ई-वाहनों को प्रोत्साहन | 18 Jun 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इलेक्ट्रिक वाहन निर्माताओं के निकाय ‘सोसाइटी ऑफ मैन्युफेक्चरर्स ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स’ (Society Of Manufacturers Of Electric Vehicles-SMEV) ने विनिर्माण हेतु एक मज़बूत पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करने के लिये इलेक्ट्रिक वाहनों को प्राथमिकता देने के अलावा प्रदूषणकारी वाहनों पर 'ग्रीन सेस' (Green Cess) लगाने की मांग की।

ग्रीन सेस (Green Cess)

ग्रीन सेस एक प्रकार का कर है जो पेट्रोल एवं डीज़ल से चलने वाले वाहनों पर प्रदूषण फैलाने के एवज़ में लगाया जाता है।

प्रमुख बिंदु

  • सोसाइटी ऑफ मैन्युफैक्चरर्स ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (SMEV) के अनुसार, सरकार को बज़ट सूची में 'स्वच्छ हवा' अभियान हेतु एक निर्धारित बज़ट आवंटित किया जाना चाहिये जिसे स्वच्छ भारत मिशन के तहत एकीकृत किया जा सकता है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, इस तरह के उपकर से उत्पन्न धन सरकारी खजाने पर बोझ कम करने में मदद कर सकता है। इस फंड का उपयोग ग्राहकों को प्रोत्साहन देने और इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों की कीमतों में सब्सिडी देने में किया जा सकता है, जिससे ई- वाहनों को प्रोत्साहन मिलेगा।
  • स्वच्छ वायु अभियान के अंतर्गत लोगों में बड़े पैमाने पर जागरूकता बढ़ाने के साथ ही इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रयोग को लेकर उन्हें इस विचार से भी अवगत कराया जाएगा कि ई-वाहनों के प्रयोग से हमारे देश में प्रदूषण कम होगा एवं नागरिक स्वस्थ रहेंगे।
  • ई-वाहनों को बढ़ावा देने के लिये सरकार उन लोगों को एक विशेष अवधि के लिये करों से छूट दे सकती है जो ई-वाहनों का प्रयोग कर पर्यावरण को बचाने में अपना योगदान देते हैं।

इलेक्ट्रिक वाहन क्या है ?

  • जिस तरह पारंपरिक वाहनों में विभिन्न प्रकार की प्रौद्योगिकियाँ उपलब्ध हैं, ठीक उसी प्रकार प्लग-इन इलेक्ट्रिक व्हीकल (जिन्हें इलेक्ट्रिक कार या EVs के रूप में भी जाना जाता है) में भी विभिन्न क्षमताएँ विद्यमान हैं। EVs की एक प्रमुख विशेषता यह है कि ड्राइवर इन्हें एक ऑफ-बोर्ड इलेक्ट्रिक पावर स्रोत से चार्ज कर सकते हैं।
  • EVs दो प्रकार के होते हैं:

1. पूर्ण इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (All-Electric Vehicles-AEV)

2. प्लग-इन हाइब्रिड इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (Plug-in Hybrid Electric Vehicles- PHEVs)।

  • ऑल-इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (AEV) केवल बिजली से चलते हैं। इनकी अधिकतम रेंज 80 से 100 मील होती हैं, जबकि कुछ लक्ज़री मॉडल की 250 मील तक की सीमा होती है।
  • जब बैटरी डिस्चार्ज हो जाती है, तो इसे रिचार्ज करने में 30 मिनट (फास्ट चार्जिंग के साथ) का समय लगता है।
  • जबकि PHEV, बिजली से 6 से 40 मील तक की ही दूरी तय कर पाते हैं और बैटरी डिस्चार्ज होने पर गैसोलीन ईंधन पर चलने वाले आंतरिक दहन इंजन पर स्विच कर सकते हैं।

भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये प्रमुख चुनौतियाँ

सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या देश इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने के लिये पूरी तरह से तैयार है? देश में इलेक्ट्रिक वाहनों की राह में कुछ बड़ी चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं:

बेसिक प्लेटफॉर्म और अवसंरचना: केवल इलेक्ट्रिक वाहन बनाने से काम नहीं चलने वाला इसको इस्तेमाल करने के लिये बेसिक प्लेटफॉर्म/अवसंरचना की बेहद आवश्यकता है जो फिलहाल भारत में नहीं है। इस तरफ सरकार को विशेष ध्यान देना होगा।

चार्जिंग स्टेशनों की कमी: देश में एक तरफ जहाँ इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने पर ज़ोर दिया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये चार्जिंग स्टेशन लगभग न के बराबर हैं, जिस वज़ह से लोग इलेक्ट्रिक गाड़ियों को खरीदने से कतराते हैं। यह सरकार के लिये एक बड़ी चुनौती है। पेट्रोल/डीज़ल और CNG की तरह ही इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये चार्जिंग स्टेशन भी अधिक-से-अधिक संख्या में होने चाहिये।

ज़्यादा चलने वाली बैटरी: देश में ऐसी इलेक्ट्रिक गाड़ियाँ बनाई जानी चाहिये जो कम बैटरी खर्च कर ज़्यादा चलें। मेट्रो सिटीज़ में ट्रैफिक अधिक होने की वज़ह से माइलेज कम मिलता है, इसलिये इलेक्ट्रिक गाड़ियों की माइलेज तो ज़्यादा होनी ही चाहिये, साथ ही इनमें लगी बैटरी भी लंबे समय तक चलने वाली हो तो बेहतर होगा।

टॉप स्पीड में कमी: आजकल जितने भी इलेक्ट्रिक वाहन आ रहे हैं, चाहे दोपहिया हों या चार पहियों वाले, इन सभी की टॉप स्पीड काफी कम रहती है। पहले इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों की स्पीड 25 किलोमीटर अधिकतम होती थी, लेकिन अब कुछ मॉडल 50 किलोमीटर टॉप स्पीड वाले आने लगे हैं लेकिन यह भी पर्याप्त नहीं है।

अधिक कीमत: पेट्रोल और डीज़ल से चलने वाले वाहनों की कीमत इलेक्ट्रिक वाहनों के मुकाबले कम होती है। ऐसे में सरकार को ऑटो कंपनियों के साथ मिलकर सस्ते इलेक्ट्रिक वाहन बनाने पर ज़ोर देना होगा ताकि कम कीमत की वज़ह से लोग इन्हें अपनाने के लिये प्रोत्साहित हों।

भारत सरकार की फेम (FAME) इंडिया योजना

Phase II of FAME

  • हाल ही में सरकार ने देश में इलेक्ट्रिक वाहनों के विनिर्माण और उनके अधिकतम इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिये फेम इंडिया योजना के दूसरे चरण को मंज़ूरी दी है।
  • कुल 10 हज़ार करोड़ रुपए लागत वाली यह योजना 1 अप्रैल, 2019 से तीन वर्षों के लिये शुरू की गई है।
  • यह योजना मौजूदा ‘फेम इंडिया वन’ का विस्तारित संस्करण है, जो 1 अप्रैल, 2015 को लागू की गई थी।

प्रमुख उद्देश्य

  • इस योजना का मुख्य उद्देश्य देश में तेज़ी से इलेक्ट्रिक और हाईब्रिड वाहनों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना है।
  • इसके लिये लोगों को इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद में शुरुआती स्तर पर सब्सिडी देने तथा ऐसे वाहनों की चार्जिंग के लिये पर्याप्त आधारभूत संरचना विकसित करना आवश्यक है।
  • यह योजना पर्यावरण प्रदूषण और ईंधन सुरक्षा जैसी समस्याओं का समाधान करेगी।

फेम इंडिया की प्रमुख विशेषताएँ

  • बिजली से चलने वाली सार्वजनिक परिवहन सेवाओं पर ज़ोर।
  • इलेक्ट्रिक बसों के संचालन पर होने वाले खर्च के लिये मांग आधारित प्रोत्साहन राशि मॉडल अपनाना, ऐसे खर्च के लिये धन राज्य और शहरी परिवहन निगमों द्वारा दिया जाना।
  • सार्वजनिक परिवहन सेवाओं और वाणिज्यिक इस्तेमाल के लिये पंजीकृत 3 वॉट और 4 वॉट श्रेणी वाले इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये प्रोत्साहन राशि।
  • 2 वॉट श्रेणी वाले इलेक्ट्रिक वाहनों के सम्बन्ध में मुख्य ध्यान निजी वाहनों पर केंद्रित करना।
  • इस योजना के तहत 2 वॉट वाले 10 लाख, 3 वॉट वाले 5 लाख, 4 वॉट वाले 55 हज़ार वाहनों और 7000 बसों हेतु वित्तीय प्रोत्साहन राशि देने की योजना है।
  • नवीन प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिये प्रोत्साहन राशि का लाभ केवल उन्हीं वाहनों को दिया जाएगा, जिनमें अत्याधुनिक लिथियम आयन या ऐसी ही अन्य नई तकनीक वाली बैटरियाँ लगाई गई हों।
  • योजना के तहत इलेक्ट्रिक वाहनों की चार्जिंग के लिये पर्याप्त आधारभूत ढाँचा उपलब्ध कराने का प्रस्ताव है। इसके तहत महानगरों, 10 लाख से ज़्यादा की आबादी वाले शहरों, स्मार्ट शहरों, छोटे शहरों और पर्वतीय राज्यों के शहरों में तीन किलोमीटर के अंतराल में 2700 चार्जिंग स्टेशन बनाने का प्रस्ताव है।
  • बड़े शहरों को जोड़ने वाले प्रमुख राजमार्गों पर भी चार्जिंग स्टेशन बनाने की योजना है। ऐसे राजमार्गों पर 25 किलोमीटर के अंतराल पर दोनों तरफ चार्जिंग स्टेशन लगाने की योजना है।

आगे की राह

  • पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर ऐसे शहरों, राष्ट्रीय राजमार्गों और राज्यों की पहचान करनी होगी जहाँ सिटी बसों और कमर्शियल टैक्सियों को शत-प्रतिशत इलेक्ट्रिक मोड पर चलाया जा सके। इसके लिये तकनीकी और आर्थिक व्यवहार्यता दोनों को दृष्टि में रखना होगा।
  • पायलट प्रोजेक्ट्स की पहचान हो जाने के बाद सबसे बड़ी ज़रूरत होगी इन वाहनों के लिये चार्जिंग पॉइंट बनाने की, जहाँ तेज़ी से इन वाहनों को चार्ज करने की सुविधा होनी चाहिये। इसके बिना परिवहन व्यवस्था के छोटे से हिस्से को भी इलेक्ट्रिक मोड पर लाने की कल्पना करना बेईमानी होगा।
  • इसके अलावा इन वाहनों पर दी जाने वाली सब्सिडी नीति पर भी नज़र रखनी होगी। शहर में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली के तहत चलने वाले वाहनों को इसमें वरीयता दी जानी चाहिये। साथ ही निजी दोपहिया वाहनों और कारों की अनदेखी भी नहीं होनी चाहिये।
  • लेकिन ये सभी उपाय तभी सफल हो पाएंगे जब इलेक्ट्रिक वाहनों को संपूर्ण रूप से मेक इन इंडिया की तर्ज़ पर देश में ही बनाने की व्यवस्था की जाए। अभी ऐसे वाहनों का एक बड़ा हिस्सा आयातित उपकरणों पर निर्भर है।

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड