बैंकरप्सी कोड में आपेक्षित सुधार की कवायद | 10 Oct 2017

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में ‘इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया’ ने नियमों में बदलाव करते हुए यह दर्शाना अनिवार्य कर दिया है कि किसी कंपनी के ऋणशोद्धन प्रक्रिया में सभी पक्षों के हितों का ध्यान कैसे रखा जाएगा।
  • ध्यातव्य है कि कुछ दिनों पहले इन्सॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड से संबंधित संशोधित नियमों का एक नोटिफिकेशन जारी किया गया था, जिनका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बैंक और ऋण देने वाले अन्य संस्थान कार्रवाई से प्रभावित दूसरे हितधारकों को नुकसान पहुँचाकर अपने हित नहीं साध सकते।

क्या है ‘द इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड 2015’ ? 

  • विदित हो कि विगत वर्ष केंद्र सरकार ने आर्थिक सुधारों की दिशा में कदम उठाते हुए एक नया दिवालियापन संहिता संबंधी विधेयक पारित किया था। यह नया कानून 1909 के 'प्रेसीडेंसी टाऊन इन्सॉल्वेंसी एक्ट’ और 'प्रोवेंशियल इन्सॉल्वेंसी एक्ट 1920’ को रद्द करता है और कंपनी एक्ट, लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप एक्ट और 'सेक्यूटाईजेशन एक्ट' समेत कई कानूनों में संशोधन करता है।
  • दरअसल, कंपनी या साझेदारी फर्म व्यवसाय में नुकसान के चलते कभी भी दिवालिया हो सकते हैं। यदि कोई आर्थिक इकाई दिवालिया होती है तो इसका मतलब यह है कि वह अपने संसाधनों के आधार पर अपने ऋणों को चुका पाने में असमर्थ है।
  • ऐसी स्थिति में कानून में स्पष्टता न होने पर ऋणदाताओं को भी नुकसान होता है और स्वयं उस व्यक्ति या फर्म को भी तरह-तरह की मानसिक एवं अन्य प्रताड़नाओं से गुज़रना पड़ता है। देश में अभी तक दिवालियापन से संबंधित कम से कम 12 कानून थे, जिनमें से कुछ तो 100 साल से भी ज़्यादा पुराने हैं।
  • विदित हो कि बैंकरप्सी कोड के तहत दिवालियापन प्रक्रियाओं को 180 दिनों के अंदर निपटाना होगा। यदि दिवालियेपन को सुलझाया नहीं जा सकता तो ऋणदाता (Creditors) का ऋण चुकाने के लिये उधारकर्त्ता (borrowers) की परिसंपत्तियों को बेचा जा सकता है।

क्यों महत्त्वपूर्ण है बैंकरप्सी कोड 2015

  • किसी कारोबारी द्वारा बैंकों का कर्ज़ चुकता न किये जाने से न सिर्फ बैंकों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था भी कमज़ोर होती है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के नुकसान की भरपाई अंततः सरकारी खज़ाने से करनी पड़ती है। यह खज़ाना देश की सामूहिक आय, नागरिकों द्वारा दिये गए कर और बचत की राशि से बनता है। अतः बैंकरप्सी कोड एनपीए समस्या के समाधान के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • साथ ही बैंकरप्सी कोड केवल एनपीए समस्या का ही समाधान नहीं है, बल्कि भारत की पुरातन और अप्रचलित दिवालियापन कानूनों में सुधार करना भी इसका एक अहम् उद्देश्य है। दरअसल, हम जिस सुधार की बात कर रहे हैं वह दो पक्षों से संबंधित है; डेटर (debtor) तथा क्रेडिटर (creditor) यानी लेनदार और देनदार। दोनों ही पक्षों का ध्यान रखते हुए बैंकरप्सी कोड में आपेक्षित सुधार की यह पहल सराहनीय है।