भी है, हालाँकि लोकपाल में नियुक्तियों के मामले में विपक्षी नेता का न होना बाधक नहीं है|